बीकानेर : 'कर्ता करे न कर सके गुरु करे सो होय, तीन लोक छह खंड में गुरु से बड़ा ना कोय'. गुरु के लिए ये पंक्तियां इसलिए सटीक बैठती हैं, क्योंकि जिंदगी में जो कुछ गुरु कर सकता है वह दूसरा कोई नहीं. आज शिक्षक दिवस के मौके पर हम बात कर रहे हैं बीकानेर के उस शिक्षक की, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में एक मुकाम हासिल किया है. बीकानेर के सार्वजनिक निर्माण विभाग में अतिरिक्त निजी सचिव के पद पर कार्यरत दिनेश कुमार बिस्सा ने वास्तव में गुरु की महिमा को सार्थक किया है.
35 सालों में हजारों का जीवन संवारा : करीब 35 साल से बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दे रहे बिस्सा ने हजारों बच्चों के जीवन को संवारने का काम किया है. करीब 36 साल पहले अंग्रेजी स्टेनो करने के बाद सरकारी सेवा में आए बिस्सा ने अपने संघर्ष के दिनों से सीख लेते हुए कुछ कर गुजरने की ठानी. बिस्सा ने अंग्रेजी स्टेनो सिखाने का निर्णय किया और धीरे-धीरे बच्चों को इसकी शिक्षा देने लगे. पिछले 35 साल से लगातार बिस्सा अपने ऑफिस का समय पूरा होने के बाद अपने घर पर शाम को अंग्रेजी स्टेनो की क्लास लगाते हैं और पूरी तरह से बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देते हैं. बिस्सा से अंग्रेजी स्टेनो सीखे हजारों छात्र आज देश के अलग-अलग राज्यों में सरकारी विभागों में बतौर स्टेनो कार्यरत हैं.
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कुछ देकर जाऊं : बिस्सा कहते हैं कि उनका खुद का बचपन काफी संघर्ष भरा रहा और जब उन्होंने सरकारी नौकरी हासिल की तो उन्हें एक साथ कई नौकरियां मिली. सचिवालय में भी उनका सिलेक्शन हुआ और बाद में पीडब्ल्यूडी में. उस समय के हालात को देखते हुए उन्होंने बीकानेर में ही रहना उचित समझा और सचिवालय की नौकरी करने की बजाय बीकानेर में नौकरी की, क्योंकि वे चाहते थे कि बीकानेर के बच्चे भी आगे बढ़ें. इसके बाद उन्होंने घर पर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. आज उन्हें खुशी है कि अब तक जितनी भी प्रतियोगी परीक्षाएं हुई, उसमें उनके शिष्य शामिल रहे और सरकारी नौकरी हासिल की. बिस्सा कहते हैं कि हमारी भी समाज और देश की प्रति जिम्मेदारी है और इसीलिए मैंने बिना किसी फीस के बच्चों को पढ़ाया. आज मुझे सुकून है कि मैंने कुछ बेहतर करने का प्रयास किया. सरकारी सेवा में रहते हुए अपने सरकारी काम के चलते कई बार बिस्सा को जिला प्रशासन और विभागीय स्तर पर भी सम्मानित किया गया है, जो उनके काम और जिम्मेदारी के प्रति समर्पण को दर्शाता है.
निजी जिंदगी जितना महत्व : बिस्सा के स्टूडेंट और इनकम टैक्स विभाग में कार्यरत विनय प्रकाश कहते हैं कि उनके गुरु ने हमेशा उनका मार्गदर्शन किया. यह उनके गुरु के त्याग और समर्पण का ही फल है कि आज हम इस मुकाम पर हैं. स्टूडेंट मनोज पुरोहित कहते हैं कि उनसे सीखा ज्ञान आज हमारा आर्थिक पोषण कर रहा है. 'आज मैं बीकानेर में एक इंस्टिट्यूट का संचालन कर रहा हूं , जिसमें बच्चों को अंग्रेजी स्टेनो सिखा रहा हूं. बड़ी संख्या में बच्चे मेरे पास सीखने के लिए आते हैं, लेकिन आज भी जब मुझे जरूरत होती है, तो मैं सर के पास आता हूं और सर मेरी पूरी मदद करते हैं'.
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कभी छुट्टी नहीं ली : बिस्सा के पास आने वाली स्टूडेंट लीना रंगा कहती हैं कि सर ने हमेशा हमें महत्व दिया. यह अपने आप में एक अनुपम उदाहरण है कि सर ने कभी कोई छुट्टी नहीं रखी, बल्कि हम कभी कोई काम होने का बहाना करके छुट्टी लेते थे, लेकिन सर ने हमेशा क्लास जारी रखी. यहां तक कि अपने पारिवारिक काम से जब 3 महीने के लिए विदेश यात्रा पर गए, तब भी वहां से ऑनलाइन डिक्टेशन देते थे. यह इनका स्टूडेंट के प्रति समर्पण ही कहा जा सकता है. रंगा कहती हैं कि यह एक गुरुकुल है, जहां हमें विश्वास गुरु के रूप में शिक्षा देते हैं.
मेरी बच्चों से ज्यादा स्नेह : बिस्सा की धर्मपत्नी विजयलक्ष्मी कहती है कि पिछले 35 सालों में जब से 'मैं इस घर में आई हूं मुझे इन बच्चों का स्नेह मिला है. वह कहती हैं कि मेरी दो बच्चियां हैं और दोनों ही विदेश में हैं, लेकिन आज भी मुझे उन बच्चियों की कमी महसूस नहीं होती, क्योंकि हर रोज बड़ी संख्या में स्टूडेंट घर पर आते हैं और बड़े स्नेह के साथ रहते हैं. यहां तक कि जब उन्हें भूख लगती है, तब मैं उन्हें कुछ बनाकर खिलाती हूं और पढ़ाई के अलावा बच्चों के साथ मेरा समय व्यतीत होता है. यही हमारी जमा पूंजी है. आर्थिक युग में निःशुल्क पढ़ाई के सवाल पर कहती हैं कि सब कुछ पैसे से नहीं होता प्यार और समर्पण बड़ी पूंजी है'.