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वक्फ बोर्ड एक्ट में संशोधन से यूपी शिया और सुन्नी बोर्ड की कितनी संपत्तियों पर है खतरा? - Waqf Board Act Amendment Bill

केंद्र सरकार वक्फ बोर्ड एक्ट संशोधन बिल की तैयारी कर रही है. ऐसे में आइए जानते हैं कि इस संशोधन से उत्तर प्रदेश शिया और सुन्नी बोर्ड की कितनी संपत्तियां सरकार की अधीन हो सकती हैं.

यूपी शिया और सुन्नी बोर्ड.
यूपी शिया और सुन्नी बोर्ड. (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 5, 2024, 6:17 PM IST

लखनऊः केंद्र सरकार वक्फ बोर्ड एक्ट संशोधन बिल के संकेत पर एक बार फिर वक्फ बोर्ड की संपत्तियां एक बार फिर से चर्चा में है. अगर यह संशोधन बिल लागू हो गया तो वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर संकट आ सकता है. आंकड़ों के अनुसार देशभर में भारतीय सेना और रेलवे के बाद वक्फ बोर्ड के पास ही सबसे अधिक संपत्ति है. भारत में 8 लाख एकड़ से अधिक संपत्ति वक्फ बोर्ड के पास है. इसमें भी उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक है.

मौलान और धर्म गुरु नाराज
एक रिपोर्ट्स के अनुसार मथुरा के शाही ईदगाह से लेकर वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद, लखनऊ का ऐशबाग ईदगाह और यहां तक लखनऊ का राजभवन भी वक्फ की संपत्ति पर बना है. इसके अलावा हर साल बड़ी संख्या में लोग अपनी जमीन वक्फ को दान कर देते हैं, इससे बोर्ड की दौलत में इजाफा होता रहता है. इसलिए प्रदेश के मौलाना और मुस्लिम धर्मगुरु भी इस बिल से खुश नहीं है.

यूपी शिया बोर्ड के पास 15 हजार 386 संपत्ति
उत्तर प्रदेश में शिया बोर्ड के पास कुल 15 हजार 386 संपत्तियां है. इनके पास कुछ ऐतिहासिक संपत्तियां भी है, जो कई शहरों में भी हैं. इमामबाड़ा काशबाग रामपुर, फैजाबाद में बहू बेगम का मकबरा, लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा और छोटा इमामबाड़ा, रामपुर में इमामबाड़ा किला -ए-मुअल्ला, बिजनौर में दरगाहे आलिया नजफ़-ए-हिन्द, आगरा में मजार शहीद-ए-सालिस भी शिया बोर्ड की संपत्ति है.

यूपी सुन्नी बोर्ड की एतिहास संपत्ति
इसी तरह उत्तर प्रदेश में सुन्नी बोर्ड के पास मौजूदा में कुल 2 लाख 10 हजार 239 संपत्तियां है. इनमें टीले वाली मस्जिद लखनऊ, शाही अटाला मस्जिद जौनपुर, दरगाह सैयद सालार मसूद गाजी बहराइच, सलीम चिस्ती का मकबरा फतेहपुर सीकरी, धरहरा मस्जिद वाराणसी, जामा मस्जिद लखनऊ और नादान महल मकबरा लखनऊ ऐतिहासिक संपत्तियां हैं.


वक्फ को दान में कैसे मिलती है संपत्ति
कोई भी वयस्क मुस्लिम व्यक्ति अपने नाम की प्रॉपर्टी वक्फ के नाम कर सकता है. वक्फ एक स्वैच्छिक कार्रवाई है, जिसके लिए कोई जबर्दस्ती नहीं. इस्लाम में दान-धर्म के लिए एक और टर्म प्रचलित है, जिसे जकात कहते हैं. ये हैसियतमंद मुसलमानों के लिए अनिवार्य है. आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है, उसका 2.5 फीसदी हिस्सा किसी जरूरतमंद को दिया जाता है. इसी तरह संपत्ति भी दी जाती है. प्रदेश के साथ पूरे देश में कई लोगों ने अपनी संपत्ति वक्फ को दान की है.

इस तरह वक्फ बोर्ड करता है काम
वक्फ की संपत्ति का रखरखाव ठीक से हो सके और धर्मार्थ ही काम आए, इसके लिए स्थानीय से लेकर बड़े स्तर पर कई बॉडीज हैं, जिन्हें वक्फ बोर्ड कहते हैं. हर राज्य में सुन्नी और शिया वक्फ हैं. इनका काम उस संपत्ति की देखभाल और उसकी आय का सही इस्तेमाल करना है. इस संपत्ति से गरीब और जरूरतमंदों की मदद करना, मस्जिद या अन्य धार्मिक संस्थान को बनाए रखना, शिक्षा की व्यवस्था करना और अन्य धर्म के कार्यों के लिए पैसे देने संबंधी चीजें शामिल हैं. वक्फ बोर्डों के साथ तालमेल के लिए सेंटर वक्फ काउंसिल बना है.


