मंडी/कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में इस बरसात के सीजन की शुरुआत में मानसून के कमजोर होने के कारण कम बारिश हुई थी लेकिन जैसे-जैसे मानसून आगे बढ़ा तो प्रदेश के मंडी, कुल्लू और शिमला जिलों में बादल फटने की घटनाएं हुईं. इस त्रासदी ने बीते साल के जख्मों को हरा कर दिया.
सरकार हर साल मानसून का सीजन आने से पहले तैयारियां करती है. इसको लेकर बाकायदा एक बैठक होती है. बैठक में आपात स्थिति होने पर किस तरह से प्रशासन कार्य करेगा इसको लेकर रणनीति बनाई जाती है और अलग-अलग टीमों और मशीनरी को संवेदनशील स्थानों पर तैनात किया जाता है. बावजूद इसके जब लोगों तक मदद नहीं पहुंचती तो सरकार की इस कार्यप्रणाली पर सवाल उठना लाजमी है.
हिमाचल प्रदेश में बादल फटने से करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ और लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी. इस दौरान कई गांवों के संपर्क मार्ग और पुल बाढ़ में बह गए जिससे लोगों की कनेक्टिविटी बाहरी दुनिया से कट गई.
ऐसे में जब सरकार और प्रशासन से कनेक्टिविटी को सुधारने के लिए मदद ना मिली तो लोगों ने खुद ही मोर्चा संभालते हुए अपने संपर्क मार्गों और पुलों को आपसी सहयोग से दुरुस्त करना शुरू कर दिया.
मलाणा में लकड़ियों के स्लीपर से बनाया पुल
बीते 31 जुलाई की रात को बादल फटने से मलाणा डैम क्षतिग्रस्त हो गया और पुल बाढ़ में बह गया जिससे मलाणा पंचायत का संपर्क कट गया. इसके चलते लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा लेकिन ग्रामीणों ने हिम्मत और कड़ी मेहनत के बाद उफनते नाले पर लकड़ी का पुल तैयार कर दिया.
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मलाणा में ही ग्रामीणों ने बनाया हेलीपैड
मलाणा गांव के लोगों ने पुल बनाने के बाद राशन व अन्य सामान को गांव तक पहुंचाने के लिए हेलीपैड भी बनाया. गांव के साथ लगती जमीन को समतल कर आगामी दिनों में होने वाली दिक्कतों को समझते हुए गांव के लोगों ने बिना प्रशासन की मदद से खुद ही हेलीपैड भी बनाया.
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आपसी सहयोग से बनाया झूला पुल
मणिकर्ण घाटी के तीन गांवों बलाधी, फागटा और पोहल का संपर्क मार्ग बादल फटने के बाद कुल्लू जिला मुख्यालय से कट गया था. 5 दिन तक जब प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली तो ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से यहां पर एक झूला पुल का निर्माण करवाया.
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पंडोह में झूला पुल की ग्रामीणों ने की मरम्मत
प्रशासन ने मंडी जिला के पंडोह बाजार में ब्यास नदी पर 8 महीने पहले झूला पुल बनाया था जो इस बरसात के सीजन में ध्वस्त हो गया. इस पुल पर प्रशासन ने 8 लाख रुपये खर्च किए थे. इससे खफा होकर लोगों ने आपसी सहयोग से इस पुल की खुद ही मरम्मत कर दी और इसे आवागमन के लिए सुचारू किया.