लखनऊ: योगी आदित्यनाथ सरकार ने पुलिस महानिदेशक (DGP) चयन नियमावली 2024 को मंजूरी दे दी है. इसके तहत अब यूपी में डीजीपी पद के लिए लोक सेवा आयोग को अधिकारियों के नाम नहीं भेजने पड़ेंगे. सरकार अपनी पसंद के आईपीएस अफसर को पुलिस महानिदेशक बना सकेगी. इसके लिए छह सदस्य चयन कमेटी का गठन किया गया है. उत्तर प्रदेश देश का अब चौथा ऐसा राज्य बन गया है, जिसने डीजीपी नियमावली को मंजूरी दी है. उत्तर प्रदेश सरकार की सोमवार को हुई कैबिनेट मीटिंग में डीजीपी नियमावली 2024 को मंजूरी दी थी. वहीं, सपा मुखिया अखिलेश यादव ने डीजीपी नियमावली लागू करने को लेकर तंज कसा है.
संघ लोक सेवा आयोग को नहीं भेजने पड़ेंगे अधिकारियों के नाम
अब रिटायर्ड हाई कोर्ट जज की अध्यक्षता वाली पांच सदस्य कमेटी डीजीपी का सिलेक्शन करेगी. इस समिति में मुख्य सचिव, यूपीएससी की तरफ से नामित एक अफसर, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या उनकी ओर से नामित व्यक्ति, अपर मुख्य सचिव या प्रमुख सचिव गृह और एक रिटायर्ड डीजीपी शामिल रहेंगे. अभी तक उत्तर प्रदेश में पिछले तीन सालों से स्थाई पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति नहीं की जा सकी है. अब नई नियमावली बनने के बाद सरकार को स्थाई तौर पर डीजीपी की नियुक्ति के लिए संघ लोक सेवा आयोग की मंजूरी की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.
सुना है किसी बड़े अधिकारी को स्थायी पद देने और और उसका कार्यकाल 2 साल बढ़ाने की व्यवस्था बनायी जा रही है… सवाल ये है कि व्यवस्था बनानेवाले ख़ुद 2 साल रहेंगे या नहीं।
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) November 5, 2024
कहीं ये दिल्ली के हाथ से लगाम अपने हाथ में लेने की कोशिश तो नहीं है।
दिल्ली बनाम लखनऊ 2.0
दो साल का होगा कार्यकाल
बता दें कि साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति को लेकर एक याचिका की सुनवाई के दौरान पुलिस व्यवस्था को सभी दबाव से मुक्त करने के लिए प्रदेश सरकारों से नई व्यवस्था बनाने की बात कही थी. इसके बाद पंजाब, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश सरकारों ने पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति से संबंधित नियमावली बना ली. अब उत्तर प्रदेश देश का चौथा राज्य बन गया है, जिसने डीजीपी की नियुक्ति के लिए नई नियमावली तैयार की है. इस नियमावली में स्पष्ट किया गया है कि अब पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति आईपीएस अफसर के बेहतर सेवा रिकॉर्ड और अनुभव के आधार पर ही होगी. उन्हीं अफसर को चयन के लिए अहमियत दी जाएगी, जिनका कम से कम छह माह का कार्यकाल शेष हो. डीजीपी की नियुक्ति कम से कम दो साल के लिए की जाएगी. हालांकि इसी नियमावली में यह भी शर्त रखी गई है कि अगर सरकार डीजीपी के काम से असंतुष्ट होती है तो पद से हटा भी सकती है.
दिल्ली बनाम लखनऊ 2.0
अखिलेश यादव ने एक्स पोस्ट पर लिखा है कि 'सुना है किसी बड़े अधिकारी को स्थायी पद देने और और उसका कार्यकाल 2 साल बढ़ाने की व्यवस्था बनायी जा रही है. सवाल ये है कि व्यवस्था बनानेवाले ख़ुद 2 साल रहेंगे या नहीं. कहीं ये दिल्ली के हाथ से लगाम अपने हाथ में लेने की कोशिश तो नहीं है. दिल्ली बनाम लखनऊ 2.0'. गौरतलब है कि करीब ढाई साल से उत्तर प्रदेश में कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति की जा रही है. इस दौरान वर्तमान पुलिस मुखिया प्रशांत कुमार सहित चार आईपीएस अधिकारी बतौर कार्यवाहक प्रदेश की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. हालांकि नई नियमावली के बाद माना जा रहा है कि राज्य को जल्द ही एक स्थायी डीजीपी मिल जाएगा.
पूर्व डीजीपी ने नियमावली खारिज होने का किया दावा
योगी कैबिनेट के इस फैसले पर उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक सुलखान सिंह ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, उत्तर प्रदेश में पुलिस महानिदेशक के चयन के लिए बनाई गई नियमावली खारिज हो सकती है. ये दावा पूर्व डीजीपी और हाईकोर्ट में वकील सुलखान सिंह ने किया है. सुलखान सिंह ने कहा कि, राज्य सरकार को नियमावली बनाने की शक्ति है, लेकिन डीजीपी की तैनाती के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2019 में एक फैसला दिया है कि, कोई भी ऐसा कानून, एक्ट या रूल जो इस फैसले की भावना के खिलाफ है, वह स्थगित रहेगा. यह जो नियमावली बन रही है ये सुप्रीम कोर्ट की उस फैसले की भावना के विपरीत है.
क्या था पुराना नियम?
वर्तमान चयन प्रक्रिया की बात की जाए तो यूपी में डीजीपी चयन की व्यवस्था यह है कि सरकार पुलिस सेवा में 30 साल पूरा कर चुके उन अफसर का नाम लोक सेवा आयोग को भेजती थी, जिनका कम से कम छह माह का कार्यकाल बाकी हो. संघ लोक सेवा आयोग को सरकार तीन अफसरों के नाम का पैनल भेजती थी जिसमें से सरकार किसी एक को डीजीपी नियुक्त करती थी. वर्तमान में यूपी के कार्यवाहक डीजीपी प्रशांत कुमार हैं. वह 31 मई 2025 को रिटायर होंगे. अभी उनके रिटायर होने में छह माह से ज्यादा का समय है. नई नियमावली लागू होने पर सिलेक्शन कमिटी डीजीपी प्रशांत कुमार के नाम पर भी विचार कर सकती है.
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