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गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी में पेलेट्रॉन आयन एक्सीलेरेटर मशीन वाला लैब, बहुआयामी साइंटिफिक रिसर्च में मिलेगी मदद - accelerator machine In Bilaspur

गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पेलेट्रॉन आयन एक्सीलेरेटर मशीन पूरे देश के विश्वविद्यालय में पहला कार्यशील मशीन है. इस मशीन में इतनी खूबी है कि यह देश विकास के साथ ही रिसर्च करने वालों के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है. इस मशीन से जहां वैज्ञानिक शोध करते हैं. वहीं, नए छात्र शोध कर वैज्ञानिक बन सकते हैं.

become scientists with Pelletron ion accelerator machine
एक्सीलेरेटर मशीन से छात्र बनेंगे वैज्ञानिक (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : May 22, 2024, 7:33 PM IST

Updated : May 22, 2024, 9:59 PM IST

गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी में पेलेट्रॉन आयन एक्सीलेरेटर मशीन वाला लैब (ETV BHARAT)

बिलासपुर: बिलासपुर के सेंट्रल यूनिवर्सिटी में साल 2013 में यह 3MB पेलेट्रॉन आयन एक्सीलेरेटर मशीन विश्वविद्यालय शिक्षण विभाग के भौतिक शास्त्र संकाय में स्थापित कराई गई थी. इसके बाद साल 2014 से इस मशीन का संचालन शुरू किया गया. करीब 3 साल तक चलते रहने के बाद इसका परिचालन साल 2017 में बंद हो गया. पिछले करीब 7 साल से बंद इस मशीन को अब फिर से चलाया जा रहा है. इस मशीन की एक खूबी यह है कि ऐतिहासिक महत्व के स्मारकों और भावनों के छोटे हिस्से को निकालकर इस मशीन से यह पता लगाया जा सकता है कि यह स्मारक कितने साल पहले बनी थी.

रिसर्चर के लिए काफी महत्वपूर्ण: पेलेट्रॉन आयन एक्सीलेरेटर मशीन रिसचर्स के लिए काफी महत्वपूर्ण है. एटोमिक एनर्जी के लिए इस मशीन का उपयोग किया जाता है. वैसे इस मशीन की संख्या इस देश में बहुत ही काम है और अच्छी क्वालिटी के साथ ही देश के इंस्टिट्यूट में तो यह मशीन है. भारत का पहला विश्वविद्यालय गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी है, जिसमें यह मशीन चल रही है. इस मशीन की खूबियां इतनी है कि अलग-अलग विषय के साथ ही एटॉमिक रिसर्च भी इस मशीन से किया जा सकता है. यह हाई करंट की एकमात्र मशीन है, जो 50 माइक्रो इंपीयर की है. इस मशीन में रेडिएशन सेफ्टी का भी ध्यान रखा जाता है. यह रेडिएशन पैदा करता है. इस मशीन से बीज के बारे में यह पता कर सकते हैं कि उसका प्रोडक्शन कैसा रहेगा या क्वालिटी किस तरह कंट्रोल की जाएगी. कृषि के क्षेत्र में इस तरह के रिसर्च से कृषि को काफी लाभ होगा.

बीमारी और दवाइयों पर की जाती है रिसर्च: यह मशीन हर क्षेत्र में रिसर्च कर उसके समाधान की जानकारी दे सकता है. यदि मेडिकल के विषय में कहा जाए तो यह बीमारी के साथ ही इक्विपमेंट और बीमारी के निदान को लेकर रिसर्च कर बीमारियों की दवाइयां बनाने में भी मदद करती है. सेटेलाइट के माध्यम से जो मैपिंग होती है, उसमें भी इस मशीन का उपयोग कर सही मैपिंग की जा सकती है.

एटॉमिक एनर्जी वाली फैसिलिटी के रिसर्च की सुविधा है. इसमें मेटलर्जी, प्रोटॉन, एटॉमिक एनर्जी के साथ ही सैटेलाइट रिसर्च में देश के बहुत सारे एरियाज को मैपिंग करने, मेडिकल इक्विपमेंट और मेडिकल रिसर्च में इसकी उपयोगिता है. हाल ही में हम साइंटिस्ट को बुलाकर वर्कशॉप करेंगे, जिससे सुविधा के बारे में हम उनको जानकारी देंगे.साथ ही साथ यहां पर किस तरह के रिसर्च किए जा सकते हैं,इसके लिए हम एक्सपर्ट को बुलाने वाले हैं. इस मशीन से साइंटिफिक रिसर्च और देश के विकास में मदद मिलेगी".-डॉक्टर आलोक कुमार चक्रवाल ,कुलपति, गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी

