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1764 में बही थी खून की नदियां, वह युद्ध का मैदान आज भी बदहाल, पर्यटन स्थल क्यों नहीं बन पाया कतकौली गांव

'बैटल ऑफ बक्सर' का मैदान आज भी बदहाल है. 1764 की लड़ाई वाला इस स्थल को पर्यटन स्थल बनाने की मांग पूरी नहीं हो पायी.

बैटल ऑफ बक्सर मैदान बदहाल
बैटल ऑफ बक्सर मैदान बदहाल (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : 1 hours ago

Updated : 1 hours ago

बक्सरः आधुनिक इतिहास में बक्सर की लड़ाई के बारे में पढ़ने को मिलता है. यह एक ऐसी लड़ाई थी जिसमें भारतीय फौज और अंग्रेज आमने सामने हुए थे लेकिन इसमें अंग्रेजों की जीत हुई थी. बिहार के बक्सर में जिस जगह पर यह युद्ध हुआ था वह मैदान आज भी मौजूद है लेकिन अपने बदहाली पर आंसू बहा रहा है. आईये जानते हैं कि आखिर 250 साल पहले इस गांव में क्या हुआ था.

1764 में हुआ था महायुद्धः गंगा किनारे स्थित जिला बक्सर शहर से मात्र 7 किलोमीटर दूर कतकौली गांव है. इसी गांव में बक्सर युद्ध का मैदान है. 1764 ईसवी में यहां बक्सर का युद्ध हुआ था. इतना रक्तपात हुआ था कि खून की नदियां बहने लग थी. बंगाल, अवध के नवाब मुगल बादशाह से अंग्रेजों का भयंकर युद्ध हुआ था. हालांकि इसमें भारतीय फौज की हार हो गयी थी. बंगाल और ओडिशा ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन हो गया था.

टल ऑफ बक्सर मैदान बदहाल (ETV Bharat)

अंग्रेजों और भारतीय फौज में हुई थी लड़ाईः यह घटना 250 साल पुरानी है. जिस कतकौली गांव में युद्ध हुआ था, वहां आज भी निशानी मौजूद है. गांव की धरती खून से लाल हो गयी थी. ईस्ट इंडिया कंपनी के हेक्टर मुनरो, मुगलों और नवाबों की सेना आपस में भिड़े थे. बंगाल के नवाब मीर कासीम, अवध के नवाब शुजाउदौला, मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना ने अंग्रेजों से लोहा लिया था.

कई साक्ष्य मौजूदः बताया जाता है कि इस युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों में मुसलमान और हिन्दू दोनों थे. युद्ध की समाप्ति के बाद चारो ओर लाशें दिखाई दे रही थी. काफी हिम्मत के बाद खून से लथपथ लाश का मजहब के अनुसार अंतिम संस्कार किया गया था. मुसलमान सैनिक को गांव के बाहर एक कुएं में दफन किया गया और हिन्दू सेना को गांव से 2 किमी दूर गंगा में प्रवाहित कर दिया गया. कुएं पर एक बगरद का पेड़ लगाया गया था जो आज एक विशाल वृक्ष बन गया है.

बक्सर की लड़ाई स्थल को पर्यटन स्थल बनाने की मांग
बक्सर की लड़ाई स्थल को पर्यटन स्थल बनाने की मांग (ETV Bharat)

क्यों हार गए थे भारतीय शासकः इतिहासकार बताते हैं कि कैप्टन मुनरो के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों की संख्या 17,072 थी. 1,859 ब्रिटिश नियमित सैनिक, 5,297 भारतीय सिपाही और 9,189 भारतीय घुड़सवार शामिल थे. भारतीय शासकों की सेना की संख्या 40,000 से ज़्यादा थी. किंतु भारतीय शासक अंग्रेजों से बुरी तरह हार गए थे. बताया जाता है कि हार का बड़ा कारण तीनों संयुक्त भारतीय शासकों के बीच आपसी समन्वय की कमी थी.

