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राजस्थान के इस शहर में रोजाना बिकती है दो लाख कचौरी, ये है खासियत - Bikaneri Kachori

Bikaneri Kachori, अभी तक आप बीकानेर को रसगुल्ले और नमकीन के लिए जानते होंगे, लेकिन आज हम आपको शहर की उस खास कचौरी के बारे में बताएंगे, जिसकी दीवानगी लोगों के सिर चढ़कर बोलती है. आलम यह है कि शहर के हजारों लोग अलसुबह इस कचौरी के साथ खाने की शुरुआत करते हैं और देखते ही देखते लाखों कचौरियां बिक जाती है.

Bikaneri Kachori
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 5, 2024, 7:31 PM IST

Updated : Feb 6, 2024, 1:29 PM IST

किसने क्या कहा, सुनिए...

बीकानेर. राजस्थान के बीकानेर शहर को स्वाद सिटी के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां के लोग खाने पीने के शौकीन होते हैं. वहीं, ये शहर रसगुल्ले और नमकीन के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है और यहां के बने रसगुल्ले और नमकीन की हमेशा डिमांड बनी रहती है. शहर के स्थानीय लोग भी खाने पीने के खासा शौकीन हैं. यही वजह है कि हर रोज यहां कचौरी, समोसे की दुकानों पर भीड़ लग रहती है और यहां के लोग रोजाना लाखों कचौरी चट कर जाते हैं.

शहर में कचौरी की एक हजार से अधिक दुकानें : बीकानेर में नमकीन का क्रेज इतना है कि शहर की हर गली में कचौरी की दुकानें मिल जाएगी. एक अनुमान के मुताबिक शहर में करीब एक हजार से अधिक नमकीन व कचौरी की दुकानें हैं. अगर हर दुकान की औसतन 200 से 250 कचौरी की खपत माने तो भी हर रोज बीकानेर में दो लाख से ज्यादा कचौरी बिकती है.

इसे भी पढ़ें - विदेशों तक जाती है जोधपुर की मीठी कचौरी, शुद्ध मावे से होती है तैयार, जानें 70 साल पुराना इतिहास

चाय पट्टी का अपना अलग क्रेज : बीकानेर में पिछले 50 सालों से भी ज्यादा समय से चाय पट्टी पर हर सुबह हजारों लोग सिर्फ कचौरी खाने के लिए आते हैं. यहां की सबसे पुरानी दुकान में से एक के संचलाक जूनिया महाराज कहते हैं कि यहां लोग खाने के शौकीन है और खिलाने के भी हर रोज चाय पट्टी में हजारों की संख्या में कचौरी बिकती है. लोग सुबह से ही यहां आने शुरू हो जाते हैं.

दादा से लेकर पोता तक : जूनिया महाराज कहते हैं कि यहां कचौरी लाइफ लाइन है. शहर में ऐसा कोई शख्स नहीं है, जो सप्ताह में एक बार कचौरी नहीं खाता. कई लोग ऐसे भी हैं, जिनके दिन की शुरुआत ही यहां कचौरी खाने से होती है. वे कहते हैं, जो युवा उनके पास आते हैं, उनसे पहले उनके पिता और दादा भी यहां कचौरी खाने के लिए आया करते थे.

पारंपरिक कारोबार : दुकानदार धीरज कहते हैं कि ये उनका पुश्तैनी कारोबार है और 50 सालों से वो यह ही काम कर रहे हैं. पहले उनके पिता जी दुकान को संभाला करते थे, लेकिन अब वे इस काम को कर रहे हैं. वे कहते हैं कि यहां लोगों के दैनिक खान-पान में कचौरी शामिल हो चुका है.