मध्य भारत का पहला पेलेट्रॉन एक्सीलेरेटर: गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी के भौतिक विभाग अध्यक्ष और मशीन के इंचार्ज प्रोफेसर एम एन त्रिपाठी ने ईटीवी भारत को बताया कि, "3एंबी की यह मशीन मध्य भारत की पहली मशीन है. ये सेंट्रल यूनिवर्सिटी में स्थापित है. इस मशीन के लिए एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड से ट्रायल रन के लिए अभी 3 माह का लाइसेंस प्राप्त हुआ है. इस मशीन से फार्मेसी, केमिस्ट्री कृषि विज्ञान आर्कियोलॉजी, जीव विज्ञान, मटेरियल साइंस के साथ ही औद्योगिक के क्षेत्र में भी इसका उपयोग कर औद्यौगिक विकास किया जा सकता है. पेलेट्रॉन एक्सीलेरेटर मल्टी रिसर्चर पेलेट्रन मशीन है. इसमें रिसर्च होने से देश के बड़े-बड़े साइंटिस्ट का ध्यान तो खींचेगा. साथ ही इसमें शोध करने विदेशों के रिसर्चर्स भी आयेंगे."

इस मशीन की उपयोगिता बहुत ज्यादा है. इससे हाई वोल्टेज जनरेट होता है. सेमी और सुपर कंडेक्ट्री में इसका उपयोग होता है. सोलर सेल्स में भी उपयोग होता है. यह हर क्षेत्र में मशीन से जुड़े रिसर्च को बढ़ावा देगा. यह मशीन यदि परमानेंट चालू रहेगी, तो छत्तीसगढ़ के अलावा देश के विकास में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. विदेश से वैज्ञानिक यहां रिसर्च करने आएंगे और नए-नए रिसर्च से देश के विकास में सहयोग मिलेगा. इसके अलावा नागरिकों को इसका एक बड़ा लाभ मिलेगा. -सुनील ओझा, वैज्ञानिक, इंटर यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली

दिल्ली की टीम ने शुरू किया ट्रायल: इस बारे में भारत परमाणु ऊर्जा नियामक मंडल ने तीन माह तक संचालन करने की अनुमति अभी विश्वविद्यालय को प्रदान की है. भौतिक विभाग में अध्यनरत और कार्यरत रिसर्च स्कॉलर रिसर्च करके इसकी टेस्टिंग कर रहे हैं. इसके बाद जो डाटा प्राप्त किया जाएगा. उसे ही एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड में भेजा जाएगा. 3 माह के अंदर ही यह काम किया जाएगा ताकि अब मशीन के लिए नियमित लाइसेंस मिल सके. इस मशीन को चलाने के लिए लाइसेंस जरूरी होता है.

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बिलासपुर: बिलासपुर के सेंट्रल यूनिवर्सिटी में साल 2013 में यह 3MB पेलेट्रॉन आयन एक्सीलेरेटर मशीन विश्वविद्यालय शिक्षण विभाग के भौतिक शास्त्र संकाय में स्थापित कराई गई थी. इसके बाद साल 2014 से इस मशीन का संचालन शुरू किया गया. करीब 3 साल तक चलते रहने के बाद इसका परिचालन साल 2017 में बंद हो गया. पिछले करीब 7 साल से बंद इस मशीन को अब फिर से चलाया जा रहा है. इस मशीन की एक खूबी यह है कि ऐतिहासिक महत्व के स्मारकों और भावनों के छोटे हिस्से को निकालकर इस मशीन से यह पता लगाया जा सकता है कि यह स्मारक कितने साल पहले बनी थी.

रिसर्चर के लिए काफी महत्वपूर्ण: पेलेट्रॉन आयन एक्सीलेरेटर मशीन रिसचर्स के लिए काफी महत्वपूर्ण है. एटोमिक एनर्जी के लिए इस मशीन का उपयोग किया जाता है. वैसे इस मशीन की संख्या इस देश में बहुत ही काम है और अच्छी क्वालिटी के साथ ही देश के इंस्टिट्यूट में तो यह मशीन है. भारत का पहला विश्वविद्यालय गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी है, जिसमें यह मशीन चल रही है. इस मशीन की खूबियां इतनी है कि अलग-अलग विषय के साथ ही एटॉमिक रिसर्च भी इस मशीन से किया जा सकता है. यह हाई करंट की एकमात्र मशीन है, जो 50 माइक्रो इंपीयर की है. इस मशीन में रेडिएशन सेफ्टी का भी ध्यान रखा जाता है. यह रेडिएशन पैदा करता है. इस मशीन से बीज के बारे में यह पता कर सकते हैं कि उसका प्रोडक्शन कैसा रहेगा या क्वालिटी किस तरह कंट्रोल की जाएगी. कृषि के क्षेत्र में इस तरह के रिसर्च से कृषि को काफी लाभ होगा.

