आगरा : सावन का पवित्र माह चल रहा है. हर ओर बाबा महादेव की धूम है. सावन के तीसरे सोमवार पर आज हम बात करेंगे आगरा में प्राचीन 'कैलाश महादेव मंदिर' की, जो त्रेता युग का है. ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम और उनके पिता का यमुना किनारे रेणुकाधाम (रूनकता) आश्रम था. पिता और पुत्र जहां से बाबा महादेव की पूजा करने कैलाश पर्वत गए. भगवान परशुराम और उनके पिता की साधना से भगवान शिव ने दोनों से वरदान मांगने के लिए कहा तो पिता और पुत्र कैलाश पर्वत से एक-एक शिवलिंग लेकर रेणुकाधाम स्थित अपने आश्रम आ रहे थे. यमुना किनारे संध्या होने पर रुककर संध्या वंदन किया. उन्होंने शिवलिंग उठाए तो हिले नहीं और जमीन में धंस गए. आकाशवाणी हुई तो भगवान परशुराम और उनके पिता ने यहां पर दुर्लभ शिवलिंग की स्थापना की. अंग्रेज कलक्टर ने बाबा महादेव के आर्शीवाद से गायब पत्नी मिलने पर कैलाश मंदिर पर लगने वाले मेले का सरकारी अवकाश घोषित किया था.
बता दें कि, आगरा शहर को भगवान भोलेनाथ की नगरी भी कहा जाता है. शहर के चारों कोने पर महादेव के चार प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर हैं. जहां पर सावन के माह में मेले लगते हैं. शहर के बीच में बाबा मनकामेश्वर महादेव विराजमान हैं.
कैलाश मंदिर का इतिहास : बताया जाता है कि प्राचीन कैलाश महादेव मंदिर का इतिहास दस हजार साल से भी पुराना है. मंदिर के महंत गौरव गिरी महाराज बताते हैं कि, त्रेतायुग में प्राचीन कैलाश मंदिर से छह किलोमीटर दूर रेणुकाधाम आश्रम था. जो अब रुनकता के नाम से जाना जाता है. रेणुकाधाम आश्रम में ऋषि जमदग्नि, उनकी पत्नी रेणुका और बेटा भगवान परशुराम रहते थे. भगवान परशुराम और जमदग्नि ऋषि शिवभक्त थे. दोनों ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की साधना की. जिस पर भगवान शिव खुश हुए. उन्होंने पिता और पुत्र से वरदान मांगने को कहा तो भगवान परशुराम ने महादेव को अपने साथ चलने का आग्रह किया. इस पर बाबा महादेव ने कहा कि, कैलाश पर्वत के कण कण में मैं विराजमान हूं. यहां से आप भी कण लेकर जाएंगे. मैं उसमें आवास के साथ चला जाऊंगा. जिस पर भगवान परशुराम और जमदग्नि ऋषि कैलाश पर्वत से शिवलिंग लेकर आए.
परशुराम और उनके पिता ने स्थापित किए शिवलिंग ; मंदिर के महंत गौरव गिरी महाराज बताते हैं कि रेणुकाधाम पहुंचने से पहले ही संध्या हो गई. जिस पर पिता और पुत्र ने शिवलिंग कंधे से उतार कर यमुना किनारे जमीन पर रख दिए. दोनों ने संध्या बंधन किया. जब भगवान परशुराम और जमदग्नि ऋषि ने दोबारा शिवलिंग उठाए तो आकाशवाणी हुई. मैं अचलेश्वर हूं. जहां पर रख दिया, वहीं पर मैं विराजमान हो गया. अब मेरी यहां पर ही पूजा की जाए. इस पर भगवान परशुराम और उनके जमदग्नि ऋषि ने विधि विधान से शिवलिंग की स्थापना की. तभी से इस मंदिर की स्थापना हुई थी.
कैलाश मंदिर पड़ा नाम : महंत गौरव गिरी बताते हैं कि, दुनिया में एक ही जलहरि में दो शिवलिंग कहीं नहीं मिलेंगे. ये प्राचीन कैलाश मंदिर में स्थित है. जो बेहद दुलर्भ है. यहां आने वाले हर भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है. भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम और उनके पिता ने दोनों शिवलिंग की स्थापना की. यहां पर शिवलिंग की पूजा-अर्चना की. दोनों कैलाश पर्वत से शिवलिंग लाए थे, इसलिए इसका नाम कैलाश मंदिर है. यहां से छह किलोमीटर दूर यमुना किनारे भगवान परशुराम और उनके पिता का आश्रम रेणुकाधाम है. रेणुकाधाम का अतीत श्रीमद्भागवत गीता में वर्णित है.
मेले में पहुंचते लाखों भक्त : सावन के तीसरे सोमवार को कैलाश मंदिर में प्राचीन मेला लगता है. जिसको लेकर यातायात पुलिस ने सड़कों पर रूट डायवर्जन किया है. मेले में लाखों की संख्या में शिव भक्त पहुंचते हैं. कई दशकों तक यह मेला आगरा सिकंदरा स्मारक के भीतर लगता था, लेकिन अब यह मेला सिकंदरा स्मारक परिसर से बाहर लगाया जाता है.
अंग्रेज कलक्टर ने की थी मेला की सरकारी छुट्टी : कैलाश मंदिर के महंत गौरव गिरी महाराज बताते हैं कि बात अंग्रेजी हुकूमत के समय की है. एक अंग्रेजी अफसर की पत्नी शिकार के लिए आई. तीन दिन बीत गए, अंग्रेज अफसर की पत्नी वापस नहीं लौटी तो उनकी तलाश में पुलिस लग गई. अंग्रेस अफसर भी भगवान कैलाश महादेव मंदिर की शरण में आए. उन्होंने बाबा से अर्जी लगाई. जिससे अंग्रेज अफसर की पत्नी मिल गई. उस दिन सावन का तीसरा सोमवार था. अंग्रेज अफसर ने तभी सावन के तीसरे सोमवार को लगने वाले कैलाश मंदिर में सरकारी छुट्टी का ऐलान कर दिया. एक यह भी किंवदंती है कि, अंग्रेज अफसर के संतान भी बाबा महादेव के आर्शीवाद से हुई थी. इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि, कैलाश मेले पर स्थानीय अवकाश काफी पुराना है. यहां पहले सिकंदरा में मेला लगता था. लट्ठबाज अपने दांव पेच दिखाया करते थे.
(डिस्क्लेमर: यह खबर धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है)
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