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जनेऊ संस्कार क्यों कराते हैं? जनेऊ धारण करने के क्या नियम हैं, जानिए - Upnayan SANSKAR

जनेऊ संस्कार को यज्ञोपवीत संस्कार भी कहा जाता है. हिंदू धर्म में जनेऊ संस्कार को प्रमुख संस्कार माना गया है. हिंदू धर्म में 16 तरह के संस्कार होते हैं, जिसमें से एक संस्कार जनेऊ संस्कार होता है. आइए जानते हैं कि आखिर जनेऊ संस्कार क्यो इतना महत्वपूर्ण माना जाता है.

UPNAYAN SANSKAR
जनेऊ संस्कार (Etv Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : May 3, 2024, 9:09 AM IST

जनेऊ संस्कार का महत्व (ETV Bharat Chhattisgarh)

रायपुर: मनु महाराज का वचन है कि पहला जन्म माता के पेट से होता है. माता की गर्भ से जो जन्म होता है, उस पर जन्म जन्मांतर के संस्कार हावी रहते हैं. इसी को द्विज अर्थात दूसरा जन्म भी कहते हैं. जनेऊ संस्कार या यज्ञोपवित दुजत्व की सिद्धि के लिए कराया जाता है. जनेऊ संस्कार में 3 प्रक्रिया होती है, जिसमें पहले उपनयन, दूसरा वेदआरंभ और तीसरा समावर्तन. 16 संस्कारों में जनेऊ संस्कार का स्थान दसवें नंबर पर आता है.

जनेऊ संस्कार का महत्व: ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी ने बताया कि "बच्चा जब 5 वर्ष का होता है, तो उसका उपनयन किया जाता है. उसके बाद उसे यज्ञोपवीत पहनाया जाता है. यज्ञोपवीत यानी यज्ञ के लिए पवित्र करना होता है. उपनयन यानी कि बच्चों को स्कूल ले जाने की प्रक्रिया को कहा जाता है. आश्रम में रहकर गुरु की सेवा करना, यज्ञ के लिए समिधा (लकड़ी) इकट्ठा करना, गुरु के लिए भिक्षा मांगना, यहा सब गुरु आश्रम का हिस्सा होता है.

"जनेऊ संस्कार बच्चे के गुरु आश्रम जाने से पहले किया जाता है. गुरु के आश्रम में बच्चों को चार वेदों का अध्ययन कराया जाता है. ज्ञानी होने के साथ ही वह वेदपाठी और सुविज्ञ हो जाता है. उसके बाद बच्चा अपने घर वापस लौटकर आता है. इसे समावर्तन कहा जाता है." - पं प्रिया शरण त्रिपाठी, ज्योतिष और वास्तुविद

क्या होता है समावर्तन? : समावर्तन, यानी बच्चे का आश्रम में पढ़ाई करके वापस आना कहलाता है. यज्ञोपवीत या जनेऊ संस्कार मनुष्यता की सिद्धि के लिए आवश्यक है. शास्त्रों में लिखा है कि प्रत्येक ब्राह्मण के लिए गायत्री मंत्र सिद्धि आवश्यक है इसके साथ ही यज्ञोपवीत होना भी आवश्यक है."

क्या होता है जनेऊ? : जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है. जिसे पुरुष अपने बाएं कंधे के ऊपर से दाएं भुजा के नीचे तक पहनते हैं. यज्ञोपवीत (जनेऊ) के तीन लड़ सृष्टि के समस्त पहलुओं में फैले त्रिविध धर्म की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं. इस तरह जनेऊ नौ तारों से निर्मित होता है.

जनेऊ का महत्व: यज्ञोपवीत (जनेऊ) को देवऋण, पितृ ऋण और ऋषि ऋण का प्रतीक माना गया है. यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन तीन तार होते हैं. यह नौ तार शरीर के नौ द्वार माने गए हैं. एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र माने गए हैं. जनेऊ में लगाई जाने वाली पांच गांठे ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक मानी गई है. यही कारण है कि जनेऊ को हिंदू धर्म में बहुत पवित्र माना गया है.

