आगरा: पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण के साथ ही तीन बार ग्रैमी अवार्ड से नवाजे गए उस्ताद जाकिर हुसैन दुनिया से विदा हो गए. जिससे शहर शहर में उनके चाहने वाले मायूस हैं. हर कोई उनके साथ गुजारे वक्त को याद कर रहा है. लोग कह रहे हैं, कि तबले का उस्ताद यूं हीं खामोश नहीं हो सकता है. वे हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगे. आगरा की बात करें तो तबला वादन के उस्ताद जाकिर हुसैन ने ‘वाह ताज’ को दुनिया में लोकप्रिय कराया था.
उस्ताद जाकिर हुसैन का आगरा से गहरा नाता था. बात 1980 की है. जब ताजमहल से लगाव के चलते ही आईटीसी ग्रुप के कार्यक्रम में पहली बार 1980 के दशक में संगीत सम्मेलन में आए थे. आगरा के मशहूर गजल गायक सुधीर नारायण बताते हैं, कि 12 साल तक आईटीसी संगीत सम्मेलन में उस्ताद जाकिर हुसैन आगरा आए. सन 1992 तक उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपनी प्रस्तुति आईटीसी संगीत सम्मेलन के चलते आगरा के मुगल होटल में दी. आगरा के अधिकारियों की मानें तो बीते रविवार यानी 15 दिसंबर 2024 को भी आगरा में 11 सीढ़ी पार्क में उस्ताद जाकिर हुसैन का कार्यक्रम प्रस्तावित था. लेकिन, बात नहीं बनी. जिसकी वजह से ताज के साये में दोबारा फिर से उनके तबले की तान का जादू आगरा के लोग नहीं देख पाए.
ताजमहल के साए में दी थी प्रस्तुति: बात 15 जनवरी, 2014 की है. जब तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन आगरा आए थे. उन्होंने तब ताजमहल के साये में प्रस्तुति से सभी को रोमांचित कर दिया था. उन्होंने होटल क्लार्क शीराज में मीडिया से रूबरू होने पर ताज की शान में कसीदे गढे थे. कहा था कि ताजमहल देखने और ताजमहल के साए में प्रस्तुति का मौका किस्मत वालों को ही मिलता है. मैं भी किस्मत वाला हूं. यह बड़ी रूमानियत वाली जगह है. यहां पर प्रस्तुति देने पर संगीत में भी रूमानियत आ जाती है. ताजमहल मोहब्बत की दास्तां कहता है.
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2019 में पत्नी के साथ निहारा था ताज: बता दें, कि 5 फरवरी 2019 को पदम विभूषण तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन अपनी पत्नी कथक नृत्यांगना एंटोनियो मिनेकोला और उनकी दोस्त जूडी के साथ ताज का दीदार करने आये थे. उन्होंने करीब एक घंटे तक ताजमहल का दीदार किया. इस दौरान खूब फोटोग्राफी कराई. इसके बाद उन्होंने आगरा किला भी देखा. इसके तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन और उनकी पत्नी फतेहपुर सीकरी का भी भ्रमण करने गए. उन्होंने फतेहपुर सीकरी में तबला वादक उस्ताद जाकिर और उनकी पत्नी ने शेख सलीम चिश्ती की दरगाह पर चादरपोशी की थी.
जब ताज नेचर वॉक में तबला बोला था राधे कृष्ण: पदम विभूषण तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का तबले के साथ जुगलबंदी और ताज का एक विज्ञापन हर टीवी चैनल पर खूब लोकप्रिय हुआ था. विज्ञापन के जरिए दुनिया में ‘वाह ताज’ खूब मशहूर हुआ था. इसके साथ ही उस्ताद जाकिर हुसैन का तबला आगरा में आकर राधे कृष्णा बोलने लगा था. तब हजारों लोगों में ऐसी दीवानगी थी कि उन्होंने पार्क में जमीन पर ही बैठकर उस्ताद जाकिर हुसैन के तबले की थाप सुनी थी. कार्यक्रम में आया हर कोई उनकी कला के हुनर को देखकर उस वक्त सब हैरान रह गए, जब तबला राधे कृष्ण बोलने लगा था. अब उस्ताद जाकिर हुसैन ने तरह-तरह की आवाज में तबले पर थाप दी थीं.
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उस्ताद जाकिर हुसैन ने कहा था, कि विश्व के अधिकांश कलाकार सूफी हैं. क्योंकि, गजल, भजन, ठुमरी सभी शास्त्रीय संगीत पर आधारित हैं. ऊपर वाले को याद करना सूफीज्म है. इसलिए जो लोग सूफी संगीत को शास्त्रीय संगीत नहीं मानते वे संगीत का अपमान करते हैं. उस्ताद जाकिर हुसैन ने कहा था कि अमीर खुसरो ने कई दशक पूर्व हवेली संगीत और कव्वाली का मिश्रण करके ख्याल गायकी की शुरूआत की थी. उसी विरासत को मैं संभाल रहा हूं. मैं रियलिटी शो को अच्छा मानता हूं. इससे नई पीढ़ी में सुर और ताल की समझ आ रही है. नई पीढ़ी का संगीत के प्रति रुझान बढ़ रहा है.
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