कोटा: मेडिकल और इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम में कोटा का सिक्का पूरे देश में चलता है. यहां से साल 2024 में NEET UG व JEE में सफल कैंडीडेट्स के लिए विक्ट्री कार्निवल बुधवार को आयोजित किया गया. इसमें कोटा से पढ़ाई कर एमबीबीएस और बीटेक में एडमिशन लेने वाले हजारों कैंडिडेट पहुंचे. कार्यक्रम के दौरान कैंडिडेट्स ने जमकर धमाल मचाया. इस दौरान एलन कोचिंग ने सभी टॉपर्स कैंडिडेट को पुरस्कृत भी किया.
इस समारोह में शामिल होने के लिए बिहार के वैशाली जिले के जयप्रकाश नयन और कोटा के ही महेश कुमार डिगा भी पहुंचे. जयप्रकाश नयन ने परिवार की विपरीत परिस्थिति होने के बावजूद मेडिकल एंट्रेंस का सपना नहीं छोड़ा और आखिर सफल होकर एमबीबीएस में प्रवेश लिया. महेश कुमार डिगा दिव्यांग होने के बावजूद सफलता की कहानी रच दी है. इस समारोह में एलन कोचिंग के निदेशक गोविंद माहेश्वरी, राजेश माहेश्वरी, बृजेश माहेश्वरी और नवीन माहेश्वरी बतौर अतिथि मौजूद रहे.
दुकान लगाकर पैसा कमाया और फिर कोचिंग कर पाई सफलता: बीजे मेडिकल कॉलेज, अहमदाबाद के एमबीबीएस फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट जयप्रकाश नयन का अभी तक का सफर स्ट्रगल भर रहा है. वह अपनी सफलता में कोटा का नाम जरूर लेते हैं. एमबीबीएस करने की इच्छा के चलते ही में कोटा आए थे, लेकिन सफल नहीं हो पाए. परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी, इसीलिए दुकान उन्हें डालनी पड़ी, लेकिन मन में एमबीबीएस करने का सपना था. उनके पिता विनय नयन व मां नगिया देवी पर भी 6 बच्चों का भार था. इसीलिए ज्यादा कुछ नहीं कर पाए.
इसीलिए 3 साल उन्होंने दुकान चलाई, फिर कोटा आकर 2023 में दोबारा कोचिंग में एडमिशन लिया. यहां पर पैसे के लिए ट्यूशन भी उन्होंने बच्चों को पढ़ाई. इसके बाद वह साल 2024 में नीट यूजी में 2900 के आसपास रैंक लेकर आए और उनका एमबीबीएस करने का सपना सफल हुआ. उनका कहना है कि असफल होने के बाद काफी स्ट्रगल उन्होंने किया. दुकान का सब सामान बेचकर एक बार फिर वह पढ़ाई करने के लिए कोटा आ गए थे. अब वापस पटरी पर दुनिया लौटी है, सब खुश हैं.
चिकित्सकीय लापरवाही से दिव्यांग हुआ बेटा, सपना था डॉक्टर बनाना: कोटा के सुभाष नगर में रहने वाले लेखा विभाग के कार्मिक रामप्रताप मीणा का कहना है कि उनका बेटा महेश का 6 महीने की उम्र में गले का ऑपरेशन दिल्ली के अस्पताल में हुआ था. जहां पर एनेस्थीसिया ज्यादा लगने के चलते वह पूर्ण रूप से दिव्यांग हो गया. इससे वह स्वयं और उनकी पत्नी सुनीता टूट गए थे. जैसे-तैसे बच्चों की उम्र बढ़ती रही, उसका पढ़ाई की तरफ रुझान बढ़ता गया. घर पर ही उसने पढ़ाई की प्रारंभिक बारीकियां सीखी. रामप्रताप का कहना है कि महेश का स्कूल में दाखिला कराया, लेकिन अधिकांश समय घर पर ही खुद ने पढ़ाया, इसके अलावा ट्यूशन भी लगाई.
पूरी तरह से दिव्यांग होने के चलते स्कूल में भी ज्यादा समय नहीं जा पाता था. पढ़ाई में रुचि होने के चलते ही वह कोचिंग में एडमिशन ले पाया और वहां की पढ़ाई की बदौलत ही नीट यूजी को क्लियर कर पाया. इसी के बूते पर वह भोपाल एम्स में एडमिशन लेकर अब एमबीबीएस कर रहा है. रामप्रताप का कहना है कि चिकित्सक की लापरवाही के चलते ही यह हुआ था. इसीलिए मैंने बेटे को डॉक्टर बनने तय किया था. मेरा व बेटे दोनों का ही लक्ष्य एमबीबीएस था. यह सपना अब पूरा हो गया है. महेश के दिव्यांग होने पर हमें लगा था कि सब कुछ खत्म हो गया और डिप्रेशन में चले गए थे. लेकिन अब थोड़ी खुशी हमें है कि बेटा दिव्यांग होते हुए भी अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा.