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पानी और शहर पर पद्मश्री लक्ष्मण सिंह की खरी-खरी, बेतरतीब विकास पर उठाए सवाल

साल 2024 बारिश के सालों पुराने रिकॉर्ड टूटे हैं. ऐसे में पद्म श्री लक्ष्मण सिंह लापोड़िया ने कई सवाल खड़े किए हैं.

पद्म श्री लक्ष्मण सिंह लापोड़िया
पद्म श्री लक्ष्मण सिंह लापोड़िया (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 15, 2024, 9:46 AM IST

जयपुर : साल 2024 बारिश के लिहाज से राजस्थान के लिए खास ही रहा. इस बार सालों पुराने रिकॉर्ड टूटे. राजस्थान में इस बार काफी अच्छी बारिश हुई है और मानसून की बारिश ने नया रिकॉर्ड बनाया है. इस बारिश के बीच राज्य में कई जगहों पर आपदा के हालात पैदा हो गए. इन हालात को लेकर पद्म श्री लक्ष्मण सिंह लापोड़िया ने कहा कि बेतरतीब बस रहे शहरों के विकास के बीच इस बुनियादी बातों को नजर अंदाज किया गया. इस दौरान न तो तालाब का ख्याल आया और न ही सड़क पर बहने वाले पानी के रास्ते की फिक्र की गई. उन्होंने कहा कि शहरों के हालात यह है कि पार्क की जमीन पर प्लाटिंग हो जाती है. यही वजह है कि अच्छी बारिश बाढ़ ले आती है और कम बारिश में सूखा पड़ जाता है. इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि पानी की निकासी कैसे हो और पानी को कहां पर रोका जाए.

शहरी विकास की मिसाल जयपुर की चारदीवारी : लक्ष्मण सिंह कहते हैं कि किसी शहर को बसावट के लिहाज से समझना है तो जयपुर की चारदीवारी को देखना चाहिए, जहां पानी निकासी के रास्तों के साथ-साथ तालाबों का निर्माण किया गया. पुरातन जयपुर के हर चौराहे पर कुएं थे. सवाई जय सिंह की ओर से साल 1727 में बसाए गए इस शहर को लेकर उनका कहना है कि यहां करीब 300 साल पहले जल प्रबंधन का शहर बसाने से पहले ख्याल किया गया था. आज के दौर में बसने वाले शहर और कॉलोनियों में इसी बुनियादी बात को नजरअंदाज कर दिया जाता है. लक्ष्मण सिंह कहते हैं कि धरती पर बरसने वाले पानी को भी सहेज कर रखने की जरूरत है. छत का पानी घरों के नीचे बने टांकों में रोका जाना चाहिए. इसी तरह से खेत का पानी खेतों में बने फार्म पौंड में रोका जाना चाहिए. इसी तरह से गांव के पानी को रोकने के लिए तालाब बनाने चाहिए. अगर इस परंपरागत व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया गया तो नदियों को जोड़कर जल लाने की योजना के बावजूद चुनौतियां बनी रहेगी.

पद्म श्री लक्ष्मण सिंह लापोड़िया (ETV Bharat Jaipur)

पढ़ें. राजस्थान में मानसून रिटर्न्स ! चितौड़गढ़ में बारिश ने किसानों की उम्मीदों पर फेरा पानी

लापोड़िया के चौका मॉडल की मिसाल : पद्मश्री लक्ष्मण सिंह लापोड़िया ने कहा कि वे दूदू जिले और टोंक जिले के मालपुरा में कुछ गांवों में काम करते हैं. उनकी ओर से जिम्मा संभालने के बाद इलाके के इन 100 गांवों में न तो कभी बाढ़ आई और न ही सूखा पड़ा. शुरुआती दिनों में जब लोगों से वे इस तरह की बात करते थे तो लोग भी उनकी बातों को भाषणबाजी मानकर छोड़ देते थे. उन्होंने हालिया बरसात में टोंक जिले के हालात का जिक्र करते हुए कहा कि करीब एक महीने तक जलभराव के हालात रहे और सड़कों की हालत खस्ता हो गई, लेकिन इसके बावजूद उनके कार्य क्षेत्र में कुछ जगहों पर ओवरफ्लो हुआ तो बाकी जगहों पर भारी बारिश के बाद भी हालात सामान्य रहे.

उन्होंने अपने गांव का जिक्र करते हुए कहा कि वहां के तालाब इतनी बारिश के बावजूद अभी तक ओवरफ्लो नहीं हुए. एक तरह से उन्होंने बाढ़ पर काबू पा लिया. अकाल और कम वर्षा के बावजूद उनके कार्य क्षेत्र वाले गांवों में खेती होती है और कुओं में पानी मिलता है. सरकारों को भी उनके चौके सिस्टम पर ध्यान देना होगा कि कैसे गोचर का पानी गोचर में ही रोका जाए. पानी को एक तालाब से दूसरे तालाब तक ले जाने की तकनीक पर उन्होंने काम किया, जिससे पशु को चरागाह में ही पानी मिल सके. अपनी संस्था ग्राम विकास नवयुवक मंडल लापोड़िया का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सरकारों को भी उनके काम पर गौर करना चाहिए. साल 2001 के अकाल के दौर में भी लापोड़िया में अकाल की स्थिति नहीं रही.

