उन्नाव : बीघापुर तहसील स्थित पाटन गांव में हिंदू-मुस्लिम एकता और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक ऐतिहासिक तकिया मेले का शुभारंभ परंपरागत तरीके से किया गया. मेले का उद्घाटन भगवंतनगर के विधायक आशुतोष शुक्ला ने जिलाधिकारी गौरांग राठी और पुलिस अधीक्षक दीपक भूकर की उपस्थिति में किया. मेले की शुरुआत सूफी संत बाबा मोहब्बत शाह और उनके शिष्य नियामत शाह की मजार पर चादरपोशी और सहस्त्र लिंगेश्वर महादेव मंदिर में जलाभिषेक, पूजा-अर्चना और शिव आरती के साथ हुई.
चार शताब्दियों पुरानी परंपरा : करीब 400 वर्षों से अधिक पुराना यह मेला न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता की अनवरत ज्योति जलाता आ रहा है. बाबा मोहब्बत शाह की मजार और शिव मंदिर मेले के मुख्य केंद्र हैं. यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग श्रद्धा और आस्था के साथ इकट्ठा होते हैं.
इस अवसर पर विधायक आशुतोष शुक्ला ने कहा कि तकिया मेला धार्मिक संकीर्णता को दूर कर सर्वधर्म समभाव का संदेश देता है. यह मेला इस बात का प्रमाण है कि उन्नाव की धरती पर कभी सांप्रदायिकता की जगह नहीं रही है. यहां की गंगा-जमुनी तहजीब हमारी विरासत है.
सांप्रदायिक सौहार्द का उदाहरण : जिलाधिकारी गौरांग राठी ने कहा कि तकिया मेला पूरे प्रदेश में साम्प्रदायिक सौहार्द का सबसे बड़ा प्रतीक है. यह वह जगह है जहां शिव मंदिर में आराधना और मजार पर सजदा एक साथ होता है. दोनों समुदायों का यह आपसी प्रेम और सम्मान इस मेले को खास बनाता है.
आस्था और व्यापार का संगम : 19 दिसंबर 2024 से 5 जनवरी 2025 तक चलने वाले इस मेले में धार्मिक गतिविधियों के साथ-साथ व्यापारिक और सामाजिक गतिविधियां भी जोर-शोर से होती हैं. ऊंट, घोड़े, गाय, भैंस और बकरियों की बड़ी खरीदारी के लिए किसान और व्यापारी दूर-दूर से आते हैं. मेले में ग्रामीणों के लिए दैनिक उपयोग की वस्तुएं और मनोरंजन के साधन भी उपलब्ध हैं.
सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार : जिलाधिकारी ने मेले में लगे चिकित्सा, पशुपालन, सिंचाई, कृषि, और उद्यान विभाग के स्टॉल का निरीक्षण किया. उन्होंने निर्देश दिए कि मेले के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाया जाए.
हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल : इस मेले की सबसे बड़ी खासियत इसका सांप्रदायिक सौहार्द है. एक तरफ जहां लोग मजार पर चादर चढ़ाकर दुआ मांगते हैं, वहीं दूसरी ओर शिव मंदिर में आराधना कर अपने इष्टदेव से आशीर्वाद लेते हैं. यह नजारा इस बात का सबूत है कि धर्म की दीवारें प्यार और भाईचारे के आगे हमेशा फीकी पड़ जाती हैं. तकिया मेला आज भी उस एकता, प्रेम और सद्भाव का प्रतीक है, जिसकी शिक्षा भारत की मिट्टी ने हमें दी है. यह मेला हर किसी को अपनेपन का अहसास कराता है और यह संदेश देता है कि धर्म का असली मकसद मानवता की सेवा और आपसी मेलजोल है.
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