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दिवाली की अनोखी परंपरा, कहीं एक हफ्ता पहले तो कहीं दस दिन बाद दीपोत्सव

छत्तीसगढ़ में अलग-अलग परंपरा और तरीकों से दिवाली मनाई जाती है.आज हम आपको ऐसी ही कुछ अनोखी दिवाली के बारे में बताएंगे.

Unique Diwali of CG
छत्तीसगढ़ में अनोखी दिवाली (ETV Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Oct 26, 2024, 7:13 PM IST

रायपुर : छत्तीसगढ़ में कई तरह के त्यौहार मनाए जाते हैं. इस प्रदेश में हर त्यौहार का अपना अलग माहौल है.यहां राष्ट्रीय त्यौहारों के साथ प्रादेशिक त्यौहारों को भी बड़ा महत्व दिया जाता है. प्रदेश में रहने वाले अलग-अलग समाज के लोग हर त्यौहार मिल जुलकर मनाते हैं.चाहे होली हो या हरेली प्रदेश में हर त्यौहार में आपको अलग-अलग रंग देखने को मिलेंगे. इन दिनों प्रदेश में दिवाली की तैयारी चल रही है.ऐसे में आज हम आपको उन जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां अनोखी दिवाली मनाई जाती है.

एक हफ्ता पहले मनाई जाती है दिवाली :31 अक्टूबर को लक्ष्मी पूजन के साथ दीपावली का पर्व मनाया जाएगा. वहीं धमतरी से 30 किलोमीटर दूर एक ऐसा गांव है. जहां 24 अक्टूबर को ही दीपावली का पर्व मना लिया गया. इसके बाद शुक्रवार को गोवर्धन पूजा मनाई गई. इस गांव का नाम है सेमरा.जहां दिवाली एक हफ्ते पहले ही मना ली जाती है.इस गांव के लोगों का कहना है कि यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया तो गांव में कुछ ना कुछ अनिष्ट हो जाएगा.

आखिर क्यों मनाई जाती है पहले दिवाली : गांव वालों की माने तो ये परंपरा सदियों से चली आ रही है.साथ ही कई किवदंतियां एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चली आ रही है. कहते हैं कि गांव में सिरदार देव अखाड़ा खेलने आते थे.लेकिन एक बार सिरदार देव और उनका घोड़ा शेर के शिकार बन गए.इसके बाद सिरदार देव ने गांव के मालगुजार को सपना दिया कि आप मुझे देवता के रूप में मानों, मेरी शर्तों पर कार्य करो. उनकी शर्त ये थी गांव में कोई भी त्यौहार एक हफ्ता पहले से ही शुरु करें. इस शर्त को जो नहीं मानेगा तो उसे अनिष्ट का शिकार होना पड़ेगा. तब से गांव में दिवाली पूजा सिरदार देव की पूजा के नाम से मनाई जाती है.

सरगुजा की अनोखी जनजातीय परंपरा : सरगुजा में रहने वाले जनजातीय लोग दीपवाली का त्योहार दिवाली के दस दिनों बाद मनाते हैं. कार्तिक अमावस्या के दिन आदिवासी माता लक्ष्मी और नारायण की पूजा करते हैं. इनका मानना है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान नींद से उठते हैं. इस वजह से दीपावली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा अकेले नहीं करते. देव उठनी एकादशी के दिन दोनों की पूजा साथ-साथ करने की परंपरा ये समाज सदियों से निभाता आ रहा है.

दस दिन मनाते हैं दिवाली: सरगुजा में रहने वाले न सिर्फ जनजाति बल्कि अहिर, साहू और अन्य जातियों के लोग भी इसी मान्यता के साथ एकादशी के दिन दिवाली मानते हैं. ये लोग गाय को लक्ष्मी मानते हैं.लक्ष्मी के रूप में गाय का ही पूजन किया जाता है. इसी दिन जनजातीय समाज में गुरु शिष्य परम्परा का भी निर्वहन होता है. झाड़ फूंक करने वाले बैगा गुनिया इसी दिन अपने शिष्यों को मन्त्र देते हैं. इसी दिन शिष्य गुरु का पूजन कर उन्हें भोजन करवाकर कपड़े भेंट करते हैं.

