गोरखपुर : योग को ईश्वर से साक्षात्कार का माध्यम माना जाता है. आध्यात्मिक ऊर्जा और अंत:चेतना को जागृत करने के लिए योग एक उत्कृष्ट मार्ग के रूप में सामने आया है. योग के कई प्रचलित आसन हैं, जिनके बारे में अधिकांशत: लोग जानते हैं. लेकिन योग का एक रूप क्रिया योग है, जो दिनोंदिन लोकप्रिय होता जा रहा है. क्रिया योग का उल्लेश भगवत गीता में भी मिलता है, जहां भगवान श्रीकृष्ण इसके बारे में बताते हैं. 21 जून को योग दिवस है, इसी परिप्रेक्ष्य में क्रिया योग की उत्पत्ति, इसके मार्ग और लाभ के बारे में इस रिपोर्ट में जानिए.
श्री परमहंस योगानंद ने पूरी दुनिया में किया प्रसार
आध्यात्मिक योग गुरु श्री परमहंस योगानंद ने अपनी पुस्तक में इसका उल्लेख किया. वे दुनिया में क्रिया योग को फैलाने के लिए गोरखपुर से ही निकले. क्रिया योग और परमहंस योगानंद के विषय में गोरखपुर विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष, प्रोफेसर द्वारकानाथ कहते हैं कि योग क्यों हमारे शरीर और मनोरज को उन्नत करता है. ईश्वर से साक्षात्कार तक पहुंचाता है. इसकी एक विशेष प्रक्रिया ही क्रिया योग है.
भागवत में मिलता है वर्णन
क्रिया योग भगवत गीता में वर्णित है. गीता के गीता के कई श्लोकों में इसका उल्लेख मिलता है. प्रोफेसर द्वारकानाथ कहते हैं कि बाद में इसका लोप हो गया. महावतार बाबा ने इसकी मूल विधि को स्थापित किया और उसका प्रचार किया. उन्होंने अपने व्याख्यान में यह कहा था कि यह वह क्रिया योग है, जिसको मैंने आदि शंकराचार्य को आठवीं शताब्दी में दिया था और इसके बाद कबीर को दिया था. उन्होंने इसके बाद अपने शिष्य रामजी लाहिड़ी को 19वीं शताब्दी में प्रदान करते हुए निर्देशित किया था कि यह मैं तुम्हे प्रदान कर रहा हूं, जिसके माध्यम से लोग जीवन का परम लक्ष्य प्राप्त करेंगे.
क्या है क्रिया योग
क्रिया योग में सांस नियंत्रण (प्राणायाम की मुद्रा ) विशेष माना गया है. इससे शरीर के ऊर्जा चक्रों को जागृत तथा शुद्ध किया जाता है. इसे करने के लिए शांत मन से बैठें और अपनी आंखें बंद कर लें. पूरा ध्यान सांसों पर केंद्रित करें. शरीर के अंदर आती और बाहर जाती सांस पर ध्यान दें. इससे रीढ़ में विद्यमान 6 चक्रों को ऊर्जा मिलती है. हालांकि इसके लिए नियमित अभ्यास और किसी कुशल योग गुरू का मार्गदर्शन जरूरी है. प्रोफेसर द्वारकानाथ कहते हैं, क्रिया योग मन शरीर प्रणाली है. जिसके द्वारा हम अपने शरीर को आक्सीजन प्रदान करते हैं. अतिरिक्त आक्सीजन हमारे शरीर में रीढ़ की हड्डी में जो छह चक्र विद्यमान हैं, उसे और ऊर्जा प्रदान करती है. यह ईश्वर ने सिर्फ मनुष्य को प्रदान किया है. इसके द्वारा जीवन क्रम विकास तेज हो जाता है. आधे मिनट का क्रिया योग, एक वर्ष में विभिन्न पद्धतियों द्वारा हासिल आध्यात्मिक विकास पर भारी पड़ता है. यही भगवान कृष्ण बार-बार भगवत गीता में कहते हैं.
2 हजार साल से अधिक मानी गई है महावतार की आयु
प्रोफेसर द्वारकानाथ कहते हैं, परमहंस योगानंद की पुस्तक 'योगी कथामृत' से पता चलता है कि उन्होंने युक्तेश्वर गिरि से क्रिया योग की शिक्षा ली थी. जिन्हें महावतार बाबा ने दर्शन देकर कहा था कि तुम्हे एक शिष्य 19 शताब्दी में दे रहा हूं, जिसके माध्यम से क्रिया योग विश्व पटल पर छा जाएगा. उसको शिक्षित करके अमेरिका और यूरोप के देश में क्रिया योग के बारे में बताने के लिए भेजना है, तो परमहंस योगानंद जी का चुनाव महावतार बाबा ने किया था. जिनकी आयु दो हजार बरसे से अधिक है और आज भी उन्हें जीवित माना जाता है. क्रिया योग ही वह प्रणाली है जिसके माध्यम से हम कम से कम समय में ईश्वर से साक्षात्कार कर सकते हैं. कहा कि भारत का विश्व को बहुत अनुदान है.
अमेरिका-यूरोप में बताया महत्व
इसी योग की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिये परमहंस योगानंद अमेरिका गए. उन्होंने 'सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप' के नाम से एक संस्था खोली. जब लोगों ने देखा कि क्रिया योग पूरी तरह से वैज्ञानिक है, तब वह इसके प्रति पूरी तरह नतमस्तक हुए. परमहंस योगानंद न केवल भारत की इस अद्भुत प्रणाली को बाहर ले गए, बल्कि यूरोप, अमेरिका को इससे परिचित कराया. बताते हैं, परमहंस योगानंद मूलतः बंगाली परिवार से थे. उनके पिता गोरखपुर रेलवे में कार्य करते थे. योगानंद का जन्म यहीं गोरखपुर में हुआ. जहां अब भी उनका किराए का वह मकान है. योगी सरकार अब इसे पर्यटन और योग्य केंद्र के रूप में विकसित करने जा रही है.