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लड़कियों की शिक्षा के लिए डीसी के पत्नी ने दान कर दिए थे अपने जेवरात, ब्रिटिशकाल में शुरू हुआ स्कूल आज भी हो रहा संचालित

Story of Kamla Godbole. पलामू में सीएम एक्सीलेंस स्कूल ऑफ गर्ल्स के स्थापना की दिलचस्प कहानी है. ये स्कूल ब्रिटिश काल से चला आ रहा है. इसे तब किसी और नाम से जाना जाता था. इस स्कूल के लिए पलामू के तत्कालीन डीसी की पत्नी ने अपने सभी आभूषण दान कर दिए थे.

Story of Kamla Godbole
Story of Kamla Godbole
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jan 25, 2024, 10:49 PM IST

स्कूल के बारे में जानकारी देते संवाददाता नीरज कुमार

पलामू: जिले में लड़कियों के लिए एक स्कूल है, जिसकी स्थापना ब्रिटिशकाल में लड़कियों को शिक्षित करने के उद्देश्य से की गई थी. इस स्कूल की स्थापना करने में उस समय के तत्कालीन डीसी की पत्नी ने अग्रणी भूमिका निभाई थी. डीसी की पत्नी ने लड़कियों की शिक्षा के लिए अपने सारे आभूषण दान कर दिये थे. उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में अग्रणी भूमिका भी निभाई.

यह उस समय की बात है जब भारत में अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन चलाया जा रहा था. इस आंदोलन के दौरान पलामू जैसी जगहों पर लड़कियों की शिक्षा का मुद्दा भी उठाया गया. उस समय तत्कालीन डीसी की पत्नी के नाम पर पलामू में लड़कियों के लिए एक स्कूल की स्थापना की गयी. आज वह स्कूल सीएम एक्सीलेंस स्कूल ऑफ गर्ल्स के नाम से जाना जाता है, इससे पहले वह केजी गर्ल्स हाई स्कूल के नाम से जाना जाता था. आभूषण दान करने वाली महिला तत्कालीन पलामू डीसी अनंत गोडबोले की पत्नी कमला गोडबोले थीं.

सामाजिक कार्यकर्ता भुवनेश्‍वर चौबे का था बड़ा रोल: असहयोग आंदोलन के दौरान पलामू के केतात निवासी भुवनेश्‍वर चौबे सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे. इसी दौरान शराब के खिलाफ आंदोलन भी शुरू हुआ. भुनेश्वर चौबे की लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी और आंदोलन जोर पकड़ रहा था. आंदोलन को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने कई तरह से भुवनेश्वर चौबे को लुभाने की कोशिश की. तत्कालीन डीसी अनंत गोडबोले ने भुवनेश्वर चौबे को नौकरी का लालच देने की भी कोशिश की.

इस बातचीत के दौरान कमला गोडबोले ने बाहर आकर भुवनेश्वर चौबे का हौसला बढ़ाया और कहा था कि उनके आंदोलन को प्रभावित करने की साजिश की जा रही है. कहा जाता है कि कमला गोडबोले ने एक बार कहा था कि अगर भुनेश्वर चौबे के आंदोलन के खिलाफ कार्रवाई की गई तो पहली गिरफ्तारी देने वाली शख्स वह होंगी. इस तरह से दोनों की पहचान हुई. जिसके बाद दोनों ने मिलकर स्कूल की स्थापना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

डीसी के आवासीय परिसर में शुरू हुआ था स्कूल: 1930 के बाद यह स्कूल तत्कालीन डीसी आनंद गोडबोले के आवासीय परिसर में शुरू हुआ. कमला गोडबोले और भुवनेश्वर चौबे की पहल पर लड़कियों के लिए पहला स्कूल स्थापित किया जा रहा था. लेकिन, स्कूल चलाना आसान नहीं था. इसके लिए पैसों की जरूरत थी. इसका समाधान भी कमला गोडबाले ने निकाल लिया और उन्होंने अपने आभूषण दान कर दिए. कमला गोडबोले स्कूल को अपने आभूषण दान करने वाली पहली महिला थीं.

