जयपुर : निर्माण और सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा हस्तकला से जुड़े हर व्यक्ति के आराध्य देव हैं. आज भगवान विश्वकर्मा का पूजन दिवस है. इस मौके पर आज आपको बताने जा रहे हैं जयपुर के आमागढ़ की पहाड़ियों की तलहटी में घाट की गुणी से नीचे स्थापित प्राचीन विश्वकर्मा मंदिर के बारे में. भगवान विश्वकर्मा के इस मंदिर को जयपुर की बसावट के दौरान स्थापित किया गया था. दावा किया जाता है कि ये भारत का पहला विश्वकर्मा मंदिर भी है.
मंदिर महंत परिवार के राजकुमार शर्मा का दावा है कि ये भारत का सबसे पहला विश्वकर्मा मंदिर माना जाता है. जयपुर की बसावट के समय इस मंदिर की स्थापना की गई थी. तभी से भगवान विश्वकर्मा का ये मंदिर यहां सुशोभित हो रहा है. उन्होंने बताया कि आमेर रियासत के समय यहां पुराना घाट हुआ करता था, जहां बड़ी संख्या में धार्मिक स्थल थे. जब सवाई जयसिंह ने जयपुर का निर्माण करवाया तो छोटी चौपड़ के आसपास जांगिड़ समाज को बसाया गया.
पढ़ें. इस जगह हनुमान जी ने तोड़ा था भीम का घमंड, जानें क्या है इस मंदिर का इतिहास
जांगिड़ समाज का ये प्रधान मंदिर : जांगिड़ समाज की मान्यता थी कि पुराने घाट के पास भगवान विश्वकर्मा का भी एक मंदिर हो. उन सभी के सहयोग से 1734 में इस मंदिर की स्थापना की गई. इस मंदिर का निर्माण जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह द्वितीय ने ही करवाया था. तभी से लगातार जयपुर में बसने वाले जांगिड़ समाज का ये प्रधान मंदिर है. हालांकि, हस्तकला से जुड़े लोगों और जांगिड़ समाज के अलावा बहुत ज्यादा लोग इस मंदिर से परिचित नहीं हैं.
मंदिर ध्वस्त हुआ, लेकिन प्रतिमाएं सुरक्षित : उन्होंने बताया कि वर्ष 1981 में जब बाढ़ आई थी, तब जल प्रलय की स्थिति के दौरान पुराना मंदिर ध्वस्त हो गया था, लेकिन मंदिर में विराजमान प्रतिमाओं को कुछ नहीं हुआ. उन्हें सुरक्षित ऊंचे स्थान पर लाकर विराजमान कराया गया, फिर यहीं नए मंदिर का निर्माण कराया गया. आज भी विकास कार्य जारी है. जल्द ही यहां एक शिखर का निर्माण भी किया जाएगा.
भगवान नरसिंह की प्रतिमा भी यहां विराजित : श्रद्धालु ममता शर्मा ने बताया कि यहां भगवान विश्वकर्मा के साथ बाएं हाथ पर भगवान गणेश और दाहिने हाथ पर भगवान लक्ष्मी नारायण विराजमान हैं. यहां भगवान नरसिंह का एक प्राचीन मंदिर भी हुआ करता था, जिसकी करीब 800 साल पुरानी प्रतिमा को भी यहां भगवान विश्वकर्मा के साथ ही विराजमान कराया हुआ है. इस मंदिर की खास बात ये है कि सभी भगवानों के दर्शन एक ही स्थान पर हो जाते हैं.
विश्वकर्मा पूजन के दिन विशेष आयोजन : स्थानीय निवासी पवन कुमार ने बताया कि यहां तीज त्योहारों पर छोटे-छोटे आयोजन होते रहते हैं. वहीं, 17 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा का पूजन दिवस और फरवरी में विश्वकर्मा जयंती भव्यता के साथ आयोजित होते हैं. इस दौरान कलश यात्रा और शोभायात्रा यहां आती हैं. जयपुर का जांगिड़ समाज यहां इकट्ठा होकर भगवान की विशेष पूजा आराधना करता है. समाज के लोग अपनी कला के अनुसार अपने औजारों को भी यहां लाकर भगवान के समक्ष रखकर पूजा करते हैं. इसके साथ ही यहां जागरण भी किया जाता है.
वैदिक पंचांग के अनुसार विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रांति पर की जाती है. इस वर्ष 16 सितंबर शाम 7:53 पर भगवान सूर्य देव कन्या राशि में प्रवेश करेंगे, लेकिन हिंदू धर्म में भगवान का पूजन उदया तिथि से होता है. ऐसे में भगवान विश्वकर्मा का पूजन 17 सितंबर यानी मंगलवार को किया जाएगा. ऐसे में हस्तकला से जुड़े कारीगर, मिस्त्री, शिल्पकार, फर्नीचर, लोहे के कारखाने, वर्कशॉप, फैक्ट्री संचालक और औद्योगिक घरानों में भी भगवान विश्वकर्मा को पूजा जाएगा. साथ ही लोग भगवान के पूजन के लिए प्राचीन विश्वकर्मा मंदिर भी पहुंचेंगे.