देहरादूनः उत्तराखंड में ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की मांग एक बार फिर बुलंद है. कांग्रेस ने मुद्दे को बल देते हुए सरकार आने पर गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित करने का ऐलान किया है. हालांकि, कांग्रेस के इस बयान भाजपा ने चुटकी ली और कहा कि उन्होंने अपनी सरकार के दौरान इस महत्वपूर्ण फैसले पर मुहर क्यों नहीं लगाई? ऐसे में गैरसैंण राजधानी को लेकर कांग्रेस और भाजपा के बीच जुबानी जंग छिड़ी है.
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का कहना है कि कुछ लोगों की वजह से गैरसैंण स्थाई राजधानी नहीं बन पाई. उन्होंने स्वीकार किया है कि कांग्रेस सरकार के समय अगर अपनों ने ही रोड़ा नहीं अटकाया होता तो आज गैरसैंण स्थायी राजधानी बन चुकी होती. हरीश रावत का कहना है कि उनकी सरकार के समय गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की प्रक्रिया चल रही थी. लेकिन कुछ लोगों के चलते यह नहीं हो पाया. कुछ लोग अगर भाजपा में नहीं जाते तो आज गैरसैंण स्थायी राजधानी बन चुकी होती.
स्थायी राजधानी बनाए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हम जिस तरह से गैरसैंण के एजेंडे को लेकर चल रहे थे. वहां विधानसभा भवन का निर्माण कर दिया था. चार डिवीजनों वहां खड़ी कर दी गई थी. टाउनशिप की प्लानिंग तैयार कर ली गई थी. हेलीपैड और सड़कों का निर्माण कर दिया गया था. गैरसैंण और चौखुटिया को मिलाकर विकास बोर्ड गठित कर दिया गया था. गैरसैंण को जिला बनाने की प्लानिंग कर ली थी. सचिवालय बनाने के लिए 57 करोड़ रुपयों का प्रोविजन करके एक संस्था को टेंडर दे दिया गया था. 500 आवासीय भवनों को बनाने का प्रोजेक्ट मंजूर कर लिया गया था. लेकिन अगर उनकी सरकार को तब स्थिर नहीं किया जाता तो आज गैरसैंण स्थायी राजधानी बन गई होती.
हरीश रावत ने कहा कि अगर उस वक्त अगर कुछ लोगों द्वारा उनकी सरकार नहीं गिराई जाती और उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया जाता तो उत्तराखंड को स्थायी राजधानी मिल गई होती.
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