वाराणसी : उत्तर प्रदेश में बौद्धिक संपदा के रूप में जीआई को लेकर प्रयास लगातार जारी हैं. एक के बाद एक 75 उत्पाद उत्तर प्रदेश से रजिस्टर्ड हो चुके हैं. अब वाराणसी के दो प्रोडक्ट समेत यूपी के कुल 4 प्रोडक्ट जीआई टैग (जीओ ग्राफिकल इंडीकेटर) मिला है. इनमें वाराणसी की तिरंगी बर्फी और बनारस धातु ढलाई शिल्प (मेटल कास्टिंग क्राफ्ट) सहित बरेली जरदोजी, बरेली केन-बम्बू क्राफ्ट, थारू इम्ब्रायडरी-यूपी, और पिलखुआ हैंडब्लाक प्रिंट टेक्सटाइल शामिल हैं.
जीआई मैन ऑफ इंडिया के रूप में ख्याति प्राप्त पदमश्री सम्मानित जीआई विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत ने बताया कि यह पूरे प्रदेश के लिए अत्यंत गौरव का पल है. नाबार्ड लखनऊ, यूपी एवं राज्य सरकार के प्रयास से 15 अप्रैल, 2024 को जारी हुए जीआई रजिस्ट्री चेन्नई की वेबसाइट पर जीआई एप्लीकेशन स्टेट्स से रजिस्टर्ड होने की जानकारी होते ही काशी समेत उप्र के जीआई उत्पादक समुदाय, विक्रेताओं में हर्ष की लहर दौड़ गई. डॉ. रजनीकान्त ने बताया कि वाराणसी क्षेत्र से 2 जीआई उत्पाद पंजीकृत हुए. इनमें आजादी की क्रान्ति में शुमार काशी के पक्के महाल से निकली बनारस तिरंगी बर्फी और काशीपुरा की गलियों में सैकड़ों साल से तैयार की जाने वाली बनारस धातु ढलाई शिल्प (मेटल कास्टिंग क्राफ्ट) सहित बरेली जरदोजी, बरेली केन-बम्बू क्राफ्ट, थारू इम्ब्रायडरी-यूपी और पिलखुआ हैंडब्लाक प्रिंट टेक्सटाइल शामिल हैं. इसी के साथ यूपी में जीआई टैग उत्पादों की संख्या 75 हो गयी है. अब काशी और पूर्वांचल के जनपदों में कुल 34 जीआई उत्पाद देश की बौद्धिक सम्पदा अधिकार में शुमार हो गए.
उन्होंने बताया कि 2014 के पहले वाराणसी क्षेत्र से मात्र 2 जीआई उत्पाद जैसे बनारस ब्रोकेड एवं साड़ी तथा भदोही हस्तनिर्मित कालीन को ही यह दर्जा प्राप्त था. पिछले 9 वर्षों में यह संख्या 34 तक पहुंच गई और जीआई के सबसे बड़े ब्रांड एम्बेसडर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं. उनके मार्गदर्शन में आत्मनिर्भर भारत के अन्तर्गत लोकल से ग्लोबल को एक नया मुकाम हासिल हुआ. भारत की समृद्ध विरासत को अंतरराष्ट्रीय कानूनी पहचान मिली, जिससे वाराणसी परिक्षेत्र और नजदीकी जीआई पंजीकृत जनपदों में ही लगभग 30 हजार करोड़ का वार्षिक कारोबार के साथ ही 20 लाख लोगों को अपने परंपरागत उत्पादों का कानूनी संरक्षण प्राप्त हुआ. रोजगार के नए अवसर मिले तथा पर्यटन, व्यापार और ई-मार्केटिंग के माध्यम से यहां के उत्पाद तेजी से दुनिया के सभी हिस्सों में पहुंच रहे हैं. डॉ. रजनीकान्त ने बताया कि अकेले संस्था ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन वाराणसी के तकनीकी सहयोग से 14 राज्यों में 148 जीआई उत्पादों का पंजीकरण अभी तक कराया जा चुका है. इनमें उत्तर प्रदेश- 56, उत्तराखंड- 24, मध्य प्रदेश- 8, राजस्थान-5, अरुणाचल प्रदेश-18, त्रिपुरा- 3, लद्दाख-1, मेघालय- 3, असम-8, जम्मू-कश्मीर- 8, महाराष्ट्र-7, उड़ीसा- 2, गुजरात-4, छत्तीसगढ़-1 जीआई उत्पाद शामिल हैं.
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उन्होंने बताया कि यह किसी भी संस्था द्वारा जीआई टेक्निकल फैसिलिटेटर के रूप में देश में किया गया सर्वाधिक जीआई का पंजीकरण है. प्राचीन समय में तिरंगी बर्फी में केसरिया रंग के लिए केसर, हरे रंग के लिए पिस्ता और बीच के सफेद रंग में खोए की सफेदी एवं काजू का प्रयोग किया जाता रहा है, आज भी पक्का महाल की गलियों की तिरंगी बर्फी बड़े चाव से खाई जाती है. आजादी के आंदोलन में क्रान्तिकारियों की खुफिया बैठकों एवं गुप्त सूचनाओं के लिए इसका इजाद हुआ जो आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन की मुख्य धारा में अलख जगाने लगा. बनारस बलुआ शिल्प में ठोस छोटी मूर्तियां जिसमें मों अन्नपूर्णा, लक्ष्मी-गणेश, दुर्गाजी, हनुमानजी, विभिन्न प्रकार के यंत्र, नक्सीदार घंटी-घंटा, सिंहासन, आचमनी पंचपात्र, एवं सिक्कों की ढलाई वाले सील ज्यादे मशहूर रहे हैं.
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