रायपुर : छोटे बच्चों को अक्सर आपने रात को सोते वक्त बिस्तर गीला करते देखा होगा.बच्चे ये आदत आसानी से नहीं छोड़ते.लेकिन आजकल ये आदत बड़ों में भी दिखने लगी है.इस आदत के कारण वयस्कों को कई बीमारियों का सामना करना पड़ता है.रिसर्च के मुताबिक ये समस्या महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में ज्यादा देखने को मिलती है.इस समस्या से ग्रसित व्यक्ति को इलाज की जरुरत होती है.ताकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ उसे गंभीर बीमारियां ना घेरे.
बिस्तर गीला करना किस बीमारी के लक्षण : जो व्यक्ति रात को सोते समय अक्सर अपना बिस्तर गीला करते हैं,उन्हें एनुरेसिस बीमारी की समस्या होती है. भीमराव अंबेडकर की डॉक्टर सुरभि दुबे के मुताबिक एनुरेसिस का मतलब ब्लैडर के टोन मेंटेन नहीं रख पाने से संबंधित है.ये बीमारी प्राइमरी या सेकेंडरी भी हो सकती है.
क्या है प्राइमरी और सेकंडरी एनुरेसिस ? : प्राइमरी स्टेज में बच्चा एक साल से 5 साल या बड़े होने के बाद भी यदि बिस्तर पर यूरीन करता है तो वह प्राइमरी एनुरेसिस की श्रेणी में आता है. यदि बच्चे को 5 साल तक अपना ब्लैडर कंट्रोल करना नहीं आता तो उसे बड़ा होने पर समस्या दूर होती है.
सेकंडरी एनुरेसिस में एडल्ट की कोई सर्जरी हुई है या कोई दूसरी मेडिकल परेशानी है.इस वजह से वो अपना यूरीन कंट्रोल नहीं कर पाता. प्राइमरी स्टेज में डॉक्टर्स ब्लैडर की ट्रेनिंग और ब्लैडर एक्सरसाइज बताते हैं.
'' इस बीमारी का सामना करने वाले मरीजों को अलग अलग समय में यूरीन समस्या होती है. जिसमें रात और दिन के हिसाब से इसे बांटा गया है. रात में यदि किसी व्यक्ति को यूरिन की समस्या ज्यादा हो तो इसे नॉक टर्नल कहा जाता है.वहीं दिन में होने वाली इस समस्या को यूरिनरी इनकॉन्टिनेंस कहते हैं.'' डॉ सुरभि दुबे, भीमराव अंबेडकर हॉस्पिटल
एनुरेसिस के कारण होने वाली समस्या :
● यूरिनरी ट्रैक्ट इनफेक्शन
● मूत्राशय में पथरी
● डायबिटीज
● प्रोस्टेट ट्यूमर
● रीड की हड्डी में चोट
● ब्रेन हेमरेज
● ब्रेन स्ट्रोक
● ब्रेन ट्यूमर
कैसे करें एनुरेसिस का इलाज ? एनुरेसिस के इलाज के लिए डॉक्टर पहले मरीज का हेल्थ हिस्ट्री चेक करते हैं.इसके बाद शारीरिक तौर पर पूरी तरह मूल्यांकन किया जाता है. महिलाओं को पेल्विक टेस्ट और पुरुषों के लिए डिजिटल रेक्टल टेस्ट होता है. ताकि बीमारी का पूरी तरह पता लगाया जा सके.यदि यूरिन इन्फेक्शन किसी भी बीमारी का पता चलता है तो मरीज को खाने के लिए डॉक्टर दवा देते हैं.यदि इस तरह की कोई मेडिकल हिस्ट्री नहीं निकलती तो मरीजों को ब्लैडर ट्रेनिंग लाइफस्टाइल में सुधार करने को कहा जाता है. बेड वेटिंग अलार्म के लिए मनोवैज्ञानिक एक्सपर्ट की सलाह ली जाती है.