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झारखंड में राष्ट्रीय स्तर का नेता तैयार करने में कौन पार्टी है आगे, कौन कर रही है संघर्ष, सीएम देने वाले झामुमो की क्या है स्थिति - National level leaders of Jharkhand - NATIONAL LEVEL LEADERS OF JHARKHAND

Lok Sabha Election 2024. झारखंड से शिबू सोरेन, यशवंत सिन्हा, कड़िया मुंडा और अर्जुन मुंडा जैसे नेताओं ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है. राज्य में राष्ट्रीय स्तर के नेता तैयार करने में कौन पार्टी आगे है और कौन संघर्ष कर रही है, तीन-तीन सीएम देने वाले झामुमो की स्थिति क्या है, इस रिपोर्ट में जानिए.

Lok Sabha Election 2024
NATIONAL LEVEL LEADERS OF JHARKHAND
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Mar 21, 2024, 7:18 PM IST

रांची: राजनीति के मैदान में कदम रखने वाले हर नेता का सबसे बड़ा सपना होता है संसद भवन तक पहुंचना. जनता के बीच मजबूत पैठ रखने वाले लोकसभा पहुंचते हैं तो राज्यसभा जाने वाले नेताओं की किस्मत पार्टियां तय करती हैं. कई बार वैसे नेता भी लोकसभा पहुंच जाते हैं जिनका अपना कोई जनाधार नहीं होता. इसमें सबसे बड़ी भूमिका पार्टियों की होती है. लेकिन दिल्ली पहुंचने के बावजूद बहुत कम ऐसे नेता होते हैं जो राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना लेते हैं.

झारखंड की बात करें तो यशवंत सिन्हा, कड़िया मुंडा, शिबू सोरेन, जयंत सिन्हा, सुबोधकांत सहाय, अर्जुन मुंडा, सुदर्शन भगत और अन्नपूर्णा देवी वैसे चंद भाग्यशाली नेता हैं जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है. इसकी वजह है केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलना. वर्तमान में इस लिस्ट से अर्जुन मुंडा और अन्नपूर्णा देवी को छोड़कर सभी आउट हो चुके हैं. कुछ के लिए ज्यादा उम्र और पुअर परफॉर्मेंस तो कुछ के लिए मूल पार्टी से अलग होना और चुनाव में बार-बार हार जाना कारण बना. झारखंड से एकमात्र नेता निशिकांत दूबे ऐसे हैं जो कैबिनेट में ना रहते हुए भी अपने बयान और कार्यशैली की वजह से सुर्खियों में रहते हैं.

2024 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से झारखंड पर नजर दौड़ाएंगे तो नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वालों में भाजपा सबसे आगे हैं. भाजपा के पास लोकसभा चुनाव लड़ने वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त है. यही वजह है कि चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ही भाजपा ने 14 में से 11 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी. उसमें भी दो सीटिंग सांसद के नाम काटने पड़े.

इस मामले में झामुमो की हालत खस्ता है. 2019 के लोकसभा चुनाव में झामुमो को यूपीए गठबंधन के तहत 4 सीटें मिली थी. इसमें शिबू सोरेन को छोड़कर कोई ऐसा नेता नहीं था, जिसने झारखंड के बाहर पहचान बनाई हो. राजमहल से विजय हांसदा दोबारा जरुर जीते लेकिन इसमें झामुमो के प्रति लोगों का रूझान सबसे बड़ा कारण रहा. क्योंकि शेष दो सीटों मसलन गिरिडीह और जमशेदपुर में झामुमो के जगरनाथ महतो और चंपाई सोरेन के रुप में दो विधायकों को मैदान में उतारना पड़ा था.

इसबार शिबू सोरेन उस हाल में भी नहीं हैं कि लोकसभा चुनाव लड़ सकें. लिहाजा, जेल में बैठे हेमंत सोरेन के नाम पर दुमका सीट जीतना चाह रही है पार्टी. जगरनाथ महतो के असमय निधन से गिरिडीह में विधायक मथुरा महतो को आगे किया गया है. चंपाई सोरेन के सीएम बनने की वजह से तय नहीं है कि जमशेदपुर में किसको मौका मिलेगा.

