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जिस कलश के सहारे ताजमहल में कब्रों पर टपका पानी, वह कभी 466 किलो सोने का था, अंग्रेजों ने बदल दिया था - Water Dripped Taj Mahal

आगरा स्थित ताजमहल इस फिर चर्चा में हैं. मुख्य मकबरे की कब्रों पर पानी टपकने और दरार से पेड़ उगने को लेकर रखरखाव पर सवाल उठ रहे हैं. जिस कलश के सहारे ताजमहल के अंदर कब्रों पर पानी टपका, उसका इतिहास बड़ा रोचक है, आइए जानते हैं...

ताजमहल के गुंबद के ऊपर लगा कलश.
ताजमहल के गुंबद के ऊपर लगा कलश. (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 20, 2024, 3:55 PM IST

आगराः मोहब्बत की निशानी ताजमहल का नाम जहन में आते ही उसकी खूबसूरती हर किसी को दीवाना बना देती है. ताजमहल की नायाब कारीगरी, पच्चीकारी और वास्तुकला देखने को सात समंदर पार से हर साल लाखों पर्यटक आते हैं. लेकिन समय के साथ ही प्रदूषण, अनदेखी और लापरवाही से ताजमहल की खूबसूरती पर दाग लग रहे हैं. यही वजह है कि तीन दिनों तक हुई बारिश में ताजमहल के मुख्य मकबरे में स्थित मुमताज और शाहजहां की कब्र पर पानी टपका. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के वैज्ञानिकों की टीम ने बारिश से ताजमहल में हुए नुकसान का मैनुअल और ड्रोन से सर्वे किया. प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में सामने आया है कि ताजमहल की मुख्य गुंबद की चोटी पर स्थित पीतल के कलश की सपोर्ट में लगे लोहे के एंगल में जंग लगने से कलश के सहारे पानी टपका है. जिस कलश से पानी टपका है, वह 466 किलोग्राम सोने का था. 30.5 फीट ऊंचे इस कलश को 377 साल में तीन बार बदला गया और सोने की जगह पीतल का हो गया.

16 साल में बनकर तैयार हुआ था ताज महलः बता दें कि मुगल बादशाह शहंशाहजां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में 1632 से 1648 के बीच यमुना किनारे ताजमहल का निर्माण कराया था. सफेद संगमरमर के साथ ही विदेश से मंगवाए बेशकीमती स्टोन भी ताजमहल की खूबसूरती बढ़ाते हैं. तब 20000 से ज्यादा मजदूरों ने दिनरात काम करके ताजमहल बनाया था. उस समय ताजमहल बनाने में करोड़ों रुपये खर्च हुए. सन् 1983 में यूनेस्को ने ताजमहल को विश्व धरोहर घोषित किया था. इसके बाद से ही ताजमहल देखने आने वाले विदेशी मेहमानों की संख्या बढ़ी है.