जनेऊ धारण करने के नियम: जनेऊ की शुद्धता को बनाए रखने के लिए इसके कुछ नियमों का पालन आवश्यक है. जनेऊ को मल मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथों को धोकर ही इसे कान से उतारना चाहिए. यदि जनेऊ का कोई तार टूट जाये तो इसे बदल लेना चाहिए. इसे पहनने के बाद तभी उतारना चाहिए जब आप नया यज्ञोपवीत पवित्र धारण करते हैं.

नोट: यहां प्रस्तुत सारी बातें पंडित जी की तरफ से बताई गई बातें हैं. इसकी पुष्टि ईटीवी भारत नहीं करता है.

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जनेऊ संस्कार का महत्व (ETV Bharat Chhattisgarh)

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जनेऊ संस्कार का महत्व: ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी ने बताया कि "बच्चा जब 5 वर्ष का होता है, तो उसका उपनयन किया जाता है. उसके बाद उसे यज्ञोपवीत पहनाया जाता है. यज्ञोपवीत यानी यज्ञ के लिए पवित्र करना होता है. उपनयन यानी कि बच्चों को स्कूल ले जाने की प्रक्रिया को कहा जाता है. आश्रम में रहकर गुरु की सेवा करना, यज्ञ के लिए समिधा (लकड़ी) इकट्ठा करना, गुरु के लिए भिक्षा मांगना, यहा सब गुरु आश्रम का हिस्सा होता है.

"जनेऊ संस्कार बच्चे के गुरु आश्रम जाने से पहले किया जाता है. गुरु के आश्रम में बच्चों को चार वेदों का अध्ययन कराया जाता है. ज्ञानी होने के साथ ही वह वेदपाठी और सुविज्ञ हो जाता है. उसके बाद बच्चा अपने घर वापस लौटकर आता है. इसे समावर्तन कहा जाता है." - पं प्रिया शरण त्रिपाठी, ज्योतिष और वास्तुविद

क्या होता है समावर्तन? : समावर्तन, यानी बच्चे का आश्रम में पढ़ाई करके वापस आना कहलाता है. यज्ञोपवीत या जनेऊ संस्कार मनुष्यता की सिद्धि के लिए आवश्यक है. शास्त्रों में लिखा है कि प्रत्येक ब्राह्मण के लिए गायत्री मंत्र सिद्धि आवश्यक है इसके साथ ही यज्ञोपवीत होना भी आवश्यक है."

क्या होता है जनेऊ? : जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है. जिसे पुरुष अपने बाएं कंधे के ऊपर से दाएं भुजा के नीचे तक पहनते हैं. यज्ञोपवीत (जनेऊ) के तीन लड़ सृष्टि के समस्त पहलुओं में फैले त्रिविध धर्म की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं. इस तरह जनेऊ नौ तारों से निर्मित होता है.

जनेऊ का महत्व: यज्ञोपवीत (जनेऊ) को देवऋण, पितृ ऋण और ऋषि ऋण का प्रतीक माना गया है. यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन तीन तार होते हैं. यह नौ तार शरीर के नौ द्वार माने गए हैं. एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र माने गए हैं. जनेऊ में लगाई जाने वाली पांच गांठे ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक मानी गई है. यही कारण है कि जनेऊ को हिंदू धर्म में बहुत पवित्र माना गया है.

जनेऊ धारण करने के नियम: जनेऊ की शुद्धता को बनाए रखने के लिए इसके कुछ नियमों का पालन आवश्यक है. जनेऊ को मल मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथों को धोकर ही इसे कान से उतारना चाहिए. यदि जनेऊ का कोई तार टूट जाये तो इसे बदल लेना चाहिए. इसे पहनने के बाद तभी उतारना चाहिए जब आप नया यज्ञोपवीत पवित्र धारण करते हैं.

नोट: यहां प्रस्तुत सारी बातें पंडित जी की तरफ से बताई गई बातें हैं. इसकी पुष्टि ईटीवी भारत नहीं करता है.

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