झारखंड में यही हाल कांग्रेस का भी है. पिछले चुनाव में गीता कोड़ा ने सिंहभूम सीट पर जीत दिलायी थी लेकिन अब वह भी भाजपा में जा चुकी हैं. इसकी वजह से कांग्रेस के हाथ से सिंहभूम सीट का जाना करीब करीब तय है. चर्चा है कि सिंहभूम से झामुमो अपना प्रत्याशी देगा. अभी तक चल रहे 7-5-1-1 के फॉर्मूले में झामुमो के पास पांच ऐसे नेता नहीं दिख रहे, जिनकी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान हो. जाहिर है कि सीटिंग विधायकों के जरिए झामुमो ताल ठोकेगा. इसके लिए भी जद्दोजहद हो रही है.

झारखंड में कांग्रेस भी आयातित नेताओं के बल पर ताल ठोक रही है. झामुमो से भाजपा में आए जेपी पटेल को अपने पाले में कर कांग्रेस ने हजारीबाग सीट पर नजर गड़ा दी है. क्योंकि वहां भाजपा ने जयंत सिन्हा जैसे दिग्गज नेता का टिकट काटकर मनीष जयसवाल जैसे विधायक को मैदान में उतार दिया है. पिछली बार कांग्रेस को हजारीबाग में बिना जनाधार वाले गोपाल साहू को मैदान में उतारना पड़ा था.

पिछले चुनाव में गीता कोड़ा को छोड़कर खूंटी प्रत्याशी काली चरण मुंडा ही एकमात्र ऐसे कांग्रेसी थे, जिन्होंने पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा को चुनावी मैदान में पानी पिला दिया था. हार और जीत के बीच सिर्फ 1,445 वोट का अंतर था. बहुत हद तक लोहरदगा सीट से सुखदेव भगत ने भाजपा के सुदर्शन भगत को चुनौती थी. उनकी हार सिर्फ 10,363 वोट के अंतर से हुई थी.

इस बार के चुनाव में भी वही तस्वीर दिख रही है. फर्क इतना भर है कि पिछली बार जेवीएम पार्टी चला रहे बाबूलाल मरांडी और प्रदीप यादव को यूपीए की दो सीटें मिली थी लेकिन दोनों नेता कोडरमा और गोड्डा सीट हार गये थे. बाबूलाल के हटने का सिर्फ इतना प्रभाव पड़ा है कि कांग्रेस 7, झामुमो - 5, राजद -1 और भाकपा-माले- 01 सीट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. लेकिन इनके पास राष्ट्रीय स्तर पर पहचान रखने वाले नेता नजर नहीं आ रहे हैं.

रही बात भाजपा की तो नेताओं की कतार लगी हुई है. तभी तो हजारीबाग और लोहरदगा के बाद चतरा और धनबाद में सीटिंग सांसद का नाम काटने की नौबत आ गई है. संभावना जतायी जा रही है कि चतरा या धनबाद में से किसी सीट पर सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन को जगह मिल सकती है.

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झारखंड की बात करें तो यशवंत सिन्हा, कड़िया मुंडा, शिबू सोरेन, जयंत सिन्हा, सुबोधकांत सहाय, अर्जुन मुंडा, सुदर्शन भगत और अन्नपूर्णा देवी वैसे चंद भाग्यशाली नेता हैं जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है. इसकी वजह है केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलना. वर्तमान में इस लिस्ट से अर्जुन मुंडा और अन्नपूर्णा देवी को छोड़कर सभी आउट हो चुके हैं. कुछ के लिए ज्यादा उम्र और पुअर परफॉर्मेंस तो कुछ के लिए मूल पार्टी से अलग होना और चुनाव में बार-बार हार जाना कारण बना. झारखंड से एकमात्र नेता निशिकांत दूबे ऐसे हैं जो कैबिनेट में ना रहते हुए भी अपने बयान और कार्यशैली की वजह से सुर्खियों में रहते हैं.

