भरतपुर. देश के सबसे बड़े सरसों उत्पादक क्षेत्र में इस बार बीमारी ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है. किसान सरसों की फसल की कटाई में जुटे हुए हैं. किसान अच्छी पैदावार की उम्मीद लगाए बैठा था, लेकिन जिले के कई क्षेत्रों में सरसों की फसल में तना गलन रोग का प्रकोप देखने को मिल रहा है. रोग से प्रभावित फसल के दाने सूखने की वजह से पैदावार 40% तक प्रभावित होने की आशंका है. जिले के ऊंचा गांव निवासी किसान केसरी सिंह गुर्जर ने बताया कि इस बार कड़ाके की सर्दी पड़ी थी. कोहरा भी काफी रहा. इसकी वजह से सरसों की फसल में तना गलन का रोग लग गया. इस बार फसल में चेंपा और सफेद टेंट का रोग नहीं था. किसान को उम्मीद थी कि सरसों की पैदावार अच्छी होगी, लेकिन फसल पकने से ठीक पहले तना गलन रोग लग गया.
40% कम पैदावार की आशंका : किसान केसरी सिंह ने बताया कि अब फसल की कटाई चल रही है. ऊपर से देखने पर फसल पकी हुई नजर आती है, लेकिन जिस पौधे में तना गलन का रोग लगा है, उसकी फली में सरसों का दाना या तो सूख गया या बढ़ा ही नहीं. इसका सीधा असर सरसों की पैदावार पर पड़ेगा. किसान केसरी सिंह का कहना है कि जिले के उच्चैन, बयाना, रूपवास, रारह, कुम्हेर आदि क्षेत्रों में तना गलन रोग की शिकायत आई है. आशंका जताई जाई है कि इस बार इस रोग की वजह से 40% तक पैदावार कम हो सकती है. औसतन एक बीघा खेत में 10 मन सरसों पैदा होती है, लेकिन इस बार 6 मन तक की पैदावार होने की संभावना है.
बीजोपचार ही बचाव : कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक देशराज सिंह ने बताया कि संभाग के कई क्षेत्र में तना गलन रोग का प्रकोप देखने को मिल रहा है. जिन स्थानों पर भारी जमीन है और सघन फसल बुवाई की गई थी, वहां रोग का प्रकोप है. यह फफूंदी रोग है. यह मिट्टी में ही मौजूद रहता है. यह रोग फसल के पकाव के समय नजर आता है. तब तक यह फसल को नुकसान पहुंचा चुका होता है, इसलिए तना गलन रोग से बचने के लिए किसान भाइयों को बुवाई के समय ही बीजोपचार कर देना चाहिए. एक किलो बीज में 6 ग्राम ट्राईकोडरमा मित्र फफूंद का इस्तेमाल कर उपचार करना चाहिए. इससे फसल को तना गलन का रोग लगने से बचाया जा सकता है. संयुक्त निदेशक देशराज सिंह ने बताया कि जिले और संभाग में जिस जिस क्षेत्र में तना गलन रोग का प्रकोप है और फसल में जितना भी नुकसान है, उसका किसान को फसल बीमा योजना के तहत मुआवजा दिलाया जाएगा.
भरतपुर में प्रदेश का 33% सरसों तेल उत्पादन : भरतपुर जिला देश में सरसों उत्पादन और सरसों तेल के उत्पादन में अग्रणी जिला है. यहां की भौगोलिक परिस्थितियां, मौसम, कोहरे युक्त सर्दी की वजह से सरसों की अच्छी पैदावार होती है. इस बार संभाग में 9 लाख 18 हजार हैक्टेयर में और जिले में 2 लाख 50 हजार हैक्टेयर से अधिक क्षेत्र में सरसों बुवाई की गई है. तेल उत्पादन में भी भरतपुर देश का सबसे अग्रणी जिला है. पूरे प्रदेश में कुल करीब 15 लाख मीट्रिक टन सरसों तेल उत्पादन होता है, जिसमें से अकेले भरतपुर में 5 लाख मीट्रिक टन यानी प्रदेश का 33% सरसों तेल उत्पादन होता है.