लखनऊ : लोकसभा चुनाव 2024 में बहुजन समाज पार्टी की उम्मीदें पूरी तरह चकनाचूर हो गईं. 2019 में 10 सीटें जीतने वाली बसपा को उम्मीद थी कि इस बार भी पार्टी अच्छा प्रदर्शन करेगी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. इसके पीछे बड़ी वजह ये है कि इस बार बीएसपी ने देश भर में अपने बलबूते पर चुनाव लड़ा, जबकि अन्य पार्टियां गठबंधन में चुनाव लड़ रही थीं. बहुजन समाज पार्टी का मत प्रतिशत गिरा और सीटें भी नहीं आईं. बीएसपी की राह दिन प्रतिदिन कठिन होती जा रही है.
साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की हालत 2014 जैसी हो गई. पार्टी 10 साल पीछे चली गई. 2014 में बहुजन समाज पार्टी अपने बल पर चुनाव लड़ी थी और एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई थी. 2024 में भी पार्टी ने अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला लिया और पार्टी एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई. पार्टी की स्थिति बदतर होती जा रही है. पार्टी के देश भर में 483 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे जबकि उत्तर प्रदेश में 79 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन कहीं से भी बहुजन समाज पार्टी के लिए खुशखबरी नहीं आई.
देश भर में पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा. 428 सीट में से एक भी सीट पर बसपा का हाथी दौड़ ही नहीं पाया. हाथी थक हारकर बैठ गया. बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती का अपने बलबूते चुनाव लड़ने का फैसला अब बीएसपी के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को भी रास नहीं आ रहा है. लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के पदाधिकारियों ने भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. स्टार प्रचारक के तौर पर 40 स्टार प्रचारकों में से कोई भी जमीन पर मेहनत करते नजर नहीं आया.
दो चरणों तक बहुजन समाज पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर रहे आकाश आनंद ने जमकर प्रचार कर बसपा के पक्ष में माहौल बनाया, लेकिन सीतापुर में एक जनसभा के दौरान उनकी जुबान फिसली और मुकदमा दर्ज हो गया. इसके बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने आकाश आनंद से नेशनल कोऑर्डिनेटर के पद के साथ ही उत्तराधिकारी का अधिकार भी छीन लिया. उन पर पूरे चुनाव भर प्रचार करने पर रोक लगा दी. इससे बहुजन समाज पार्टी की स्थिति और भी खराब हो गई. आकाश आनंद के जरिए प्रदेश में जो माहौल बन रहा था वह सब खत्म हो गया.
यह भी पढ़ें : बीजेपी के बड़े नेता लेते रहे जिम्मेदारी लेकिन अपने गढ़ में ही पार्टी प्रत्याशियों को नहीं दिला पाए जीत