रुद्रप्रयाग: ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने कहा शीतकालीन यात्रा में ग्रीष्मकालीन यात्रा से ज्यादा पुण्य प्राप्त करने के अवसर है. ग्रीष्मकाल में अत्यधिक भीड़भाड़ के चलते लोगों को पूजा करने का वैसा अवसर नहीं मिल पाता है, इसलिए शीतकाल में अधिक से अधिक लोग चारधामों के शीतकालीन पड़ावों में आकर दर्शन करना चाहिए.
गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरीनाथ और केदारनाथ के शीतकालीन पड़ावों में शीतकालीन यात्रा कर लौटे शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद रुद्रप्रयाग पहुंचे. शंकराचार्य ने कहा शीतकालीन यात्रा हमारी प्राचीन परम्परा है. हम चारधामों में नियमित पूजा करते आ रहे हैं. जब शीतकाल बढ़ता है या ग्रीष्मकाल आता है तो हमारी परिस्थितियां अलग हो जाती हैं. इसीलिए हमारे ग्रीष्मकालीन पूजा के स्थान अलग जगह पर बने हैं. शीतकालीन पूजा के स्थान अलग जगह पर बने हैं. ठीक उसी प्रकार जिस तरह हमारी प्रदेश की राजधानी दो स्थानों पर संचालित होती हैं. एक राजधानी शीतकाल की है और एक ग्रीष्मकालीन की है.
सरकार जब शीतकाल और ग्रीष्मकाल में यहां बैठकर निर्णय लेती है तो सरकार वही रहती है निर्णय वैसे ही रहते हैं, केवल स्थान बदल जाते हैं. उसी तरह से हमारे भगवान वही हैं. ग्रीष्मकाल की जगह पर बैठकर पूजा प्राप्त करें या शीतकाल के स्थान पर बैठकर पूजा प्राप्त करें. ये बात धीरे-धीरे लोगों के विस्मृति में चली जा रही थी. देशभर में लोग समझते हैं कि कपाट बंद होने का अर्थ यह है कि अब पहाड़ों में ठंड बहुत हो जाएगी, यहां जाना मुश्किल है, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है. इसी अर्थ के चलते लोग शीतकालीन दर्शन से वंचित हो जाते हैं. शंकराचार्य ने कहा कि वे स्वयं लोगों को संदेश देने के लिए शीतकालीन यात्रा पर आएं हैं.