2000 भारतीय सेना मारे गए थेः कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ब्रिटिश सैनिकों में मरने वालों की कुल संख्या 847 के करीब थी. यूरोपीय रेजिमेंट से 39 मारे गए और 64 घायल हुए, ईस्ट इंडिया कंपनी के 250 मारे गए तथा 435 घायल हुए. वहीं 85 लापता हो गए थे. भारतीय सेनाओं के लिए दावा किया जाता है कि 2000 सैनिक मारे गए और कई अन्य घायल हुए.

बक्सर की लड़ाई का कुआं जिसमें सैनिक के शव हुए थे दफन
बक्सर की लड़ाई का कुआं जिसमें सैनिक के शव हुए थे दफन (ETV Bharat)

पर्यटन स्थल बनाने की मांगः यह ऐतिहासिक स्थल धीरे-धीरे अब जर्जर होने के कगार पर है. बदलाही का आंसू बहा रहे इस स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में बदलने की लोग मांग कर रहे हैं. सीएम नीतीश कुमार भी इस गांव में आ चुके हैं. उनके सामने भी इस मांग को ग्रामीणों ने रखा था. इसके बावजूद आज तक पूरा नहीं किया गया.

डीएम ने कहा होगी पहलः इस मामले में बक्सर के डीएम अंशुल अग्रवाल ने बताया कि विभागीय या नगर परिषद स्तर पर इस ओर पहल की जाएगी. जाहिर सी बात है अगर इसका विकास होगा तो यहां के लोगों को रोजगार मिलेगा और लोग आर्थिक रूप से विकसित होंगे. बता दें कि यहां देश-विदेशों से सैलानी स्थल घूमने आते हैं और उस युद्ध स्थल का भ्रमण करते हैं.

"यह एक ऐतिहासिक स्थल है. जानकारी है कि वहां कई विदेशी सैलानियों का आगमन होता है. चौसा की तरह इसका भी विकास किया जाएगा. विभागीय स्तर या फिर नगर परिषद स्तर से इस ओर पहल किया जाएगा." -अंशुल अग्रवाल, डीएम, बक्सर

बक्सर की लड़ाई का विजयी स्मारक
बक्सर की लड़ाई का विजयी स्मारक (ETV Bharat)

इस गांव में कभी नहीं गयी पुलिसः बता दें कि यह वही कतकौली गांव है जहां आज तक पुलिस नहीं गयी. यहां के लोगों ने 1764 में इतना रक्तपात देखा कि लड़ाई क्या होता है, यह सोचकर ही डरते हैं. छोटा-मोटा विवाद लोग खुद सुलझा लेते हैं. इसकी पुष्टि खुद बक्सर पुलिस करती है कि इस गांव के लोग काफी समझदार हैं. आज तक इस गांव में पुलिस नहीं गयी.

बक्सर में ही हुई थी चौसा की लड़ाईः चौसा की लड़ाई स्थल भी बक्सर में ही स्थित है. बक्सर से लगभग 16 किमी दूर दक्षिण पश्चिम में चौसा गांव स्थित है. 26 जून 1539 में मुगल सम्राट हुमायुं और अफगान शेरशाह सूरी के बीच हुई थी. इस लड़ाई में शेरशाह विजयी हुए थे. हुमायूं अपनी जान बचाने के लिए रणभूमि से भाग गया था.

बक्सर की लड़ाई स्थल को पर्यटन स्थल बनाने की मांग
बक्सर की लड़ाई स्थल को पर्यटन स्थल बनाने की मांग (ETV Bharat)

वेदगर्भा और व्याघ्रसर ऐतिहासिक नामः बक्सर को वेदगर्भा और व्याघ्रसर भी कहा जाता है. गंगा किनारे स्थित बक्सर पवित्र स्थान है. इसे मूल रूप से वेदगर्भ यानि वेद का गर्भ माना जाता है. इतिहासकार बताते हैं कि वैदिक भजनों के कई लेखक यहां रहते थे. इसका रहस्य भगवान श्रीराम के शुरुआती जीवन से भी जुड़ा है. व्याघ्रसर का मतलब है कि यहां बाघों का बसेरा हुआ करता था और एक बड़ा सरोवर भी था. इसलिए इसे व्याघ्रसर भी कहा जाता है.