स्कूल पर शोध करने वाले और सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के उपनिदेशक आनंद ने बताया कि 1949 में तत्कालीन विधायक यदुवंश सहाय ने बिहार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री बद्रीनारायण वर्मा से स्कूल के मुद्दे पर सवाल उठाया था. जिसके बाद गर्ल्स हाई स्कूल को सरकारी मान्यता मिल गयी. उन्होंने बताया कि कमला गोडबोले स्कूल को आभूषण दान करने वाली पहली महिला थीं.

यह भी पढ़ें: संसाधन के अभाव में बदहाल हुआ सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस, हॉस्टल से घर भेजे गए बच्चे

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स्कूल के बारे में जानकारी देते संवाददाता नीरज कुमार

पलामू: जिले में लड़कियों के लिए एक स्कूल है, जिसकी स्थापना ब्रिटिशकाल में लड़कियों को शिक्षित करने के उद्देश्य से की गई थी. इस स्कूल की स्थापना करने में उस समय के तत्कालीन डीसी की पत्नी ने अग्रणी भूमिका निभाई थी. डीसी की पत्नी ने लड़कियों की शिक्षा के लिए अपने सारे आभूषण दान कर दिये थे. उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में अग्रणी भूमिका भी निभाई.

यह उस समय की बात है जब भारत में अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन चलाया जा रहा था. इस आंदोलन के दौरान पलामू जैसी जगहों पर लड़कियों की शिक्षा का मुद्दा भी उठाया गया. उस समय तत्कालीन डीसी की पत्नी के नाम पर पलामू में लड़कियों के लिए एक स्कूल की स्थापना की गयी. आज वह स्कूल सीएम एक्सीलेंस स्कूल ऑफ गर्ल्स के नाम से जाना जाता है, इससे पहले वह केजी गर्ल्स हाई स्कूल के नाम से जाना जाता था. आभूषण दान करने वाली महिला तत्कालीन पलामू डीसी अनंत गोडबोले की पत्नी कमला गोडबोले थीं.

सामाजिक कार्यकर्ता भुवनेश्‍वर चौबे का था बड़ा रोल: असहयोग आंदोलन के दौरान पलामू के केतात निवासी भुवनेश्‍वर चौबे सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे. इसी दौरान शराब के खिलाफ आंदोलन भी शुरू हुआ. भुनेश्वर चौबे की लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी और आंदोलन जोर पकड़ रहा था. आंदोलन को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने कई तरह से भुवनेश्वर चौबे को लुभाने की कोशिश की. तत्कालीन डीसी अनंत गोडबोले ने भुवनेश्वर चौबे को नौकरी का लालच देने की भी कोशिश की.

इस बातचीत के दौरान कमला गोडबोले ने बाहर आकर भुवनेश्वर चौबे का हौसला बढ़ाया और कहा था कि उनके आंदोलन को प्रभावित करने की साजिश की जा रही है. कहा जाता है कि कमला गोडबोले ने एक बार कहा था कि अगर भुनेश्वर चौबे के आंदोलन के खिलाफ कार्रवाई की गई तो पहली गिरफ्तारी देने वाली शख्स वह होंगी. इस तरह से दोनों की पहचान हुई. जिसके बाद दोनों ने मिलकर स्कूल की स्थापना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

डीसी के आवासीय परिसर में शुरू हुआ था स्कूल: 1930 के बाद यह स्कूल तत्कालीन डीसी आनंद गोडबोले के आवासीय परिसर में शुरू हुआ. कमला गोडबोले और भुवनेश्वर चौबे की पहल पर लड़कियों के लिए पहला स्कूल स्थापित किया जा रहा था. लेकिन, स्कूल चलाना आसान नहीं था. इसके लिए पैसों की जरूरत थी. इसका समाधान भी कमला गोडबाले ने निकाल लिया और उन्होंने अपने आभूषण दान कर दिए. कमला गोडबोले स्कूल को अपने आभूषण दान करने वाली पहली महिला थीं.

स्कूल पर शोध करने वाले और सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के उपनिदेशक आनंद ने बताया कि 1949 में तत्कालीन विधायक यदुवंश सहाय ने बिहार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री बद्रीनारायण वर्मा से स्कूल के मुद्दे पर सवाल उठाया था. जिसके बाद गर्ल्स हाई स्कूल को सरकारी मान्यता मिल गयी. उन्होंने बताया कि कमला गोडबोले स्कूल को आभूषण दान करने वाली पहली महिला थीं.

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