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इमरजेंसी के 49 साल; यूपी के पहले "मीसा बंदी" आज हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल, गोरखपुर से हुई थी शिव प्रताप शुक्ला की गिरफ्तारी - MISA Emergency

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jun 25, 2024, 11:10 AM IST

Emergency in India: शिव प्रताप शुक्ला उस समय वह आखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पदाधिकारी थे और शहर के शास्त्री चौक स्थित चंद्रलोक लॉज के अपने परिषद के कार्यालय में मौजूद थे. जहां से पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था. जेल से छूटने के बाद शुक्ला विद्यार्थी परिषद से होते हुए भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में सक्रिय हुए. उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, ओमप्रकाश गुप्ता समेत कई सरकार के मंत्रिमंडल में मंत्री रहे.

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इमरजेंसी के 49 साल, यूपी के पहले "मीसा बंदी" (फोटो क्रेडिट; Etv Bharat)

गोरखपुर: Emergency in India: आज 25 जून है. आज ही के दिन वर्ष 1975 में देश के अंदर इमरजेंसी लागू हुई थी. इस इमरजेंसी के दौरान जिन लोगों को जेल जाना पड़ा था, ऐसे लोगों को "मीसाबंदी" के रूप में जाना जाता है. कांग्रेस की इंदिरा गांधी की सरकार में इमरजेंसी की इस घटना ने देश में जहां कई बड़े नेताओं को जहां जन्म दिया, वहीं देश को एक नई राजनीतिक दिशा देने का भी कार्य इस इमरजेंसी की घटना ने किया था.

खुद इंदिरा गांधी की सरकार इसकी वजह से चली गई थी, तो कई नेता जो इस इमरजेंसी की उपज थे, वह देश और प्रदेश की सत्ता के मुखिया रहे. मौजूदा दौर में भी तमाम ऐसे नेता हैं जो सत्ता के विभिन्न पदों पर आसीन हैं. इन्हीं में से एक हैं हिमाचल प्रदेश के मौजूदा राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला, जो उत्तर प्रदेश में मीसाबंदी के रूप में सबसे पहले गोरखपुर से गिरफ्तार किए गए थे.

उस समय वह आखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पदाधिकारी थे और शहर के शास्त्री चौक स्थित चंद्रलोक लॉज के अपने परिषद के कार्यालय में मौजूद थे. जहां से पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था. जेल से छूटने के बाद शुक्ला विद्यार्थी परिषद से होते हुए भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में सक्रिय हुए. उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, ओमप्रकाश गुप्ता समेत कई सरकार के मंत्रिमंडल में मंत्री रहे.

मोदी सरकार पार्ट- 2 में उन्हें भारत सरकार के वित्त राज्य मंत्री होने का भी गौरव हासिल हुआ तो, पिछले दो वर्षों से वह हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल की भूमिका बखूबी निभा रहे हैं. जब शिव प्रताप शुक्ला की गिरफ्तारी हुई थी तो उनकी उम्र महज 22 वर्ष थी. उनके ऊपर इंदिरा गांधी की हत्या करने की साजिश का आरोप लगा था.

शिव प्रताप शुक्ला के भतीजे और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अष्टभुजा शुक्ल इस संबंध में बताते हैं कि, इमरजेंसी की घटना की कहानी वह अपने चाचा से सुने हैं. उसके मुताबिक जो लोग उस समय गिरफ्तार हुए थे उन्हें न्यायालय से रिहाई नहीं मिल रही थी. यही वजह था कि उन्हें जेल में लंबा समय बिताना पड़ा. कई लोगों को तो बिजली के तार काटने के झूठे जुल्म में भी गिरफ्तार किया गया था.

उनके चाचा के साथी 14 वर्षीय उम्र के तत्कालीन बालक चिरंजीवी चौरसिया को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. उन्हें भी कड़ी यातनाएं दी थीं. चिरंजीव चौरसिया भी भाजपा के सक्रिय नेता, गोरखपुर के डिप्टी मेयर और मौजूदा समय में भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश पिछड़ा प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष की भूमिका निभा रहे हैं.

अष्टभुजा ने बताया कि उनके चाचा शिव प्रताप शुक्ला इमरजेंसी के दौरान गिरफ्तार किए गए, तब उनके बड़े भाई, राम प्रताप शुक्ला शहर के प्रतिष्ठित अधिवक्ता थे. वह उनकी जमानत कराने का प्रयास किए, लेकिन शिव प्रताप ने अपनी जमानत कराने से इनकार कर दिया था. वह जेल के अंदर से ही अपनी आवाज उठाते रहते थे. इसके चलते अपने साथियों के साथ उन्हें भी कई बार पुलिस की लाठी खानी पड़ी थी.

लेकिन, उनके अंदर जो राष्ट्रभक्ति की अटूट भावना थी, वह उनकी जेल यात्रा से टूटी नहीं, बल्कि और मजबूत हुई. जब वह जेल से बाहर निकले तो राजनीति में धीरे-धीरे इतने तपते गए कि गोरखपुर की जनता ने उन्हें पांच बार अपना विधायक चुना. वह राज्यसभा के लिए भी चुने गए. प्रदेश से लेकर केंद्र में मंत्री और आज राज्यपाल की भूमिका निभाते हुए, वह अपने दायित्वों का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं.

