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Rajasthan: सवाई माधोपुर के भारजा नदी गांव में की जाती है अनूठी गोवर्धन पूजा, अब बैलों की जगह ट्रैक्टर की होती है पूजा - GOVARDHAN PUJA 2024

सवाई माधोपुर में अब गोवर्धन पूजा पर बैलों की जगह ट्रैक्टरों की पूजा की जाती है. इस परंपरा में पूरा गांव हिस्सा लेता है.

Govardhan Puja 2024
भारजा नदी गांव में अनूठी गोवर्धन पूजा (ETV Bharat Sawai Madhopur)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 2, 2024, 7:18 PM IST

Updated : Nov 2, 2024, 7:46 PM IST

सवाई माधोपुर: समय के साथ हर क्षेत्र में लगातार बदलाव देखने को मिल रहा है. पहले खेती के लिए जहां कभी बैल की उपयोगिता थी, वहीं अब ट्रैक्टर से खेत जोते जाते हैं. कभी बैलों की पूजा होती थी, अब ट्रैक्टर की पूजा होती है. दिवाली एवं गोवर्धन पर पूजा सदियों से जारी है. बस बैलों का स्थान वाहन ने ले लिया है. सवाई माधोपुर जिले सहित प्रदेश एवं देश भर में दिवाली का त्योहार उत्साहपूर्वक मनाया जा रहा है.

सवाई माधोपुर जिले के कई गांवों में सामूहिक गोवर्धन पूजा भाईचारे का संदेश देती हैं. भारजा नदी गांव में दीपावली के पर्व पर अनोखी गोवर्धन पूजा की जाती है. यहां वर्षों पुरानी परंपरा के तहत पूरा गांव सामूहिक गोवर्धन पूजा कर भाईचारे का संदेश देता है. गांव की महिलाओं की ओर से गोबर का बड़े आकार का गोवर्धन बनाया जाता है. उसके बाद शुभ मुहूर्त के अनुसार विधिवत गोवर्धन की पूजा-अर्चना की जाती है. दीपावली के पर्व पर हर वर्ष इस गोवर्धन पूजा की परंपरा को देखने के लिए आसपास के सैकड़ों लोग आते हैं.

बैलों की जगह ट्रैक्टर की होती है पूजा (ETV Bharat Sawai Madhopur)

पढ़ें: Rajasthan: झालावाड़ में गोवर्धन पूजा पर भक्तों ने लगाई गोवंश की दंडवत परिक्रमा

सरपंच मुरारीलाल मीणा, धनसिंह मीणा, केदार मीणा, रामसहाय मीणा, प्रहलाद पटेल, शिवदयाल पटेल सहित गांव के बुजुर्गों की मानें तो करीब 200 साल पहले चंद घरों की आबादी से इस गांव की बसावट हुई. उसी समय से गांव के लोग सामूहिक रूप से गोवर्धन पूजा की परंपरा को निभाते आ रहे हैं. जैसे-जैसे गांव में आबादी बढ़ती गई, वैसे-वैसे सामूहिक गोवर्धन पूजा की मान्यता बढ़ गई. वर्षों पहले गोवर्धन पूजा के दौरान खेती का काम करने वाले बैल और कृषि यंत्रों की पूजा करना शुभ माना जाता था. अब किसानों के पास बैल नहीं हैं. इसलिए गोवर्धन पूजा के दौरान खासकर ट्रैक्टरों की पूजा की जाती है.

पढ़ें: Rajasthan: धौलपुर में घर-घर हुई गोवर्धन पूजा, गोबर के गोवर्धन और श्रीकृष्ण के बनाए विग्रह, अन्नकूट का लगाया भोग

गोवर्धन पूजा को लेकर सुबह से तैयारी होती है. शाम को पूजा गोवर्धन पूजा के दौरान महिलाएं सुबह से तैयारी करती हैं. हर घर की महिलाएं गांव के मुख्य मार्ग पर गोबर इकट्ठा करती हैं. शाम होते-होते गांव का प्रत्येक व्यक्ति गोवर्धन पूजा के लिए आता है. महिलाएं आसपास मकानों पर चढ़कर पूरा नजारा देखती हैं. गांव वाले पूजा-अर्चना कर अपने वाहनों से गोवर्धन की परिक्रमा लगाते हैं. उसके बाद दूसरे दिन प्रत्येक घर की महिलाएं गोबर को वापस लेकर जाती हैं. उस गोबर से ईंधन के रूप में कंडे बनाए जाते हैं.

पढ़ें: Rajasthan: गोवर्धन पूजा पर पूंछरी का लौठा पहुंचे मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, श्रीनाथ जी मंदिर में की विशेष पूजा

गांव के बुजुर्ग प्रहलाद पटेल बताते हैं कि इस बार भी गोवर्धन पूजा की परंपरा का निर्वाहन किया गया है. इसके पीछे का तर्क देते हुए कहते हैं कि गांव में सालों से दीपावली के बाद के दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. इसलिए इस बार यह परंपरा शुक्रवार को निभाई गई, 31 अक्टूबर और 1 नवंबर को दिवाली मनाई गई. गांव में दीपावली 31 अक्टूबर को मनाई गई. इसलिए इसके एक दिन बाद यानी शुक्रवार को गोवर्धन पूजा की परंपरा निभाई गई. गांव की आबादी की बात करें तो गांव को 5 साल पहले ग्राम पंचायत का दर्जा प्राप्त हुआ. गांव की करीब पांच हजार की आबादी है. तीन हजार मतदाता हैं. इनमें करीब 1200 महिला और 1800 पुरुष हैं. हालांकि इस छोटे से गांव में कोई बड़ा अधिकारी या राजनीति में किसी बड़े पद पर नहीं है. गांव के अधिकांश लोग खेती पर निर्भर हैं.