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रायपुर : छत्तीसगढ़ में कई तरह के त्यौहार मनाए जाते हैं. इस प्रदेश में हर त्यौहार का अपना अलग माहौल है.यहां राष्ट्रीय त्यौहारों के साथ प्रादेशिक त्यौहारों को भी बड़ा महत्व दिया जाता है. प्रदेश में रहने वाले अलग-अलग समाज के लोग हर त्यौहार मिल जुलकर मनाते हैं.चाहे होली हो या हरेली प्रदेश में हर त्यौहार में आपको अलग-अलग रंग देखने को मिलेंगे. इन दिनों प्रदेश में दिवाली की तैयारी चल रही है.ऐसे में आज हम आपको उन जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां अनोखी दिवाली मनाई जाती है.

एक हफ्ता पहले मनाई जाती है दिवाली :31 अक्टूबर को लक्ष्मी पूजन के साथ दीपावली का पर्व मनाया जाएगा. वहीं धमतरी से 30 किलोमीटर दूर एक ऐसा गांव है. जहां 24 अक्टूबर को ही दीपावली का पर्व मना लिया गया. इसके बाद शुक्रवार को गोवर्धन पूजा मनाई गई. इस गांव का नाम है सेमरा.जहां दिवाली एक हफ्ते पहले ही मना ली जाती है.इस गांव के लोगों का कहना है कि यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया तो गांव में कुछ ना कुछ अनिष्ट हो जाएगा.

आखिर क्यों मनाई जाती है पहले दिवाली : गांव वालों की माने तो ये परंपरा सदियों से चली आ रही है.साथ ही कई किवदंतियां एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चली आ रही है. कहते हैं कि गांव में सिरदार देव अखाड़ा खेलने आते थे.लेकिन एक बार सिरदार देव और उनका घोड़ा शेर के शिकार बन गए.इसके बाद सिरदार देव ने गांव के मालगुजार को सपना दिया कि आप मुझे देवता के रूप में मानों, मेरी शर्तों पर कार्य करो. उनकी शर्त ये थी गांव में कोई भी त्यौहार एक हफ्ता पहले से ही शुरु करें. इस शर्त को जो नहीं मानेगा तो उसे अनिष्ट का शिकार होना पड़ेगा. तब से गांव में दिवाली पूजा सिरदार देव की पूजा के नाम से मनाई जाती है.

सरगुजा की अनोखी जनजातीय परंपरा : सरगुजा में रहने वाले जनजातीय लोग दीपवाली का त्योहार दिवाली के दस दिनों बाद मनाते हैं. कार्तिक अमावस्या के दिन आदिवासी माता लक्ष्मी और नारायण की पूजा करते हैं. इनका मानना है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान नींद से उठते हैं. इस वजह से दीपावली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा अकेले नहीं करते. देव उठनी एकादशी के दिन दोनों की पूजा साथ-साथ करने की परंपरा ये समाज सदियों से निभाता आ रहा है.

दस दिन मनाते हैं दिवाली: सरगुजा में रहने वाले न सिर्फ जनजाति बल्कि अहिर, साहू और अन्य जातियों के लोग भी इसी मान्यता के साथ एकादशी के दिन दिवाली मानते हैं. ये लोग गाय को लक्ष्मी मानते हैं.लक्ष्मी के रूप में गाय का ही पूजन किया जाता है. इसी दिन जनजातीय समाज में गुरु शिष्य परम्परा का भी निर्वहन होता है. झाड़ फूंक करने वाले बैगा गुनिया इसी दिन अपने शिष्यों को मन्त्र देते हैं. इसी दिन शिष्य गुरु का पूजन कर उन्हें भोजन करवाकर कपड़े भेंट करते हैं.

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