विदिशा: दीपावली से पहले बाजारों में रौनक देखने मिल रही है. चारों तरफ दुकानें सज गई है और लोग जमकर खरीदारी कर रहे हैं. जिसके चलते विदिशा के बाजार में बहुत भीड़भाड़ हो रही है. लोग कपड़ों से लेकर घरों को सजाने के लिए सामान सहित इलेक्ट्रोनिक सामान खरीद रहे हैं. बाजार में तरह-तरह के दीपक, रंगोली के सामान और लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां बिकने लगी है. इस बार 31 अक्टूबर को दीपावली मनाई जाएगी.
मुश्किल से चल रहा मूर्तियों का कारोबार
कुम्हार जाति के लोग गणेश लक्ष्मी प्रतिमाएं बनाने में लगे हुए हैं, लेकिन उनके लिए ये साल थोड़ा कठिन साबित हो रहा है. जब ईटीवी भारत ने इन मूर्तिकारों से बात की, तो उन्होंने अपनी मुश्किलें साझा करते हुए कहा कि पहले जहां मिट्टी की प्रतिमाओं की अच्छी मांग होती थी. अब धीरे-धीरे वो घटने लगी है. वहीं मिट्टी मिलना भी मुश्किल हो गया है, जिससे दीया और मूर्तियां बनाने में दिक्कतें आ रही हैं.
बाजार में बिक रहीं पीओपी की मूर्तियां
बाजार में अब प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) की मूर्तियां तेजी से बिकने लगी हैं, जो सस्ती और टिकाऊ होती हैं. लोग इन्हें खरीदना ज्यादा पसंद कर रहे हैं. क्योंकि ये साल भर टिकती है. एक दुकानदार ने बताया, "हम लोकल दीए 20 रुपये में 16 दे रहे हैं, जबकि बाहर से आए दीपक 20 रुपये में सिर्फ 8 ही मिलते हैं. इसके बावजूद ग्राहक बाहर के दीपकों को ज्यादा खरीद रहे हैं."
दिवाली से पहले बाजार में रौनक
दिवाली से पहले दीए का बाजार भी सज चुका है. बाजार में रंग-बिरंगे और डिजाइनर मिट्टी के दीए बिकने शुरू हो गए हैं. बात विदिशा जिले की करें, तो यहां बड़े पैमाने पर मिट्टी के दीए तैयार किए जाते हैं. पहले तो चाइनीज सामान के कारण कुम्हारों का धंधा मंदा चल रहा था, लेकिन पिछले कुछ सालों से "लोकल फॉर वोकल" के आह्वान के बाद मिट्टी से बने दीए की डिमांड बढ़ी है. इस साल पिछले साल के मुताबिक कम रेट में दीए बेचे जा रहे हैं.
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सरकार से नहीं मिलती कोई मदद
मूर्तिकार रमेश प्रजापति बताते हैं, "हमारा पीढ़ियों से यही धंधा है और हमारे पास इसके कोई चारा नहीं है. इसके अलावा गवर्नमेंट से कोई सहायता भी नहीं मिल रही है. मिट्टी भी नहीं बची यहां वहां से लाते है. दीए बनाने में जितनी लागत आ रही है, उतने रेट भी नहीं मिल रहे हैं." वहीं मूर्तिकार दौलत बाई ने बताया,"पीओपी तो मिट्टी से सस्ती पड़ जाती है और मिट्टी मिलती भी नहीं है. जबकि पीओपी हमें आसानी से मिल जाती है. सरकार यदि हमें मिट्टी की खदान देने लगे, तो हम मिट्टी के ही दीए और मूर्तियां बनाने लगेंगे. इसमें मेहनत जरूर लगती है पर मिट्टी की मूर्तियों में हमें बहुत ज्यादा फायदा है."
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देसी दीपकों की मांग अधिक
फुटपाथ पर दिए बेचने वाली महिला लक्ष्मी बाई प्रजापति ने बताया, "हमारा जीवन हो गया यहीं दुकान लगाते हुए. हमारे पास बाहरी और देसी दोनों ही दीपक मिलते हैं, लेकिन आजकल देसी दीपक ज्यादा बिक रहे हैं. 800 रुपए के 1 हजार दीपक लाते हैं, जिसमें हमें 200 रुपए मिल जाते हैं. वही फुट टूट भी हमारी रहती है. ग्राहक देसी दिया ज्यादा लेना पसंद कर रहा है. हालांकि बाहर से लाए हुए दीपक भी ग्राहक ले रहे है. देसी दिए ₹20 में 16 बेच रहे हैं, तो वहीं बाहर से लाए हुए दीपक ₹20 के 8 बेच रहे हैं."
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बाजार में मिल रहे सस्ते और सुंदर दीपक
दीपक लेने आए योगेश शर्मा का कहना है कि "इस बार दिवाली पर बाजार में ₹20 के 16 अच्छे दीपक मिल रहे हैं. दीपक अच्छे और सुंदर भी है. ऑनलाइन खरीदारी हम करना नहीं चाहते, क्योंकि यह लोग जिस भावना से बैठे हैं, जिस भावना से दीपक बने हैं. इनकी और इनके बच्चों जो है उनकी भी दीपावली मने इसको भी कुछ पैसे मिले. इस उद्देश्य से हम लोग इनसे दीपक खरीद रहे हैं."