आगरा ताजमहल. (Video Credit; ETV Bharat)
ताजमहल में तीसरी बार सुपुर्दे खाक हुई थी मुमताजः आगरा के वरिष्ठ राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि मुगल बादशाह शहंशाह शाहजहां की सबसे चहेती बेगम मुमताज की 17 जून 1631 को मौत हो गई थी. बुरहानपुर में मुमताज की मौत अपनी 14 वीं संतान गौहारा बेगम को जन्म देने के समय हुई थी. प्रसव पीड़ा के दौरान मुमताज की मौत होने पर उसे बुरहानपुर में तापी नदी के किनारे सुपुर्दे खाक किया गया था. मुमताज की मौत से शाहजहां बेहद दुखी था. इसलिए, उसने मुमताज की याद में ताजमहल का निर्माण कराया. बुरहानपुर से मुमताज का शरीर 790 किलोमीटर दूर आगरा लाया गया. इसके बाद ताजमहल में तीसरी बार सुपुर्दे खाक किया गया. लाहौर के काजिम खान की देखरेख में बना था सोने का कलशः राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि शाहजहां ने ताजमहल महल के निर्माण में खूब खर्चा किया था. सफेद संगमरमर के साथ ही ताजमहल में विदेश से भी चमकीले और बेशकीमती पत्थर मंगवाए. जिन्हें कारीगरों ने तराश कर पच्चीकारी से ताजमहल में लगाया. जो ताजमहल की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं. ताजमहल चमके और दमके इसके लिए शाहजहां ने ताजमहल की चोटी पर लगाने के लिए शाही खाजना से सोने का कलश बनवाया था. ये सोने का कलश तब करीब 40 हजार तोला सोना यानी 466 किलोग्राम का करीब 30.5 फीट ऊंचा बनवाया था. लाहौर से विशेष रूप से बुलवाए गए काजिम खान की देखरेख में ये सोने का कलश तैयार हुआ था, जो सूरज की किरणों से चमकता था. अब तक तीन बार बदला गया कलशः आगरा के वरिष्ठ राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि 'तवारीख-ए-आगरा' में ताजमहल पर सोने का कलश लगाए जाने का जिक्र है. 1803 में जब अंग्रेजों का आगरा किला पर अधिकार हुआ. अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारी जोसेफ टेलर, जब ताजमहल देखने गया तो सोने का कलश की जानकारी मिलने पर उसने पहली बार सन 1810 में ताजमहल की चोटी से सोने का कलश उतरवा दिया. अंग्रेज अफसर जोसेफ टेलर ने ताजमहल की चोटी पर सोने के कलश की जगह तब सोने की पॉलिश वाला तांबे का बना कलश लगवाया था. इसके बाद सन 1876 में कलश बदला गया. अंग्रेज पुरातत्व अधिकारी के दिशा-निर्देश पर ताजमहल परिसर में मेहमान खाना के सामने चमेली फर्श पर सन 1888 में नाथूराम नाम के कारीगर ने कलश की लंबाई और चौड़ाई के हिसाब से आकृति बनाई. जिससे भविष्य में कलश की नापजोख में किसी तरह की परेशानी नहीं हो. इसके बाद सन् 1940 में ताजमहल का कलश बदला गया है. अब तक तीन बार ताजमहल का कलश बदला गया है.जांच में रिसाव की वजह आई सामनेः एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. राजकुमार पटेल ने बताया कि बारिश से एएसआई संरक्षित सभी स्मारकों पर हुए नुकसान और रिसाव की जांच कराई है. स्मारकों में नमी, पानी टपकने और दीवार गिरने की जानकारी मिली है. ताजमहल की चोटी पर लगे पीतल के कलश के सहारे सहारे मुख्य मकबरे में पानी टपकने की आशंका है. पीतल के कलश लगाने में लगे लोहे के ज्वॉइंटस में जंग लगने की आशंका है. जंग की वजह से धातु फूलती है. जिसकी वजह से पत्थर में क्रेक आने की भी आशंका है. इसका ड्रोन से भी सर्वे किया गया है. इस पर काम किया जाएगा. ताजमहल की सफाई हर शुक्रवार को बड़े स्तर पर की जाती है. ताजमहल के रखरखाव पर सियासतः ताजमहल के बीते दिनों में एक बाद एक वायरल हुए वीडियो और मुख्य मकबरे की कब्रों पर पानी टपकने पर सियासत शुरू हो गई है. सपा मुखिया पूर्व सीएम अध्यक्ष अखिलेश यादव ने गुरुवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट करके ताजमहल के रख रखाव पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा है कि पर्यटक ताजमहल को निहारें या समस्याओं से निपटें. जिस तरह के हालात हो रहे हैं. उनसे दुनियाभर से आने वाले पर्यटकों के बीच भारत की छवि वैश्विक स्तर पर धूमिल होती है. जबकि, हर साल ताजमहल के रख-रखाव के लिए जो करोड़ों रुपये का फंड आता है, वो कहां जाता है.

इसे भी पढ़ें-ताजमहल या तेजोमहालय; जलाभिषेक-दुग्धाभिषेक की मांग मामले में ASI की अपील और आपत्ति खारिज

आगराः मोहब्बत की निशानी ताजमहल का नाम जहन में आते ही उसकी खूबसूरती हर किसी को दीवाना बना देती है. ताजमहल की नायाब कारीगरी, पच्चीकारी और वास्तुकला देखने को सात समंदर पार से हर साल लाखों पर्यटक आते हैं. लेकिन समय के साथ ही प्रदूषण, अनदेखी और लापरवाही से ताजमहल की खूबसूरती पर दाग लग रहे हैं. यही वजह है कि तीन दिनों तक हुई बारिश में ताजमहल के मुख्य मकबरे में स्थित मुमताज और शाहजहां की कब्र पर पानी टपका. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के वैज्ञानिकों की टीम ने बारिश से ताजमहल में हुए नुकसान का मैनुअल और ड्रोन से सर्वे किया. प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में सामने आया है कि ताजमहल की मुख्य गुंबद की चोटी पर स्थित पीतल के कलश की सपोर्ट में लगे लोहे के एंगल में जंग लगने से कलश के सहारे पानी टपका है. जिस कलश से पानी टपका है, वह 466 किलोग्राम सोने का था. 30.5 फीट ऊंचे इस कलश को 377 साल में तीन बार बदला गया और सोने की जगह पीतल का हो गया.

16 साल में बनकर तैयार हुआ था ताज महलः बता दें कि मुगल बादशाह शहंशाहजां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में 1632 से 1648 के बीच यमुना किनारे ताजमहल का निर्माण कराया था. सफेद संगमरमर के साथ ही विदेश से मंगवाए बेशकीमती स्टोन भी ताजमहल की खूबसूरती बढ़ाते हैं. तब 20000 से ज्यादा मजदूरों ने दिनरात काम करके ताजमहल बनाया था. उस समय ताजमहल बनाने में करोड़ों रुपये खर्च हुए. सन् 1983 में यूनेस्को ने ताजमहल को विश्व धरोहर घोषित किया था. इसके बाद से ही ताजमहल देखने आने वाले विदेशी मेहमानों की संख्या बढ़ी है.