शिव प्रताप शुक्ला करीब 19 महीने तक जेल में रहे, इसके बाद उनकी रिहाई हुई. उनकी गिरफ्तारी से घर परिवार के लोग परेशान हो गए थे. अष्टभुजा कहते हैं कि उनके दादाजी उस समय बंगाल में रहा करते थे. दादी गांव पर थीं. परिवार के अन्य सदस्य भी चाचा की गिरफ्तारी से परेशान थे. जबकि उनकी रिहाई का प्रयास उनके बड़े भाई एडवोकेट राम प्रताप शुक्ला कर रहे थे और रिहाई भी मिल जाती लेकिन, वह देश के लिए संघर्ष में शामिल रहना ही उचित समझे और 19 महीने बाद रिहा हुए.

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गोरखपुर: Emergency in India: आज 25 जून है. आज ही के दिन वर्ष 1975 में देश के अंदर इमरजेंसी लागू हुई थी. इस इमरजेंसी के दौरान जिन लोगों को जेल जाना पड़ा था, ऐसे लोगों को "मीसाबंदी" के रूप में जाना जाता है. कांग्रेस की इंदिरा गांधी की सरकार में इमरजेंसी की इस घटना ने देश में जहां कई बड़े नेताओं को जहां जन्म दिया, वहीं देश को एक नई राजनीतिक दिशा देने का भी कार्य इस इमरजेंसी की घटना ने किया था.

खुद इंदिरा गांधी की सरकार इसकी वजह से चली गई थी, तो कई नेता जो इस इमरजेंसी की उपज थे, वह देश और प्रदेश की सत्ता के मुखिया रहे. मौजूदा दौर में भी तमाम ऐसे नेता हैं जो सत्ता के विभिन्न पदों पर आसीन हैं. इन्हीं में से एक हैं हिमाचल प्रदेश के मौजूदा राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला, जो उत्तर प्रदेश में मीसाबंदी के रूप में सबसे पहले गोरखपुर से गिरफ्तार किए गए थे.

उस समय वह आखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पदाधिकारी थे और शहर के शास्त्री चौक स्थित चंद्रलोक लॉज के अपने परिषद के कार्यालय में मौजूद थे. जहां से पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था. जेल से छूटने के बाद शुक्ला विद्यार्थी परिषद से होते हुए भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में सक्रिय हुए. उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, ओमप्रकाश गुप्ता समेत कई सरकार के मंत्रिमंडल में मंत्री रहे.

मोदी सरकार पार्ट- 2 में उन्हें भारत सरकार के वित्त राज्य मंत्री होने का भी गौरव हासिल हुआ तो, पिछले दो वर्षों से वह हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल की भूमिका बखूबी निभा रहे हैं. जब शिव प्रताप शुक्ला की गिरफ्तारी हुई थी तो उनकी उम्र महज 22 वर्ष थी. उनके ऊपर इंदिरा गांधी की हत्या करने की साजिश का आरोप लगा था.

शिव प्रताप शुक्ला के भतीजे और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अष्टभुजा शुक्ल इस संबंध में बताते हैं कि, इमरजेंसी की घटना की कहानी वह अपने चाचा से सुने हैं. उसके मुताबिक जो लोग उस समय गिरफ्तार हुए थे उन्हें न्यायालय से रिहाई नहीं मिल रही थी. यही वजह था कि उन्हें जेल में लंबा समय बिताना पड़ा. कई लोगों को तो बिजली के तार काटने के झूठे जुल्म में भी गिरफ्तार किया गया था.

उनके चाचा के साथी 14 वर्षीय उम्र के तत्कालीन बालक चिरंजीवी चौरसिया को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. उन्हें भी कड़ी यातनाएं दी थीं. चिरंजीव चौरसिया भी भाजपा के सक्रिय नेता, गोरखपुर के डिप्टी मेयर और मौजूदा समय में भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश पिछड़ा प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष की भूमिका निभा रहे हैं.

अष्टभुजा ने बताया कि उनके चाचा शिव प्रताप शुक्ला इमरजेंसी के दौरान गिरफ्तार किए गए, तब उनके बड़े भाई, राम प्रताप शुक्ला शहर के प्रतिष्ठित अधिवक्ता थे. वह उनकी जमानत कराने का प्रयास किए, लेकिन शिव प्रताप ने अपनी जमानत कराने से इनकार कर दिया था. वह जेल के अंदर से ही अपनी आवाज उठाते रहते थे. इसके चलते अपने साथियों के साथ उन्हें भी कई बार पुलिस की लाठी खानी पड़ी थी.

लेकिन, उनके अंदर जो राष्ट्रभक्ति की अटूट भावना थी, वह उनकी जेल यात्रा से टूटी नहीं, बल्कि और मजबूत हुई. जब वह जेल से बाहर निकले तो राजनीति में धीरे-धीरे इतने तपते गए कि गोरखपुर की जनता ने उन्हें पांच बार अपना विधायक चुना. वह राज्यसभा के लिए भी चुने गए. प्रदेश से लेकर केंद्र में मंत्री और आज राज्यपाल की भूमिका निभाते हुए, वह अपने दायित्वों का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं.

शिव प्रताप शुक्ला करीब 19 महीने तक जेल में रहे, इसके बाद उनकी रिहाई हुई. उनकी गिरफ्तारी से घर परिवार के लोग परेशान हो गए थे. अष्टभुजा कहते हैं कि उनके दादाजी उस समय बंगाल में रहा करते थे. दादी गांव पर थीं. परिवार के अन्य सदस्य भी चाचा की गिरफ्तारी से परेशान थे. जबकि उनकी रिहाई का प्रयास उनके बड़े भाई एडवोकेट राम प्रताप शुक्ला कर रहे थे और रिहाई भी मिल जाती लेकिन, वह देश के लिए संघर्ष में शामिल रहना ही उचित समझे और 19 महीने बाद रिहा हुए.

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