सवाई माधोपुर: समय के साथ हर क्षेत्र में लगातार बदलाव देखने को मिल रहा है. पहले खेती के लिए जहां कभी बैल की उपयोगिता थी, वहीं अब ट्रैक्टर से खेत जोते जाते हैं. कभी बैलों की पूजा होती थी, अब ट्रैक्टर की पूजा होती है. दिवाली एवं गोवर्धन पर पूजा सदियों से जारी है. बस बैलों का स्थान वाहन ने ले लिया है. सवाई माधोपुर जिले सहित प्रदेश एवं देश भर में दिवाली का त्योहार उत्साहपूर्वक मनाया जा रहा है.

सवाई माधोपुर जिले के कई गांवों में सामूहिक गोवर्धन पूजा भाईचारे का संदेश देती हैं. भारजा नदी गांव में दीपावली के पर्व पर अनोखी गोवर्धन पूजा की जाती है. यहां वर्षों पुरानी परंपरा के तहत पूरा गांव सामूहिक गोवर्धन पूजा कर भाईचारे का संदेश देता है. गांव की महिलाओं की ओर से गोबर का बड़े आकार का गोवर्धन बनाया जाता है. उसके बाद शुभ मुहूर्त के अनुसार विधिवत गोवर्धन की पूजा-अर्चना की जाती है. दीपावली के पर्व पर हर वर्ष इस गोवर्धन पूजा की परंपरा को देखने के लिए आसपास के सैकड़ों लोग आते हैं.

बैलों की जगह ट्रैक्टर की होती है पूजा (ETV Bharat Sawai Madhopur)

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सरपंच मुरारीलाल मीणा, धनसिंह मीणा, केदार मीणा, रामसहाय मीणा, प्रहलाद पटेल, शिवदयाल पटेल सहित गांव के बुजुर्गों की मानें तो करीब 200 साल पहले चंद घरों की आबादी से इस गांव की बसावट हुई. उसी समय से गांव के लोग सामूहिक रूप से गोवर्धन पूजा की परंपरा को निभाते आ रहे हैं. जैसे-जैसे गांव में आबादी बढ़ती गई, वैसे-वैसे सामूहिक गोवर्धन पूजा की मान्यता बढ़ गई. वर्षों पहले गोवर्धन पूजा के दौरान खेती का काम करने वाले बैल और कृषि यंत्रों की पूजा करना शुभ माना जाता था. अब किसानों के पास बैल नहीं हैं. इसलिए गोवर्धन पूजा के दौरान खासकर ट्रैक्टरों की पूजा की जाती है.

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गोवर्धन पूजा को लेकर सुबह से तैयारी होती है. शाम को पूजा गोवर्धन पूजा के दौरान महिलाएं सुबह से तैयारी करती हैं. हर घर की महिलाएं गांव के मुख्य मार्ग पर गोबर इकट्ठा करती हैं. शाम होते-होते गांव का प्रत्येक व्यक्ति गोवर्धन पूजा के लिए आता है. महिलाएं आसपास मकानों पर चढ़कर पूरा नजारा देखती हैं. गांव वाले पूजा-अर्चना कर अपने वाहनों से गोवर्धन की परिक्रमा लगाते हैं. उसके बाद दूसरे दिन प्रत्येक घर की महिलाएं गोबर को वापस लेकर जाती हैं. उस गोबर से ईंधन के रूप में कंडे बनाए जाते हैं.

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गांव के बुजुर्ग प्रहलाद पटेल बताते हैं कि इस बार भी गोवर्धन पूजा की परंपरा का निर्वाहन किया गया है. इसके पीछे का तर्क देते हुए कहते हैं कि गांव में सालों से दीपावली के बाद के दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. इसलिए इस बार यह परंपरा शुक्रवार को निभाई गई, 31 अक्टूबर और 1 नवंबर को दिवाली मनाई गई. गांव में दीपावली 31 अक्टूबर को मनाई गई. इसलिए इसके एक दिन बाद यानी शुक्रवार को गोवर्धन पूजा की परंपरा निभाई गई. गांव की आबादी की बात करें तो गांव को 5 साल पहले ग्राम पंचायत का दर्जा प्राप्त हुआ. गांव की करीब पांच हजार की आबादी है. तीन हजार मतदाता हैं. इनमें करीब 1200 महिला और 1800 पुरुष हैं. हालांकि इस छोटे से गांव में कोई बड़ा अधिकारी या राजनीति में किसी बड़े पद पर नहीं है. गांव के अधिकांश लोग खेती पर निर्भर हैं.

Last Updated : Nov 2, 2024, 7:46 PM IST
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