आगरा ताजमहल. (Video Credit; ETV Bharat)
ताजमहल में तीसरी बार सुपुर्दे खाक हुई थी मुमताजः आगरा के वरिष्ठ राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि मुगल बादशाह शहंशाह शाहजहां की सबसे चहेती बेगम मुमताज की 17 जून 1631 को मौत हो गई थी. बुरहानपुर में मुमताज की मौत अपनी 14 वीं संतान गौहारा बेगम को जन्म देने के समय हुई थी. प्रसव पीड़ा के दौरान मुमताज की मौत होने पर उसे बुरहानपुर में तापी नदी के किनारे सुपुर्दे खाक किया गया था. मुमताज की मौत से शाहजहां बेहद दुखी था. इसलिए, उसने मुमताज की याद में ताजमहल का निर्माण कराया. बुरहानपुर से मुमताज का शरीर 790 किलोमीटर दूर आगरा लाया गया. इसके बाद ताजमहल में तीसरी बार सुपुर्दे खाक किया गया. लाहौर के काजिम खान की देखरेख में बना था सोने का कलशः राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि शाहजहां ने ताजमहल महल के निर्माण में खूब खर्चा किया था. सफेद संगमरमर के साथ ही ताजमहल में विदेश से भी चमकीले और बेशकीमती पत्थर मंगवाए. जिन्हें कारीगरों ने तराश कर पच्चीकारी से ताजमहल में लगाया. जो ताजमहल की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं. ताजमहल चमके और दमके इसके लिए शाहजहां ने ताजमहल की चोटी पर लगाने के लिए शाही खाजना से सोने का कलश बनवाया था. ये सोने का कलश तब करीब 40 हजार तोला सोना यानी 466 किलोग्राम का करीब 30.5 फीट ऊंचा बनवाया था. लाहौर से विशेष रूप से बुलवाए गए काजिम खान की देखरेख में ये सोने का कलश तैयार हुआ था, जो सूरज की किरणों से चमकता था. अब तक तीन बार बदला गया कलशः आगरा के वरिष्ठ राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि 'तवारीख-ए-आगरा' में ताजमहल पर सोने का कलश लगाए जाने का जिक्र है. 1803 में जब अंग्रेजों का आगरा किला पर अधिकार हुआ. अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारी जोसेफ टेलर, जब ताजमहल देखने गया तो सोने का कलश की जानकारी मिलने पर उसने पहली बार सन 1810 में ताजमहल की चोटी से सोने का कलश उतरवा दिया. अंग्रेज अफसर जोसेफ टेलर ने ताजमहल की चोटी पर सोने के कलश की जगह तब सोने की पॉलिश वाला तांबे का बना कलश लगवाया था. इसके बाद सन 1876 में कलश बदला गया. अंग्रेज पुरातत्व अधिकारी के दिशा-निर्देश पर ताजमहल परिसर में मेहमान खाना के सामने चमेली फर्श पर सन 1888 में नाथूराम नाम के कारीगर ने कलश की लंबाई और चौड़ाई के हिसाब से आकृति बनाई. जिससे भविष्य में कलश की नापजोख में किसी तरह की परेशानी नहीं हो. इसके बाद सन् 1940 में ताजमहल का कलश बदला गया है. अब तक तीन बार ताजमहल का कलश बदला गया है.जांच में रिसाव की वजह आई सामनेः एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. राजकुमार पटेल ने बताया कि बारिश से एएसआई संरक्षित सभी स्मारकों पर हुए नुकसान और रिसाव की जांच कराई है. स्मारकों में नमी, पानी टपकने और दीवार गिरने की जानकारी मिली है. ताजमहल की चोटी पर लगे पीतल के कलश के सहारे सहारे मुख्य मकबरे में पानी टपकने की आशंका है. पीतल के कलश लगाने में लगे लोहे के ज्वॉइंटस में जंग लगने की आशंका है. जंग की वजह से धातु फूलती है. जिसकी वजह से पत्थर में क्रेक आने की भी आशंका है. इसका ड्रोन से भी सर्वे किया गया है. इस पर काम किया जाएगा. ताजमहल की सफाई हर शुक्रवार को बड़े स्तर पर की जाती है. ताजमहल के रखरखाव पर सियासतः ताजमहल के बीते दिनों में एक बाद एक वायरल हुए वीडियो और मुख्य मकबरे की कब्रों पर पानी टपकने पर सियासत शुरू हो गई है. सपा मुखिया पूर्व सीएम अध्यक्ष अखिलेश यादव ने गुरुवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट करके ताजमहल के रख रखाव पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा है कि पर्यटक ताजमहल को निहारें या समस्याओं से निपटें. जिस तरह के हालात हो रहे हैं. उनसे दुनियाभर से आने वाले पर्यटकों के बीच भारत की छवि वैश्विक स्तर पर धूमिल होती है. जबकि, हर साल ताजमहल के रख-रखाव के लिए जो करोड़ों रुपये का फंड आता है, वो कहां जाता है.

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