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क्या हैं हरियाणा में सियासी उलटफेर के मायने? इससे बीजेपी को नुकसान या फायदा?

Haryana Cabinet: हरियाणा में अचानक से जिस तरह सियासी उठापटक हुई. आखिर ये सब क्यों हुआ? इसके क्या सियासी मायने हैं? राजनीतिक जानकार से समझने की कोशिश करते हैं कि इस पूरे घटनाक्रम के पीछे क्या वजह रही.

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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Mar 13, 2024, 11:43 AM IST

क्या हैं हरियाणा में सियासी उलटफेर के मायने? इससे बीजेपी को नुकसान या फायदा?

चंडीगढ़: हरियाणा में अचानक से जिस तरह सियासी उठापटक हुई. उसने सभी को हैरान कर दिया. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी जेजेपी गठबंधन खत्म हो गया. मनोहर लाल को हटाकर हरियाणा की जनता के सामने नए मुख्यमंत्री के चेहरे को लाया गया, वो भी तब जब पीएम नरेंद्र मोदी ने दो दिन पहले गुरुग्राम में सीएम मनोहर लाल की जमकर तारीफ की. आखिर ये सब क्यों हुआ? इसके क्या सियासी मायने हैं? राजनीतिक जानकार से समझने की कोशिश करते हैं कि इस पूरे घटनाक्रम के पीछे क्या वजह रही.

'अचानक से आया तूफान': ईटीवी भारत से साथ बातचीत में राजनीतिक मामलों के जानकार धीरेंद्र अवस्थी ने कहा कि पीएम जब तारीफ करते हैं, तो उसके कई मायने होते हैं, लेकिन पत्रकार उसके मायने निकालने में विफल हो जाते हैं. इस बात की चर्चा लंबे वक्त से थी कि सीएम फेस चुनाव से पहले बदला जाएगा. वो इस तरह से सामने आएगा. जिसकी एक्सरसाइज दिखी ही नहीं, अचानक से ये तूफान आ गया. इसकी उम्मीद शायद किसी ने नहीं की थी. जब विधायक दल की बैठक चल रही थी. उसमें फैसला सुनाने से दस मिनट पहले तक किसी विधायक तक को पता नहीं था कि क्या होने वाला है.

'गर्म था विधायक दल की बैठक में माहौल': धीरेंद्र अवस्थी ने कहा कि ये कुछ उसी कड़ी का हिस्सा है. जैसे राजस्थान में हुआ, मध्य प्रदेश में हुआ. ठीक उसी तरह कुछ हरियाणा में हुआ. इस अचानक फैसले की वजह से ही अनिल विज जैसे दिग्गज नेता शपथ ग्रहण कार्यक्रम से बाहर हैं. ये बात भी निकलकर आई है कि अनिल विज ने बैठक में अपनी बात रखी, माहौल बैठक में अच्छा नहीं था.

अनिल विज ने गर्म माहौल में अपनी बात रखी. वो बैठक छोड़कर चले गए. इसके अपने मायने हैं. इसका मतलब ये है कि पहले स्थितियां सामान्य नहीं थी. जो विधायक बैठक से बाहर आ रहे थे. उनके चेहरे पर भी खुशी के भाव नहीं थे. लगता है इस फैसले में स्थानीय विधायकों की राय नहीं थी. ये फैसला दिल्ली का था, जो यहां सुनाया गया और उसको मानने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं था.

बीजेपी को फायदा या नुकसान? इस घटनाक्रम से बीजेपी को फायदा होगा या नुकसान इस सवाल पर धीरेंद्र अवस्थी ने कहा कि जहां तक इस बदलाव की बात है, तो जाहिर है कि फायदा लेने के लिए ये किया गया है. ये फैसला नॉन जाट वोट बैंक को कंसोलिडेट करने की कोशिश के तौर पर दिखता है. हरियाणा में जाट और नॉन जाट की राजनीति होती है. बीजेपी मानकर चल रही है कि जाट बीजेपी से नाराज हैं और शायद वो उसको वोट ना करें या बहुत कम वोट उनको जाट के मिले. उसको देखते ही बीजेपी ने नॉन जाट वोट बैंक को कंसोलिडेट करने के लिए इस तरह का फैसला लिया है.

'मनोहर लाल को मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी': इस फैसले को उस कड़ी से भी जोड़ा जा रहा है, जिसको लेकर राहुल गांधी मुखर है. वो है जातीय जनगणना. जिसमें वे लगातार अपनी यात्रा में कह रहे हैं कि ओबीसी तबका पचास फीसदी से ज्यादा है. जिस तरह की कैबिनेट घोषित की गई उस पर उन्होंने कहा कि अभी तो स्पेशल सेशन में सरकार बहुमत साबित करेगी. मनोहर लाल पीएम के करीबी हैं, हो सकता है उन्हें करनाल सीट पर लोकसभा चुनाव पार्टी लड़ाए, क्योंकि बीजेपी के पास वहां कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं है.

उन्होंने कहा कि अगर मनोहर लाल वहां से जीत जाते हैं, तो हो सकता है उनको कोई बड़ा पद भी मिल जाए. वहीं एक अटकल ये भी है कि जेपी नड्डा का राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर कार्यकाल लोकसभा चुनाव के बाद खत्म हो जाएगा. मनोहर लाल पीएम के नजदीकी है तो ऐसे में हो सकता है कि उन्हें पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाए. ये सब कयास हैं, लेकिन पुख्ता तौर पर कोई कहने की स्थिति में नहीं हैं.