बीमारी और दवाइयों पर की जाती है रिसर्च: यह मशीन हर क्षेत्र में रिसर्च कर उसके समाधान की जानकारी दे सकता है. यदि मेडिकल के विषय में कहा जाए तो यह बीमारी के साथ ही इक्विपमेंट और बीमारी के निदान को लेकर रिसर्च कर बीमारियों की दवाइयां बनाने में भी मदद करती है. सेटेलाइट के माध्यम से जो मैपिंग होती है, उसमें भी इस मशीन का उपयोग कर सही मैपिंग की जा सकती है.

एटॉमिक एनर्जी वाली फैसिलिटी के रिसर्च की सुविधा है. इसमें मेटलर्जी, प्रोटॉन, एटॉमिक एनर्जी के साथ ही सैटेलाइट रिसर्च में देश के बहुत सारे एरियाज को मैपिंग करने, मेडिकल इक्विपमेंट और मेडिकल रिसर्च में इसकी उपयोगिता है. हाल ही में हम साइंटिस्ट को बुलाकर वर्कशॉप करेंगे, जिससे सुविधा के बारे में हम उनको जानकारी देंगे.साथ ही साथ यहां पर किस तरह के रिसर्च किए जा सकते हैं,इसके लिए हम एक्सपर्ट को बुलाने वाले हैं. इस मशीन से साइंटिफिक रिसर्च और देश के विकास में मदद मिलेगी".-डॉक्टर आलोक कुमार चक्रवाल ,कुलपति, गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी

मध्य भारत का पहला पेलेट्रॉन एक्सीलेरेटर: गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी के भौतिक विभाग अध्यक्ष और मशीन के इंचार्ज प्रोफेसर एम एन त्रिपाठी ने ईटीवी भारत को बताया कि, "3एंबी की यह मशीन मध्य भारत की पहली मशीन है. ये सेंट्रल यूनिवर्सिटी में स्थापित है. इस मशीन के लिए एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड से ट्रायल रन के लिए अभी 3 माह का लाइसेंस प्राप्त हुआ है. इस मशीन से फार्मेसी, केमिस्ट्री कृषि विज्ञान आर्कियोलॉजी, जीव विज्ञान, मटेरियल साइंस के साथ ही औद्योगिक के क्षेत्र में भी इसका उपयोग कर औद्यौगिक विकास किया जा सकता है. पेलेट्रॉन एक्सीलेरेटर मल्टी रिसर्चर पेलेट्रन मशीन है. इसमें रिसर्च होने से देश के बड़े-बड़े साइंटिस्ट का ध्यान तो खींचेगा. साथ ही इसमें शोध करने विदेशों के रिसर्चर्स भी आयेंगे."

इस मशीन की उपयोगिता बहुत ज्यादा है. इससे हाई वोल्टेज जनरेट होता है. सेमी और सुपर कंडेक्ट्री में इसका उपयोग होता है. सोलर सेल्स में भी उपयोग होता है. यह हर क्षेत्र में मशीन से जुड़े रिसर्च को बढ़ावा देगा. यह मशीन यदि परमानेंट चालू रहेगी, तो छत्तीसगढ़ के अलावा देश के विकास में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. विदेश से वैज्ञानिक यहां रिसर्च करने आएंगे और नए-नए रिसर्च से देश के विकास में सहयोग मिलेगा. इसके अलावा नागरिकों को इसका एक बड़ा लाभ मिलेगा. -सुनील ओझा, वैज्ञानिक, इंटर यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली

दिल्ली की टीम ने शुरू किया ट्रायल: इस बारे में भारत परमाणु ऊर्जा नियामक मंडल ने तीन माह तक संचालन करने की अनुमति अभी विश्वविद्यालय को प्रदान की है. भौतिक विभाग में अध्यनरत और कार्यरत रिसर्च स्कॉलर रिसर्च करके इसकी टेस्टिंग कर रहे हैं. इसके बाद जो डाटा प्राप्त किया जाएगा. उसे ही एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड में भेजा जाएगा. 3 माह के अंदर ही यह काम किया जाएगा ताकि अब मशीन के लिए नियमित लाइसेंस मिल सके. इस मशीन को चलाने के लिए लाइसेंस जरूरी होता है.

छत्तीसगढ़ के कोरबा में मिली दुर्लभ लेपर्ड गेको छिपकली, ईरान, अफगानिस्तान की गुफाओं में रहना है पसंद - LEOPARD GECKO Lizard
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Last Updated : May 22, 2024, 9:59 PM IST
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