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इस मामले में झामुमो की हालत खस्ता है. 2019 के लोकसभा चुनाव में झामुमो को यूपीए गठबंधन के तहत 4 सीटें मिली थी. इसमें शिबू सोरेन को छोड़कर कोई ऐसा नेता नहीं था, जिसने झारखंड के बाहर पहचान बनाई हो. राजमहल से विजय हांसदा दोबारा जरुर जीते लेकिन इसमें झामुमो के प्रति लोगों का रूझान सबसे बड़ा कारण रहा. क्योंकि शेष दो सीटों मसलन गिरिडीह और जमशेदपुर में झामुमो के जगरनाथ महतो और चंपाई सोरेन के रुप में दो विधायकों को मैदान में उतारना पड़ा था.

इसबार शिबू सोरेन उस हाल में भी नहीं हैं कि लोकसभा चुनाव लड़ सकें. लिहाजा, जेल में बैठे हेमंत सोरेन के नाम पर दुमका सीट जीतना चाह रही है पार्टी. जगरनाथ महतो के असमय निधन से गिरिडीह में विधायक मथुरा महतो को आगे किया गया है. चंपाई सोरेन के सीएम बनने की वजह से तय नहीं है कि जमशेदपुर में किसको मौका मिलेगा.

झारखंड में यही हाल कांग्रेस का भी है. पिछले चुनाव में गीता कोड़ा ने सिंहभूम सीट पर जीत दिलायी थी लेकिन अब वह भी भाजपा में जा चुकी हैं. इसकी वजह से कांग्रेस के हाथ से सिंहभूम सीट का जाना करीब करीब तय है. चर्चा है कि सिंहभूम से झामुमो अपना प्रत्याशी देगा. अभी तक चल रहे 7-5-1-1 के फॉर्मूले में झामुमो के पास पांच ऐसे नेता नहीं दिख रहे, जिनकी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान हो. जाहिर है कि सीटिंग विधायकों के जरिए झामुमो ताल ठोकेगा. इसके लिए भी जद्दोजहद हो रही है.

झारखंड में कांग्रेस भी आयातित नेताओं के बल पर ताल ठोक रही है. झामुमो से भाजपा में आए जेपी पटेल को अपने पाले में कर कांग्रेस ने हजारीबाग सीट पर नजर गड़ा दी है. क्योंकि वहां भाजपा ने जयंत सिन्हा जैसे दिग्गज नेता का टिकट काटकर मनीष जयसवाल जैसे विधायक को मैदान में उतार दिया है. पिछली बार कांग्रेस को हजारीबाग में बिना जनाधार वाले गोपाल साहू को मैदान में उतारना पड़ा था.

पिछले चुनाव में गीता कोड़ा को छोड़कर खूंटी प्रत्याशी काली चरण मुंडा ही एकमात्र ऐसे कांग्रेसी थे, जिन्होंने पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा को चुनावी मैदान में पानी पिला दिया था. हार और जीत के बीच सिर्फ 1,445 वोट का अंतर था. बहुत हद तक लोहरदगा सीट से सुखदेव भगत ने भाजपा के सुदर्शन भगत को चुनौती थी. उनकी हार सिर्फ 10,363 वोट के अंतर से हुई थी.

इस बार के चुनाव में भी वही तस्वीर दिख रही है. फर्क इतना भर है कि पिछली बार जेवीएम पार्टी चला रहे बाबूलाल मरांडी और प्रदीप यादव को यूपीए की दो सीटें मिली थी लेकिन दोनों नेता कोडरमा और गोड्डा सीट हार गये थे. बाबूलाल के हटने का सिर्फ इतना प्रभाव पड़ा है कि कांग्रेस 7, झामुमो - 5, राजद -1 और भाकपा-माले- 01 सीट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. लेकिन इनके पास राष्ट्रीय स्तर पर पहचान रखने वाले नेता नजर नहीं आ रहे हैं.

रही बात भाजपा की तो नेताओं की कतार लगी हुई है. तभी तो हजारीबाग और लोहरदगा के बाद चतरा और धनबाद में सीटिंग सांसद का नाम काटने की नौबत आ गई है. संभावना जतायी जा रही है कि चतरा या धनबाद में से किसी सीट पर सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन को जगह मिल सकती है.

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