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'छोड़ देना चाहिए था विधायक का पद, सीपीएस का पद ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का था मामला'

सीपीएस पर हाईकोर्ट के निर्णय के बाद सरकार पर बीजेपी हमलावर है. बीजेपी ने सभी छह विधायकों को विधानसभा की सदस्यता छोड़ने की दी है.

सांसद सुरेश कश्यप
सांसद सुरेश कश्यप (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 2 hours ago

शिमला: हाईकोर्ट द्वारा सीपीएस पदों को असवैधानिक करार दिया था. कोर्ट ने अपने फैसले में सभी 6 सीपीएस को पद से हटाने के आदेश दिए थे. वहीं इसको लेकर भाजपा हमलावर है. बीजेपी पूर्व में सीपीएस रहे सभी विधायकों को अपनी सदस्यता छोड़ने की सलाह दे रही है.

वहीं, अब इस मामले को लेकर सांसद सुरेश कश्यप ने कहा कि, 'सरकार के सीपीएस हिमाचल प्रदेश पर केवल आर्थिक बोझ थे. भाजपा एक स्वर में लगातार सभी 6 सीपीएस की नियुक्तियों का विरोध कर रही थी और जो निर्णय उच्च न्यायालय की ओर से लिया गया है वो ऐतिहासिक है. सभी सीपीएस असंवैधानिक माने जाते है, यह उच्च न्यायालय की ओर से जारी ऑर्डर में भी लिखा गया है. यह सभी नियुक्तियां ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के अंतर्गत आती हैं और जल्द ही सभी पूर्व सीपीएस, पूर्व विधायक बन कर रह जाएंगे. नैतिकता के आधार पर सभी पूर्व सीपीएस को अपना अपना पद छोड़ देना चाहिए.'

सुरेश कश्यप ने कहा कि, 'सुनने में आया है कि हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य संसदीय सचिव की नियुक्तियों को रद्द करने के निर्णय को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की है. वहीं, चौपाल से भाजपा विधायक बलवीर वर्मा ने भी सुप्रीम कोर्ट में इस मसले में केविएट दायर की है कि इस पर निर्णय से पहले उनका पक्ष भी सुना जाए. दोनों मामले अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए लगेंगे. इसका सीधा मतलब है कि सरकार अपने गलत निर्णय को लगातार बचाने का प्रयास कर रही है, पर जिस प्रकार से उच्च न्यायालय का निर्णय आया है वह स्पष्ट और साफ है. वहीं, हाईकोर्ट के निर्णय के बाद वीरवार को पूर्व मुख्य संसदीय सचिवों ने अपने कार्यालय खाली कर दिए हैं, जबकि आवास खाली करने के लिए एक माह का समय दिया है, जो भी सरकारी पैसा इन विधायकों एवं पूर्व सीपीएस की ओर से खर्चा गया है वो सरकारी खजाने में वापिस आना चाहिए.'

ये भी पढ़ें: CPS मामला: सुखविंदर सरकार ने HC के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका, BJP ने भी फाइल की कैविएट

शिमला: हाईकोर्ट द्वारा सीपीएस पदों को असवैधानिक करार दिया था. कोर्ट ने अपने फैसले में सभी 6 सीपीएस को पद से हटाने के आदेश दिए थे. वहीं इसको लेकर भाजपा हमलावर है. बीजेपी पूर्व में सीपीएस रहे सभी विधायकों को अपनी सदस्यता छोड़ने की सलाह दे रही है.

वहीं, अब इस मामले को लेकर सांसद सुरेश कश्यप ने कहा कि, 'सरकार के सीपीएस हिमाचल प्रदेश पर केवल आर्थिक बोझ थे. भाजपा एक स्वर में लगातार सभी 6 सीपीएस की नियुक्तियों का विरोध कर रही थी और जो निर्णय उच्च न्यायालय की ओर से लिया गया है वो ऐतिहासिक है. सभी सीपीएस असंवैधानिक माने जाते है, यह उच्च न्यायालय की ओर से जारी ऑर्डर में भी लिखा गया है. यह सभी नियुक्तियां ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के अंतर्गत आती हैं और जल्द ही सभी पूर्व सीपीएस, पूर्व विधायक बन कर रह जाएंगे. नैतिकता के आधार पर सभी पूर्व सीपीएस को अपना अपना पद छोड़ देना चाहिए.'

सुरेश कश्यप ने कहा कि, 'सुनने में आया है कि हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य संसदीय सचिव की नियुक्तियों को रद्द करने के निर्णय को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की है. वहीं, चौपाल से भाजपा विधायक बलवीर वर्मा ने भी सुप्रीम कोर्ट में इस मसले में केविएट दायर की है कि इस पर निर्णय से पहले उनका पक्ष भी सुना जाए. दोनों मामले अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए लगेंगे. इसका सीधा मतलब है कि सरकार अपने गलत निर्णय को लगातार बचाने का प्रयास कर रही है, पर जिस प्रकार से उच्च न्यायालय का निर्णय आया है वह स्पष्ट और साफ है. वहीं, हाईकोर्ट के निर्णय के बाद वीरवार को पूर्व मुख्य संसदीय सचिवों ने अपने कार्यालय खाली कर दिए हैं, जबकि आवास खाली करने के लिए एक माह का समय दिया है, जो भी सरकारी पैसा इन विधायकों एवं पूर्व सीपीएस की ओर से खर्चा गया है वो सरकारी खजाने में वापिस आना चाहिए.'

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