ये भी पढ़ें- अपनी ही सरकार का शपथग्रहण छोड़ चाट-गोलगप्पे का मजा ले रहे थे नाराज अनिल विज, देखें वीडियो

ये भी पढ़ें- हरियाणा में बीजेपी की नई सरकार का फ्लोर टेस्ट आज: सीएम ने बुलाई विधायक दल की बैठक, बोले- हमारे पास 48 विधायकों का समर्थन

क्या हैं हरियाणा में सियासी उलटफेर के मायने? इससे बीजेपी को नुकसान या फायदा?

चंडीगढ़: हरियाणा में अचानक से जिस तरह सियासी उठापटक हुई. उसने सभी को हैरान कर दिया. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी जेजेपी गठबंधन खत्म हो गया. मनोहर लाल को हटाकर हरियाणा की जनता के सामने नए मुख्यमंत्री के चेहरे को लाया गया, वो भी तब जब पीएम नरेंद्र मोदी ने दो दिन पहले गुरुग्राम में सीएम मनोहर लाल की जमकर तारीफ की. आखिर ये सब क्यों हुआ? इसके क्या सियासी मायने हैं? राजनीतिक जानकार से समझने की कोशिश करते हैं कि इस पूरे घटनाक्रम के पीछे क्या वजह रही.

'अचानक से आया तूफान': ईटीवी भारत से साथ बातचीत में राजनीतिक मामलों के जानकार धीरेंद्र अवस्थी ने कहा कि पीएम जब तारीफ करते हैं, तो उसके कई मायने होते हैं, लेकिन पत्रकार उसके मायने निकालने में विफल हो जाते हैं. इस बात की चर्चा लंबे वक्त से थी कि सीएम फेस चुनाव से पहले बदला जाएगा. वो इस तरह से सामने आएगा. जिसकी एक्सरसाइज दिखी ही नहीं, अचानक से ये तूफान आ गया. इसकी उम्मीद शायद किसी ने नहीं की थी. जब विधायक दल की बैठक चल रही थी. उसमें फैसला सुनाने से दस मिनट पहले तक किसी विधायक तक को पता नहीं था कि क्या होने वाला है.

'गर्म था विधायक दल की बैठक में माहौल': धीरेंद्र अवस्थी ने कहा कि ये कुछ उसी कड़ी का हिस्सा है. जैसे राजस्थान में हुआ, मध्य प्रदेश में हुआ. ठीक उसी तरह कुछ हरियाणा में हुआ. इस अचानक फैसले की वजह से ही अनिल विज जैसे दिग्गज नेता शपथ ग्रहण कार्यक्रम से बाहर हैं. ये बात भी निकलकर आई है कि अनिल विज ने बैठक में अपनी बात रखी, माहौल बैठक में अच्छा नहीं था.

अनिल विज ने गर्म माहौल में अपनी बात रखी. वो बैठक छोड़कर चले गए. इसके अपने मायने हैं. इसका मतलब ये है कि पहले स्थितियां सामान्य नहीं थी. जो विधायक बैठक से बाहर आ रहे थे. उनके चेहरे पर भी खुशी के भाव नहीं थे. लगता है इस फैसले में स्थानीय विधायकों की राय नहीं थी. ये फैसला दिल्ली का था, जो यहां सुनाया गया और उसको मानने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं था.

बीजेपी को फायदा या नुकसान? इस घटनाक्रम से बीजेपी को फायदा होगा या नुकसान इस सवाल पर धीरेंद्र अवस्थी ने कहा कि जहां तक इस बदलाव की बात है, तो जाहिर है कि फायदा लेने के लिए ये किया गया है. ये फैसला नॉन जाट वोट बैंक को कंसोलिडेट करने की कोशिश के तौर पर दिखता है. हरियाणा में जाट और नॉन जाट की राजनीति होती है. बीजेपी मानकर चल रही है कि जाट बीजेपी से नाराज हैं और शायद वो उसको वोट ना करें या बहुत कम वोट उनको जाट के मिले. उसको देखते ही बीजेपी ने नॉन जाट वोट बैंक को कंसोलिडेट करने के लिए इस तरह का फैसला लिया है.

'मनोहर लाल को मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी': इस फैसले को उस कड़ी से भी जोड़ा जा रहा है, जिसको लेकर राहुल गांधी मुखर है. वो है जातीय जनगणना. जिसमें वे लगातार अपनी यात्रा में कह रहे हैं कि ओबीसी तबका पचास फीसदी से ज्यादा है. जिस तरह की कैबिनेट घोषित की गई उस पर उन्होंने कहा कि अभी तो स्पेशल सेशन में सरकार बहुमत साबित करेगी. मनोहर लाल पीएम के करीबी हैं, हो सकता है उन्हें करनाल सीट पर लोकसभा चुनाव पार्टी लड़ाए, क्योंकि बीजेपी के पास वहां कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं है.

उन्होंने कहा कि अगर मनोहर लाल वहां से जीत जाते हैं, तो हो सकता है उनको कोई बड़ा पद भी मिल जाए. वहीं एक अटकल ये भी है कि जेपी नड्डा का राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर कार्यकाल लोकसभा चुनाव के बाद खत्म हो जाएगा. मनोहर लाल पीएम के नजदीकी है तो ऐसे में हो सकता है कि उन्हें पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाए. ये सब कयास हैं, लेकिन पुख्ता तौर पर कोई कहने की स्थिति में नहीं हैं.

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