नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों के मामले पर सुनवाई की. मामले में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुना. बर्खास्त कर्मचारियों की ओर से पैरवी कर रहे सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता देवी दत्त कामथ ने कोर्ट को अवगत कराया कि सरकार बदलने से नियमावली बदल नहीं जाती. वर्तमान सरकार ने जानबूझकर पूर्ववर्ती सरकार के द्वारा बनाए गए नियमों में हस्तक्षेप करके उन्हें (कर्मचारियों) बिना सुनवाई के मौका देते हुए बर्खास्त किया. मामले पर अगली सुनवाई 29 फरवरी 2024 को होगी.
मामले के मुताबिक, अपनी बर्खास्तगी के आदेश को बबीता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ठ, कुलदीप सिंह व 102 अन्य ने एकलपीठ में चुनौती दी है. याचिकाकर्ताओं का कहा गया है कि विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं 27, 28 व 29 सितंबर 2022 को समाप्त कर दी. बर्खास्तगी आदेश में उन्हें किस आधार पर किस कारण की वजह से हटाया गया. कहीं इसका उल्लेख नहीं किया गया, न ही उन्हें सुना गया. जबकि उनके द्वारा सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की भांति कार्य किया है. एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित नहीं है. यह आदेश विधि विरुद्ध है. विधानसभा सचिवालय में 396 पदों पर बैक डोर नियुक्तियां 2001 से 2015 के बीच में भी हुई है, जिनको नियमित किया जा चुका है.
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 2014 तक हुई तदर्थ नियुक्त कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई. किंतु उन्हें 6 वर्ष के बाद भी नियमित नहीं किया, अब उन्हें हटा दिया गया. पूर्व में उनकी नियुक्ति को 2018 में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गई थी. जिसमें कोर्ट ने उनके हित में आदेश देकर माना था कि उनकी नियुक्ति वैद्य है. जबकि नियमानुसार 6 माह की नियमित सेवा करने के बाद उन्हें नियमित किया जाना था.
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