बोर्ड में ये लोग होते हैं शामिल
वक्फ बोर्ड में कमिश्नर संपत्तियों का लेखा-जोखा रखते हैं. इसके अलावा बोर्ड में मुस्लिम विधायक, मुस्लिम सांसद, मुस्लिम आइएएस अधिकारी, मुस्लिम टाउन प्लानर, मुस्लिम अधिवक्ता और मुस्लिम बुद्धिजीवी जैसे लोग शामिल होते हैं. वक्फ ट्रिब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं. ट्रिब्यूनल में कौन शामिल होंगे, इसका फैसला राज्य सरकार करती है.

लखनऊः केंद्र सरकार वक्फ बोर्ड एक्ट संशोधन बिल के संकेत पर एक बार फिर वक्फ बोर्ड की संपत्तियां एक बार फिर से चर्चा में है. अगर यह संशोधन बिल लागू हो गया तो वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर संकट आ सकता है. आंकड़ों के अनुसार देशभर में भारतीय सेना और रेलवे के बाद वक्फ बोर्ड के पास ही सबसे अधिक संपत्ति है. भारत में 8 लाख एकड़ से अधिक संपत्ति वक्फ बोर्ड के पास है. इसमें भी उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक है.

मौलान और धर्म गुरु नाराज
एक रिपोर्ट्स के अनुसार मथुरा के शाही ईदगाह से लेकर वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद, लखनऊ का ऐशबाग ईदगाह और यहां तक लखनऊ का राजभवन भी वक्फ की संपत्ति पर बना है. इसके अलावा हर साल बड़ी संख्या में लोग अपनी जमीन वक्फ को दान कर देते हैं, इससे बोर्ड की दौलत में इजाफा होता रहता है. इसलिए प्रदेश के मौलाना और मुस्लिम धर्मगुरु भी इस बिल से खुश नहीं है.

यूपी शिया बोर्ड के पास 15 हजार 386 संपत्ति
उत्तर प्रदेश में शिया बोर्ड के पास कुल 15 हजार 386 संपत्तियां है. इनके पास कुछ ऐतिहासिक संपत्तियां भी है, जो कई शहरों में भी हैं. इमामबाड़ा काशबाग रामपुर, फैजाबाद में बहू बेगम का मकबरा, लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा और छोटा इमामबाड़ा, रामपुर में इमामबाड़ा किला -ए-मुअल्ला, बिजनौर में दरगाहे आलिया नजफ़-ए-हिन्द, आगरा में मजार शहीद-ए-सालिस भी शिया बोर्ड की संपत्ति है.

यूपी सुन्नी बोर्ड की एतिहास संपत्ति
इसी तरह उत्तर प्रदेश में सुन्नी बोर्ड के पास मौजूदा में कुल 2 लाख 10 हजार 239 संपत्तियां है. इनमें टीले वाली मस्जिद लखनऊ, शाही अटाला मस्जिद जौनपुर, दरगाह सैयद सालार मसूद गाजी बहराइच, सलीम चिस्ती का मकबरा फतेहपुर सीकरी, धरहरा मस्जिद वाराणसी, जामा मस्जिद लखनऊ और नादान महल मकबरा लखनऊ ऐतिहासिक संपत्तियां हैं.


वक्फ को दान में कैसे मिलती है संपत्ति
कोई भी वयस्क मुस्लिम व्यक्ति अपने नाम की प्रॉपर्टी वक्फ के नाम कर सकता है. वक्फ एक स्वैच्छिक कार्रवाई है, जिसके लिए कोई जबर्दस्ती नहीं. इस्लाम में दान-धर्म के लिए एक और टर्म प्रचलित है, जिसे जकात कहते हैं. ये हैसियतमंद मुसलमानों के लिए अनिवार्य है. आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है, उसका 2.5 फीसदी हिस्सा किसी जरूरतमंद को दिया जाता है. इसी तरह संपत्ति भी दी जाती है. प्रदेश के साथ पूरे देश में कई लोगों ने अपनी संपत्ति वक्फ को दान की है.

इस तरह वक्फ बोर्ड करता है काम
वक्फ की संपत्ति का रखरखाव ठीक से हो सके और धर्मार्थ ही काम आए, इसके लिए स्थानीय से लेकर बड़े स्तर पर कई बॉडीज हैं, जिन्हें वक्फ बोर्ड कहते हैं. हर राज्य में सुन्नी और शिया वक्फ हैं. इनका काम उस संपत्ति की देखभाल और उसकी आय का सही इस्तेमाल करना है. इस संपत्ति से गरीब और जरूरतमंदों की मदद करना, मस्जिद या अन्य धार्मिक संस्थान को बनाए रखना, शिक्षा की व्यवस्था करना और अन्य धर्म के कार्यों के लिए पैसे देने संबंधी चीजें शामिल हैं. वक्फ बोर्डों के साथ तालमेल के लिए सेंटर वक्फ काउंसिल बना है.


बोर्ड में ये लोग होते हैं शामिल
वक्फ बोर्ड में कमिश्नर संपत्तियों का लेखा-जोखा रखते हैं. इसके अलावा बोर्ड में मुस्लिम विधायक, मुस्लिम सांसद, मुस्लिम आइएएस अधिकारी, मुस्लिम टाउन प्लानर, मुस्लिम अधिवक्ता और मुस्लिम बुद्धिजीवी जैसे लोग शामिल होते हैं. वक्फ ट्रिब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं. ट्रिब्यूनल में कौन शामिल होंगे, इसका फैसला राज्य सरकार करती है.

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