सरगुजा: जनजातीय समाज की बड़ी आबादी सरगुजा संभाग में रहती है. अपनी अलग परंपराओं के लिए ये समाज हमेशा से जाना जाता रहा है. बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि सरगुजा में रहने वाले जनजातीय लोग दीपवाली का त्योहार दिवाली के दस दिनों बाद मनाते हैं. कार्तिक अमावस्य के दिन समाज विशेष के लोग माता लक्ष्मी और नारायण की पूजा करते हैं. इनका मानना है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान जागते हैं. इस वजह से दीपावली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा अकेले नहीं करते हैं. देव उठनी एकादशी के दिन दोनों की पूजा साथ साथ करने की परंपरा है.
दस दिन मनाते हैं दिवाली: सरगुजा में रहने वाले न सिर्फ जनजाती बल्कि अहीर, साहू और जातियों के लोग भी इसी मान्यता के साथ दीपावली के ग्यारहवें दिन दिवाली मानते हैं. ये लोग गाय को लक्ष्मी मानते हैं और लक्ष्मी के रूप में गाय का ही पूजन किया जाता है. इसी दिन जनजातीय समाज में गुरु शिष्य परम्परा का भी पालन किया जाता है. झाड़ फूंक करने वाले बैगा गुनिया इसी दिन अपने शिष्यों को मन्त्र देते हैं. इसी दिन शिष्य गुरु का पूजन कर उन्हें भोजन कराकर कपड़े भेंट करते हैं.
परंपरा का जनजातीय समाज करता है पालन: दस दिन बाद मनाए जाने वाले दिवाली त्योहार पर कई तरह के आयोजन किए जाते हैं. दस दिनों बाद मनाई जाने वाली दिवाली पर लोक कला सोहराई का धूमधाम से आयोजन होता है. लोक गीतों से पूरा सरगुजा संभाग गूंजता है. इस मौके पर लोक नृत्य भी किए जाते हैं.
सरगुजा की अनोखी दिवाली: सरगुजा की लोक कलाओं पर शोध करने वाले साहित्यकार अजय कुमार चतुर्वेदी कहते है कि दिवाली का त्योहार भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है. आध्यात्मिक रूप से यह अन्धकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है. भारत में मनाए जाने वाले सभी पर्वों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों अर्थों में अत्यधिक महत्त्व है. दीपावली का पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. दीपावली का पर्व पूरे 5 दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें हर दिन का अलग ही महत्व होता है.
पांच दिनों तक मनाई जाती है दिवाली: साहित्यकार अजय कुमार चतुर्वेदी कहते है कि पहले दिन धन तेरस, दूसरे दिन छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी, तीसरे दिन बड़ी दिवाली में घर-घर लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है. चौथे दिन गोवर्धन पूजा और पांचवे दिन भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है. सरगुजा के जनजातीय ग्रामीण अंचल में दीपावली के 10 दिन बाद देवउठनी एकादशी तिथि को सोहराई पर्व के नाम से दिवाली मनाई जाती हैं इसे यहां के जनजातीय लोग देवउठनी सोहराई कहते हैं.
एकादशी को मनाते हैं त्योहार: जनजातीय जीवन पर शोध करने वाले और उनको करीब से जानने समझने वाले साहित्यकार रंजीत सारथी बताते हैं कि सरगुजा के ग्रामीण दीपावली से बड़ी दीवाली दीपावली के ग्यारहवें दिन एकादशी को मानते हैं. समाज से जुड़े लोगों का मानना है कि इसी दिन देवता उठते हैं, तो ऐसी मान्यता है की जब देवता उठेंगे तभी पूजा शुरू होगी. माता लक्ष्मी के रूप में गाय की पूजा करते है. इसी दिन धान रखने वाले कोठार की भी पूजा की जाती है.