सोलन: राज्य स्तरीय शूलिनी मेला 21 से 23 जून तक मनाया जा रहा है. इस बार भीषण गर्मी को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने भी मेले को लेकर तैयारियां पूरी कर ली हैं. स्वास्थ्य विभाग ने अपना काम चार भागों में बांटा है. क्षेत्रीय अस्पताल सोलन में सभी डॉक्टरों को छुट्टियों पर न जाने के आदेश दे दिए गए हैं. अस्पताल में सभी दवाइयों का स्टॉक पूरा कर लिया गया है.
इसी के साथ अस्पताल में लोगों के ऑपरेशन और अल्ट्रासाउंड मेले के दौरान हो सके इसको लेकर भी तैयारी की जा चुकी है. सीएमओ सोलन डॉ राजन उप्पल ने बताया मेले के साथ ठोडो मैदान सोलन में फर्स्ट एड कैंप भी विभाग की ओर से लगाया जाएगा. यहां हर प्रकार की सुविधा लोगों को दी जाएगी. इसी के साथ स्वास्थ्य विभाग की तीन एंबुलेंस ठोडो ग्राउंड, रबोन और पुराने बस स्टैंड पर रखी जाएंगी, ताकि आपातकालीन स्थिति में इनका इस्तेमाल जल्द से जल्द किया जाए. इसी के साथ स्वास्थ्य विभाग की ओर से बेबी शो और अन्य प्रदर्शनियां भी लगाई जाएंगी, जिसके माध्यम से लोगों को जागरूक किया जाएगा. सोलन स्वास्थ्य विभाग ने गर्मियों को देखते हुए लोगों से पानी की बोतल, छाता साथ रखने और ओआरएस का पैकेट लेने के साथ अनावश्यक घरों से बाहर न निकलने की अपील भी की है.
थर्मोकोल-प्लास्टिक बने गिलास पर होगा प्रतिबंध
वहीं, मेले के दौरान उंचित संख्या में पुलिस बल को तैनात किया जाएगा. वहीं, मेले के दौरान लगने वाले भंडारों के लिए इस बार विशेष प्रावधान किए गए हैं. सफाई व्यवस्था का विशेष ध्यान रखा जाएगा. वही, भंडारों में थर्मोकोल और प्लास्टिक से बने गिलास और पत्तल में खाना नहीं परोसा जा सकेगा.
बघाट रियासत की कुलदेवी हैं मां शूलिनी
शूलिनी माता का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा है. माता शूलिनी को बघाट रियासत के राजाओं की कुलदेवी देवी माना जाता है. माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के शीली मार्ग पर स्थित है. शहर की अधिष्ठात्री देवी शूलिनी माता के नाम से ही शहर का नाम सोलन पड़ा, जो देश की स्वतंत्रता से पूर्व बघाट रियासत की राजधानी के रूप में जाना जाता था. माना जाता है कि बघाट रियासत के शासकों ने यहां आने के साथ ही अपनी कुलदेवी शूलिनी माता की स्थापना सोलन गांव में की और इसे रियासत की राजधानी बनाया. मान्यता के अनुसार बघाट के राजा अपनी कुल देवी यानी की माता शूलिनी को प्रसन्न करने के लिए हर मेले का आयोजन करते थे. यहां के लोगों का मानना है कि मां शूलिनी के खुश होने पर यहां किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा व महामारी का प्रकोप नहीं होता, बल्कि शहर में सिर्फ खुशहाली आती है. इसलिए आज भी मेले की यह परंपरा कायम है.