लखनऊ : परिवहन विभाग की ओर से डाटा अपडेशन में की गई गलती का खामियाजा प्रदेश के हजारों वाहन मालिकों को भुगतना पड़ रहा है. इस गलती का एहसास परिवहन अधिकारियों को भी है, लेकिन आरटीओ कार्यालय स्तर से वाहन प्रकार में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है. नतीजतन वाहन स्वामी परिवहन आयुक्त कार्यालय के चक्कर काटने को मजबूर हो रहे हैं.
केस 1: रहीमाबाद निवासी अमित कुमार वर्मा ने कार खरीदी, लेकिन अब कार उनके लिए बेकार हो चली है. चाहकर भी वे कार चलाने से कतरा रहे हैं. वजह है कि प्रदूषण सर्टिफिकेट न होने के चलते चेकिंग के दौरान कहीं चालान न हो जाए. अमित की गलती भी नहीं है, लेकिन खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है. परिवहन विभाग में उनकी यूरो 4 गाड़ी को यूरो 3 में रजिस्टर्ड कर लिया. सॉफ्टवेयर में यूरो 3 फीड होने के बाद अब जब पॉल्यूशन कराने जाते हैं तो फिर लौटा दिया जाता है, क्योंकि गाड़ी यूरो 4 मॉडल की है. अब अमित पिछले काफी समय से आरटीओ और परिवहन आयुक्त कार्यालय के चक्कर लगाने को मजबूर हैं.
केस 2 : जानकीपुरम की प्रियदर्शनी कॉलोनी निवासी राम सिंह की गाड़ी का नंबर यूपी 32 सीयू 0490 है. 23 मई 2009 को रजिस्टर्ड हुई यूरो 3 गाड़ी को सॉफ्टवेयर में यूरो 4 फीड कर दिया गया. अब राम सिंह गाड़ी का पॉल्यूशन करा नहीं पा रहे हैं. बस आरटीओ और परिवहन आयुक्त कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं. यहां से जब काम हो तो गाड़ी का प्रदूषण करा सकें.
केस 3 : रायबरेली रोड के वृंदावन योजना निवासी अनिल कुमार सिंह की कार का नंबर यूपी 32 सीटी 1790 है. यूरो 3 गाड़ी को यूरो 4 में फीड कर दिया गया. समस्या प्रदूषण कराने में आ रही है. अब परेशान हैं, लेकिन काम नहीं हो पा रहा है. प्रदूषण सर्टिफिकेट न होने के चलते सड़क पर चलने से भी डर रहे हैं.
केस 4 : कानपुर रोड स्थित एलडीए कॉलोनी निवासी विजय यादव की कार का नंबर यूपी 32 सीटी 0579 है. अप्रैल 2009 में रजिस्ट्रेशन हुआ था. यूरो 3 मॉडल की कार को यूरो 4 में फीड कर दिया गया. इससे अब प्रदूषण हो ही नहीं पा रहा है.
यह मामले तो महज बानगी हैं. इसी तरह के सैकड़ों मामले पूरे प्रदेश से सामने आ रहे हैं. परिवहन विभाग की एक गलती का खामियाजा उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में वाहन स्वामी भुगत रहे हैं. वाहन स्वामियों की गाड़ियां यूरो 3 मॉडल की हैं, लेकिन सॉफ्टवेयर में उन्हें यूरो फोर मॉडल में फीड कर दिया गया. जिनकी गाड़ी यूरो 4 मॉडल की है उसे यूरो 3 में फीड कर दिया गया. इससे अब वाहन से संबंधित काम हो ही नहीं पा रहा है. जब तक पॉल्यूशन नहीं होता है तब तक गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन में दिक्कत आती है. इतना ही नहीं प्रदूषण के बिना वाहन संचालित होते पाए जाने पर 10 हजार रुपये का भारी भरकम जुर्माना भी लगता है.
2010 में आया था यूरो 4 मॉडल : यूरो 4 मॉडल की गाड़ियों का निर्माण 2010 में शुरू हुआ था. 2010 में कंपनियां यूरो 3 और यूरो 4 दोनों ही मॉडल बना रही थीं. एनसीआर में यूरो 3 गाड़ियां दर्ज नहीं हो पा रही थीं. उन्हें खरीदकर लोग कहीं भी दर्ज करा रहे थे. इसी के चलते जब सॉफ्टवेयर में फीडिंग की गई तो गड़बड़झाला हो गया. यूरो फोर गाड़ियों में पॉल्यूशन में कोई दिक्कत नहीं आता जबकि यूरो 3 में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की जांच में रुकावट आती है.
एआरटीओ (प्रशासन) अखिलेश द्विवेदी का कहना है कि वाहन सॉफ्टवेयर के अपडेशन में यह समस्या आई है. उन वाहनों का प्रकार यूरो 3 से यूरो 4 हो गया है या यूरो 4 से यूरो 3 हो गया है. उनका मॉडल बदल गया है. ऐसी स्थिति में किसी वाहन की श्रेणी चेंज हो गई है तो उसे ठीक करने के लिए मूल पत्रावली से मिलान करना होता है कि वाहन वाकई यूरो 3 या यूरो 4 का है. हमारी तरफ से मुख्यालय के लिए पत्र भेजा जाता है उसके बाद मुख्यालय से आगे की कार्रवाई की जाती है. यह सही है कोई व्यक्ति आता है तो मूल पत्रावली से मिलान करने में थोड़ा समय लग सकता है, लेकिन हम तो जल्द से जल्द काम को निस्तारित करने का प्रयास करते हैं. फार्म 21 की जहां तक बात है तो पत्रावली का मिलान करने के लिए जरूरी होता है तो वाहन स्वामी को उपलब्ध कराने के लिए कहा जाता है जिससे उसका काम जल्दी से संपन्न कराया जा सके.
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