इसे भी पढ़ें - Zaika Jodhpur Ka: जहां नमकीन कचौरी भी देशी घी में पकती है

मूंग दाल की बनती है कचौरी : दरअसल, कचौरी बनाने में मूंग दाल का प्रयोग होता है और मैदे के साथ अलग-अलग तरह के मसाले मिक्स किए जाते हैं. इसमें गरम मसाला भी शामिल होता है. वहीं, पहले मसाले के साथ दाल की सिकाई की जाती है और फिर मैदे के गोले में उसे भरकर तेल में तला जाता है. दाल की कचौरी के साथ ही दुकान में समोसा नमकीन के दूसरे आइटम भी होते हैं, लेकिन लोगों का क्रेज कचौरी को लेकर ज्यादा होता है और दुकानों पर हाथों हाथ गर्म कचौरियां बिक जाती हैं. वहीं, एक कचौरी की कीमत 15 से 22 रुपए तक होती है.

किसने क्या कहा, सुनिए...

बीकानेर. राजस्थान के बीकानेर शहर को स्वाद सिटी के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां के लोग खाने पीने के शौकीन होते हैं. वहीं, ये शहर रसगुल्ले और नमकीन के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है और यहां के बने रसगुल्ले और नमकीन की हमेशा डिमांड बनी रहती है. शहर के स्थानीय लोग भी खाने पीने के खासा शौकीन हैं. यही वजह है कि हर रोज यहां कचौरी, समोसे की दुकानों पर भीड़ लग रहती है और यहां के लोग रोजाना लाखों कचौरी चट कर जाते हैं.

शहर में कचौरी की एक हजार से अधिक दुकानें : बीकानेर में नमकीन का क्रेज इतना है कि शहर की हर गली में कचौरी की दुकानें मिल जाएगी. एक अनुमान के मुताबिक शहर में करीब एक हजार से अधिक नमकीन व कचौरी की दुकानें हैं. अगर हर दुकान की औसतन 200 से 250 कचौरी की खपत माने तो भी हर रोज बीकानेर में दो लाख से ज्यादा कचौरी बिकती है.

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चाय पट्टी का अपना अलग क्रेज : बीकानेर में पिछले 50 सालों से भी ज्यादा समय से चाय पट्टी पर हर सुबह हजारों लोग सिर्फ कचौरी खाने के लिए आते हैं. यहां की सबसे पुरानी दुकान में से एक के संचलाक जूनिया महाराज कहते हैं कि यहां लोग खाने के शौकीन है और खिलाने के भी हर रोज चाय पट्टी में हजारों की संख्या में कचौरी बिकती है. लोग सुबह से ही यहां आने शुरू हो जाते हैं.

दादा से लेकर पोता तक : जूनिया महाराज कहते हैं कि यहां कचौरी लाइफ लाइन है. शहर में ऐसा कोई शख्स नहीं है, जो सप्ताह में एक बार कचौरी नहीं खाता. कई लोग ऐसे भी हैं, जिनके दिन की शुरुआत ही यहां कचौरी खाने से होती है. वे कहते हैं, जो युवा उनके पास आते हैं, उनसे पहले उनके पिता और दादा भी यहां कचौरी खाने के लिए आया करते थे.

पारंपरिक कारोबार : दुकानदार धीरज कहते हैं कि ये उनका पुश्तैनी कारोबार है और 50 सालों से वो यह ही काम कर रहे हैं. पहले उनके पिता जी दुकान को संभाला करते थे, लेकिन अब वे इस काम को कर रहे हैं. वे कहते हैं कि यहां लोगों के दैनिक खान-पान में कचौरी शामिल हो चुका है.

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मूंग दाल की बनती है कचौरी : दरअसल, कचौरी बनाने में मूंग दाल का प्रयोग होता है और मैदे के साथ अलग-अलग तरह के मसाले मिक्स किए जाते हैं. इसमें गरम मसाला भी शामिल होता है. वहीं, पहले मसाले के साथ दाल की सिकाई की जाती है और फिर मैदे के गोले में उसे भरकर तेल में तला जाता है. दाल की कचौरी के साथ ही दुकान में समोसा नमकीन के दूसरे आइटम भी होते हैं, लेकिन लोगों का क्रेज कचौरी को लेकर ज्यादा होता है और दुकानों पर हाथों हाथ गर्म कचौरियां बिक जाती हैं. वहीं, एक कचौरी की कीमत 15 से 22 रुपए तक होती है.

Last Updated : Feb 6, 2024, 1:29 PM IST
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