वाराणसी : वाराणसी के मड़वाड़ी लहरतारा रोड के पास रहने वाले डॉ. विनोद और उनकी पत्नी ने लंबे संघर्ष के बाद हाई कोर्ट से मुकदमा जीत कर अपना घर अपने बेटों और बहू से वापस लिया है. कोर्ट के आदेश से पति-पत्नी अब घर में रह रहे हैं और उनकी सुरक्षा के लिए यहां पर पुलिसकर्मियों को भी तैनात किया गया है. सबसे बड़ी बात यह है कि इन्हें खतरा किसी दुश्मन से नहीं, बल्कि अपने बेटों से है.
वाराणसी निवासी डाॅ. विनोद पांडेय और उनकी पत्नी तारा पांडेय की कहानी बेहद दर्द भरी है. पहले पत्रकार रह चुके डॉ. विनोद पांडेय गुजरात विद्यापीठ में पत्रकारिता के प्रोफेसर भी रहे. रिटायरमेंट के बाद उन्हें उम्मीद थी कि उनका सहारा उनके बेटे बनेंगे, लेकिन वह सपना और भ्रम दोनों टूट गया. प्रो. विनोद पांडेय बताते हैं कि 16 साल तक अहमदाबाद के गुजरात विद्यापीठ में वह पत्रकारिता के प्रोफेसर थे. 2022 में रिटायर होने के बाद वे अपने घर वाराणसी आ गए. यहां पर उनके दो बेटे और उनकी पत्नियां रहतीं थी. एक बेटा दिल्ली में पत्रकार है. कुछ दिन तक सब कुछ अच्छा चला, धीरे-धीरे बड़े और बीच वाले बेटे और उसकी पत्नी का व्यवहार बदलने लगा. छोटी-छोटी बात पर घर में मारपीट लड़ाई झगड़ा होने लगा. हम पति-पत्नी एक कमरे में रहते थे. कई बार तो लड़ाई के बाद खाना भी नहीं मिलता था.
डाॅ. विनोद पांडेय के अनुसार 2022 में वाराणसी पुलिस कमिश्नर से शिकायत की थी. तब उन्होंने लोकल पुलिस को भेजकर हमारे बेटों को समझवा दिया था. जब वह नहीं माना तो उसको थाने लेकर गए. अगले दिन पुलिस ने हमको फोन करके कहा कि आपका बेटा आपके साथ रहने को तैयार है. मैं, पत्नी और छोटा बेटा जब थाने पहुंचे तो वहां पर उसकी तरफ से 14 पैरोकार आए थे. उसने पुलिस के सामने समझौता किया कि कामवाली रख लेंगे तो दिक्कत नहीं होगी, लेकिन घर आने के बाद फिर से कलह शुरू हो गया.
डॉ. विनोद के मुताबिक दिक्कत देखकर छोटे बेटे की पत्नी अपने मायके चली गई. फिर हम लोग 4 दिन तक बगल के गेस्ट हाउस में रुके. फिर घर आए तो लड़ाई करने लगे तो फिर 10 दिन तक गेस्ट हाउस में रुके. इसके बाद भी तनाव कम नहीं हुआ तो हम लोग चेन्नई से लेकर तीर्थयात्रा पर कई दिनों तक बाहर रहे, लेकिन उसके बाद भी घर आने पर दिक्कतें कम नहीं थीं. हमसे पैसे मांगे जाते थे तो हम देते थे, खर्च चलाते थे पूरे घर का, लेकिन न हमें खाने को मिलता था, न सुकून से रहने को.
बेटों की हरकत को बयां करते समय तारा पांडेय रोने लगती हैं. तारा बताती हैं कि घर में इतनी मारपीट होती थी कि एक बार उनकी पसली टूट गई थी. जिसके बाद उसका इलाज करवाने के लिए उन्हें बाहर जाना पड़ा. घर पर रहते हुए बेटे और बहू की हरकतों से इतना परेशान थी कि कभी-कभी तो जान देने का मन करता था. बीच वाले बेटे का ढंग का काम नहीं था तो उसका खर्च उठाते थे, लेकिन उन लोगों ने पूरा घर ही बांटने का मन बना लिया था. हमको घर से हटाने का दबाव बनाने लगे. बीच वाली बहू को अहमदाबाद से ही पीएचडी करा दी, बेटे का भी दो बार एडमिशन कराया, जिससे वो अपने करियर में आगे बढ़ सकें, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
डॉ. विनोद पांडे बताते हैं कि बेटे-बहूओं की हरकतों से इतना ज्यादा तंग आ गए थे कि जून 2024 में हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी. हालांकि बाद में यह कोर्ट बंद हो गया और सुनवाई आगे नहीं पड़ी. हालांकि बाद में कोर्ट ने वाराणसी पुलिस कमिश्नर और जिलाधिकारी से पूरे मामले में रिपोर्ट तलब की रिपोर्ट आगे बढ़ाने के बाद कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई और हाई कोर्ट के निर्देश पर 9 जुलाई को 5 घंटे के अंदर पुलिस प्रशासन ने मकान को खाली करवा कर, हमें अंदर प्रवेश दिलवाया.