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बक्सरः आधुनिक इतिहास में बक्सर की लड़ाई के बारे में पढ़ने को मिलता है. यह एक ऐसी लड़ाई थी जिसमें भारतीय फौज और अंग्रेज आमने सामने हुए थे लेकिन इसमें अंग्रेजों की जीत हुई थी. बिहार के बक्सर में जिस जगह पर यह युद्ध हुआ था वह मैदान आज भी मौजूद है लेकिन अपने बदहाली पर आंसू बहा रहा है. आईये जानते हैं कि आखिर 250 साल पहले इस गांव में क्या हुआ था.

1764 में हुआ था महायुद्धः गंगा किनारे स्थित जिला बक्सर शहर से मात्र 7 किलोमीटर दूर कतकौली गांव है. इसी गांव में बक्सर युद्ध का मैदान है. 1764 ईसवी में यहां बक्सर का युद्ध हुआ था. इतना रक्तपात हुआ था कि खून की नदियां बहने लग थी. बंगाल, अवध के नवाब मुगल बादशाह से अंग्रेजों का भयंकर युद्ध हुआ था. हालांकि इसमें भारतीय फौज की हार हो गयी थी. बंगाल और ओडिशा ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन हो गया था.

टल ऑफ बक्सर मैदान बदहाल (ETV Bharat)

अंग्रेजों और भारतीय फौज में हुई थी लड़ाईः यह घटना 250 साल पुरानी है. जिस कतकौली गांव में युद्ध हुआ था, वहां आज भी निशानी मौजूद है. गांव की धरती खून से लाल हो गयी थी. ईस्ट इंडिया कंपनी के हेक्टर मुनरो, मुगलों और नवाबों की सेना आपस में भिड़े थे. बंगाल के नवाब मीर कासीम, अवध के नवाब शुजाउदौला, मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना ने अंग्रेजों से लोहा लिया था.

कई साक्ष्य मौजूदः बताया जाता है कि इस युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों में मुसलमान और हिन्दू दोनों थे. युद्ध की समाप्ति के बाद चारो ओर लाशें दिखाई दे रही थी. काफी हिम्मत के बाद खून से लथपथ लाश का मजहब के अनुसार अंतिम संस्कार किया गया था. मुसलमान सैनिक को गांव के बाहर एक कुएं में दफन किया गया और हिन्दू सेना को गांव से 2 किमी दूर गंगा में प्रवाहित कर दिया गया. कुएं पर एक बगरद का पेड़ लगाया गया था जो आज एक विशाल वृक्ष बन गया है.

बक्सर की लड़ाई स्थल को पर्यटन स्थल बनाने की मांग
बक्सर की लड़ाई स्थल को पर्यटन स्थल बनाने की मांग (ETV Bharat)

क्यों हार गए थे भारतीय शासकः इतिहासकार बताते हैं कि कैप्टन मुनरो के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों की संख्या 17,072 थी. 1,859 ब्रिटिश नियमित सैनिक, 5,297 भारतीय सिपाही और 9,189 भारतीय घुड़सवार शामिल थे. भारतीय शासकों की सेना की संख्या 40,000 से ज़्यादा थी. किंतु भारतीय शासक अंग्रेजों से बुरी तरह हार गए थे. बताया जाता है कि हार का बड़ा कारण तीनों संयुक्त भारतीय शासकों के बीच आपसी समन्वय की कमी थी.

2000 भारतीय सेना मारे गए थेः कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ब्रिटिश सैनिकों में मरने वालों की कुल संख्या 847 के करीब थी. यूरोपीय रेजिमेंट से 39 मारे गए और 64 घायल हुए, ईस्ट इंडिया कंपनी के 250 मारे गए तथा 435 घायल हुए. वहीं 85 लापता हो गए थे. भारतीय सेनाओं के लिए दावा किया जाता है कि 2000 सैनिक मारे गए और कई अन्य घायल हुए.