जयपुर : साल 2024 बारिश के लिहाज से राजस्थान के लिए खास ही रहा. इस बार सालों पुराने रिकॉर्ड टूटे. राजस्थान में इस बार काफी अच्छी बारिश हुई है और मानसून की बारिश ने नया रिकॉर्ड बनाया है. इस बारिश के बीच राज्य में कई जगहों पर आपदा के हालात पैदा हो गए. इन हालात को लेकर पद्म श्री लक्ष्मण सिंह लापोड़िया ने कहा कि बेतरतीब बस रहे शहरों के विकास के बीच इस बुनियादी बातों को नजर अंदाज किया गया. इस दौरान न तो तालाब का ख्याल आया और न ही सड़क पर बहने वाले पानी के रास्ते की फिक्र की गई. उन्होंने कहा कि शहरों के हालात यह है कि पार्क की जमीन पर प्लाटिंग हो जाती है. यही वजह है कि अच्छी बारिश बाढ़ ले आती है और कम बारिश में सूखा पड़ जाता है. इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि पानी की निकासी कैसे हो और पानी को कहां पर रोका जाए.

शहरी विकास की मिसाल जयपुर की चारदीवारी : लक्ष्मण सिंह कहते हैं कि किसी शहर को बसावट के लिहाज से समझना है तो जयपुर की चारदीवारी को देखना चाहिए, जहां पानी निकासी के रास्तों के साथ-साथ तालाबों का निर्माण किया गया. पुरातन जयपुर के हर चौराहे पर कुएं थे. सवाई जय सिंह की ओर से साल 1727 में बसाए गए इस शहर को लेकर उनका कहना है कि यहां करीब 300 साल पहले जल प्रबंधन का शहर बसाने से पहले ख्याल किया गया था. आज के दौर में बसने वाले शहर और कॉलोनियों में इसी बुनियादी बात को नजरअंदाज कर दिया जाता है. लक्ष्मण सिंह कहते हैं कि धरती पर बरसने वाले पानी को भी सहेज कर रखने की जरूरत है. छत का पानी घरों के नीचे बने टांकों में रोका जाना चाहिए. इसी तरह से खेत का पानी खेतों में बने फार्म पौंड में रोका जाना चाहिए. इसी तरह से गांव के पानी को रोकने के लिए तालाब बनाने चाहिए. अगर इस परंपरागत व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया गया तो नदियों को जोड़कर जल लाने की योजना के बावजूद चुनौतियां बनी रहेगी.

पद्म श्री लक्ष्मण सिंह लापोड़िया (ETV Bharat Jaipur)

पढ़ें. राजस्थान में मानसून रिटर्न्स ! चितौड़गढ़ में बारिश ने किसानों की उम्मीदों पर फेरा पानी

लापोड़िया के चौका मॉडल की मिसाल : पद्मश्री लक्ष्मण सिंह लापोड़िया ने कहा कि वे दूदू जिले और टोंक जिले के मालपुरा में कुछ गांवों में काम करते हैं. उनकी ओर से जिम्मा संभालने के बाद इलाके के इन 100 गांवों में न तो कभी बाढ़ आई और न ही सूखा पड़ा. शुरुआती दिनों में जब लोगों से वे इस तरह की बात करते थे तो लोग भी उनकी बातों को भाषणबाजी मानकर छोड़ देते थे. उन्होंने हालिया बरसात में टोंक जिले के हालात का जिक्र करते हुए कहा कि करीब एक महीने तक जलभराव के हालात रहे और सड़कों की हालत खस्ता हो गई, लेकिन इसके बावजूद उनके कार्य क्षेत्र में कुछ जगहों पर ओवरफ्लो हुआ तो बाकी जगहों पर भारी बारिश के बाद भी हालात सामान्य रहे.

उन्होंने अपने गांव का जिक्र करते हुए कहा कि वहां के तालाब इतनी बारिश के बावजूद अभी तक ओवरफ्लो नहीं हुए. एक तरह से उन्होंने बाढ़ पर काबू पा लिया. अकाल और कम वर्षा के बावजूद उनके कार्य क्षेत्र वाले गांवों में खेती होती है और कुओं में पानी मिलता है. सरकारों को भी उनके चौके सिस्टम पर ध्यान देना होगा कि कैसे गोचर का पानी गोचर में ही रोका जाए. पानी को एक तालाब से दूसरे तालाब तक ले जाने की तकनीक पर उन्होंने काम किया, जिससे पशु को चरागाह में ही पानी मिल सके. अपनी संस्था ग्राम विकास नवयुवक मंडल लापोड़िया का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सरकारों को भी उनके काम पर गौर करना चाहिए. साल 2001 के अकाल के दौर में भी लापोड़िया में अकाल की स्थिति नहीं रही.

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