प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि अग्रिम जमानत अर्जी में जो तथ्य नहीं लिखे गए, वकील की बहस में वे स्वीकार नहीं किए जा सकते. वकील उन्हीं तथ्यों पर बहस कर सकते हैं, जो अर्जी में लिखे गए हैं. कोर्ट ने कहा यदि तथ्यों से अपराध बनता है तो अग्रिम जमानत देना पीड़ित के हित के विपरीत और अन्याय होगा. अग्रिम जमानत विशेष प्रावधान है, जिसमें झूठा फंसाए जाने की संभावना पर न्यायालय अपने अधिकार का इस्तेमाल कर देता है. कोर्ट ने कहा कि न्यायालय का दायित्व है कि सभी पक्षों को न्याय मिले. यदि आरोपी के खिलाफ अपराध बोध रहा हो तो उसका दायित्व है कि वह उन विशेष परिस्थितियों का सहारा ले. जिस पर न्यायालय उसे संरक्षण दे सके. यदि निर्दोष होने के साक्ष्य नहीं हैं तो जमानत देना न्याय की हत्या होगी. इसी के साथ कोर्ट ने झांसी के प्रेमनगर थाना क्षेत्र के बैंक हेड कैशियर मनीष कुमार की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी है. यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान ने दिया है.
तथ्यों के अनुसार सुनील कुमार तिवारी सुरक्षा गार्ड योगेन्द्र सिंह के साथ बैंक गए थे. बैंक हेड कैशियर मनीष कुमार को 39,34,489 रुपये खाते में जमा करने को दिए. सुनील कुमार रसीद लिए बगैर वापस चले गए. दूसरे दिन रसीद लेने आदमी भेजा तो 11,34,489 रुपये की ही जमा रसीद दी गई. इस पर एफआईआर दर्ज कराई गई. कोर्ट में याची बैंक हेड कैशियर का कहना था वह निर्दोष है, उसे झूठा फंसाया गया है. रुपये दिए तो पूरे गए थे लेकिन थोड़ी देर बाद गार्ड ने 28 लाख ले लिए, शेष राशि ही जमा की गई. यह सीसीटीवी फुटेज में है. जब कोर्ट ने पूछा कि कोई दस्तावेज है, जिससे याची निर्दोष साबित हो. लेकिन ऐसा नहीं किया जा सका. उन तथ्यों की बहस की गई, जो अर्जी में लिखे ही नहीं गए थे. इस पर कोर्ट ने अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया.
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