बक्सर की लड़ाई का कुआं जिसमें सैनिक के शव हुए थे दफन
बक्सर की लड़ाई का कुआं जिसमें सैनिक के शव हुए थे दफन (ETV Bharat)

पर्यटन स्थल बनाने की मांगः यह ऐतिहासिक स्थल धीरे-धीरे अब जर्जर होने के कगार पर है. बदलाही का आंसू बहा रहे इस स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में बदलने की लोग मांग कर रहे हैं. सीएम नीतीश कुमार भी इस गांव में आ चुके हैं. उनके सामने भी इस मांग को ग्रामीणों ने रखा था. इसके बावजूद आज तक पूरा नहीं किया गया.

डीएम ने कहा होगी पहलः इस मामले में बक्सर के डीएम अंशुल अग्रवाल ने बताया कि विभागीय या नगर परिषद स्तर पर इस ओर पहल की जाएगी. जाहिर सी बात है अगर इसका विकास होगा तो यहां के लोगों को रोजगार मिलेगा और लोग आर्थिक रूप से विकसित होंगे. बता दें कि यहां देश-विदेशों से सैलानी स्थल घूमने आते हैं और उस युद्ध स्थल का भ्रमण करते हैं.

"यह एक ऐतिहासिक स्थल है. जानकारी है कि वहां कई विदेशी सैलानियों का आगमन होता है. चौसा की तरह इसका भी विकास किया जाएगा. विभागीय स्तर या फिर नगर परिषद स्तर से इस ओर पहल किया जाएगा." -अंशुल अग्रवाल, डीएम, बक्सर

बक्सर की लड़ाई का विजयी स्मारक
बक्सर की लड़ाई का विजयी स्मारक (ETV Bharat)

इस गांव में कभी नहीं गयी पुलिसः बता दें कि यह वही कतकौली गांव है जहां आज तक पुलिस नहीं गयी. यहां के लोगों ने 1764 में इतना रक्तपात देखा कि लड़ाई क्या होता है, यह सोचकर ही डरते हैं. छोटा-मोटा विवाद लोग खुद सुलझा लेते हैं. इसकी पुष्टि खुद बक्सर पुलिस करती है कि इस गांव के लोग काफी समझदार हैं. आज तक इस गांव में पुलिस नहीं गयी.

बक्सर में ही हुई थी चौसा की लड़ाईः चौसा की लड़ाई स्थल भी बक्सर में ही स्थित है. बक्सर से लगभग 16 किमी दूर दक्षिण पश्चिम में चौसा गांव स्थित है. 26 जून 1539 में मुगल सम्राट हुमायुं और अफगान शेरशाह सूरी के बीच हुई थी. इस लड़ाई में शेरशाह विजयी हुए थे. हुमायूं अपनी जान बचाने के लिए रणभूमि से भाग गया था.

बक्सर की लड़ाई स्थल को पर्यटन स्थल बनाने की मांग
बक्सर की लड़ाई स्थल को पर्यटन स्थल बनाने की मांग (ETV Bharat)

वेदगर्भा और व्याघ्रसर ऐतिहासिक नामः बक्सर को वेदगर्भा और व्याघ्रसर भी कहा जाता है. गंगा किनारे स्थित बक्सर पवित्र स्थान है. इसे मूल रूप से वेदगर्भ यानि वेद का गर्भ माना जाता है. इतिहासकार बताते हैं कि वैदिक भजनों के कई लेखक यहां रहते थे. इसका रहस्य भगवान श्रीराम के शुरुआती जीवन से भी जुड़ा है. व्याघ्रसर का मतलब है कि यहां बाघों का बसेरा हुआ करता था और एक बड़ा सरोवर भी था. इसलिए इसे व्याघ्रसर भी कहा जाता है.

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