शिमला: हिमाचल में महज 50 दिन के अंदर फिर से चुनाव होने वाले हैं. 3 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए वोटिंग 10 जुलाई को होनी है. सवाल है कि आगामी उपचुनाव के दौरान वोटिंग के दौरान किस उंगली पर स्याही का निशान लगेगा ? ये सवाल इसलिये कि हिमाचल में 1 जून को ही लोकसभा की चारों और 6 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए वोटिंग हुई थी. जिसकी स्याही का निशान अब भी उंगली पर लगा हुआ है.
क्या आपकी उंगली पर भी बाकी है नीली स्याही का निशान ?
हिमाचल प्रदेश में 10 जुलाई को नालागढ़, हमीरपुर और देहरा विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है. इस दौरान तीनों विधानसभा क्षेत्रों में ढाई लाख से ज्यादा मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. लेकिन ये मतदाता लोकसभा चुनाव के दौरान भी वोट डाल चुके हैं और निशानी के तौर पर नीली स्याही का निशान उनकी तर्जनी यानी Index Finger पर अब भी लगा हुआ है. वोटिंग के दौरान हर वोट डालने वाले की उंगली पर नीली स्याही का निशान लगाया जाता है. जो चुनाव में वोट डालने का सबूत या निशानी होती है.
मतदाता की उंगली पर लगने वाली इलेक्शन इंक बताती है कि उस शख्स ने लोकतंत्र के पर्व में हिस्सा लिया है. एक बार ये स्याही उंगली या नाखून पर लग जाए तो ये काफी लंबे अरसे तक रहती है. अब अगर आप भी कन्फ्यूज हैं कि आगामी उपचुनाव के दौरान किस उंगली पर स्याही लगेगी तो आपकी कन्फ्यूजन दूर करते हैं.
इस उंगली पर लगेगी स्याही
हिमाचल के मुख्य चुनाव अधिकारी मनीष गर्ग के मुताबिक 10 जुलाई को हमीरपुर, देहरा और नालागढ़ विधानसभा क्षेत्र में होने वाली वोटिंग के दौरान मतदाताओं की Middle Finger यानी मध्यमा पर नीली स्याही का निशान लगाया जाएगा. इससे उपचुनाव में मतदाताओं की भागीदारी सुनिश्चित की जा सकेगी.
अगर लोकसभा चुनाव में नहीं डाला था वोट ?
ये बड़ा वाजिब सवाल है क्योंकि लोकसभा चुनाव के दौरान हर मतदाता ने वोट डाला हो ये मुमकिन नहीं है. हिमाचल में करीब 70 फीसदी मतदान हुआ था. ऐसे में अगर किसी शख्स ने लोकसभा चुनाव के दौरान वोट नहीं दिया लेकिन आगामी उपचुनाव के दौरान वोट देता है तो उसकी कौन सी उंगली पर नीली स्याही का निशान लगेगा ? मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनीष गर्ग के मुताबिक ऐसे मतदाताओं की भी Middle Finger पर ही नीली स्याही का निशान लगेगा. जिससे उपचुनाव के मतदाताओं की पहचान हो जाएगी.
इलेक्शन इंक के बारे में कुछ रोचक जानकारी
वोटिंग के दौरान बाएं हाथ की तर्जनी (Index Finger) में लगने वाली नीले रंग की इलेक्शन इंक को indelible ink भी कहते हैं. इसे ये नाम इसलिये मिला है क्योंकि उंगली या नाखून पर लगाने के कुछ सेकेंड बाद ही ये लगभग अमिट हो जाती है और एक लंबे समय के बाद ही मिटती है.
दरअसल देश में जब पहली बार चुनाव हुए तो उंगली पर निशान लगाने जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी. देश के पहले दो आम चुनाव के बाद आयोग ने किसी भी तरह के वोटिंग फ्रॉड से बचने और निष्पक्ष मतदान करवाने के लिए नीली स्याही का इस्तेमाल किया गया. पहली बार साल 1962 में हुए तीसरे आम चुनाव में इस स्याही का इस्तेमाल हुआ. देश में ये इंक सिर्फ और सिर्फ मैसूर की MVPL यानी मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड कंपनी बनाती है. इस इंक का उत्पादन सिर्फ सरकार और चुनाव आयोग के लिए ही होता है. MVPL की ओर से इस इंक का निर्यात दूसरे देशों में भी किया जाता है. दुनिया में ऐसे कई देश हैं जो चुनाव के दौरान इस स्याही का इस्तेमाल करते हैं.
ये नीली स्याही उंगली या नाखून पर लगते ही सूख जाती है और फिर इसे पानी, साबुन या किसी अन्य चीज से नहीं हटाया जा सकता. इस स्याही का स्किन या नाखून पर कोई साइडइफेक्ट नहीं होता. ये निशान कुछ हफ्तों बाद नाखून बढ़ने के साथ-साथ मिटता चला जाता है.
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