वाराणसी : समाजवादी पार्टी ने गाजीपुर से मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी को लोकसभा चुनाव का टिकट दिया है. इंडी गठबंधन के तहत अब कांग्रेस भी अफजाल अंसारी के लिए गाजीपुर में वोट मांगेगी. ऐसे में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय को भी अफजाल अंसारी के लिए चुनाव प्रचार करना होगा. बड़ी बात यह है कि अफजाल अंसारी मुख्तार अंसारी के भाई हैं. मुख्तार अंसारी पर अजय राय के भाई अवधेश राय की हत्या का मुकदमा दर्ज है. मामले में वह मुख्य आरोपी है. इस मामले में अजय राय मुख्य गवाह भी हैं. ऐसे में सियासी गलियारों में इन दिनों गाजीपुर सीट और अजय राय को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है.
3 अगस्त 1991 को अवधेश राय अपने भाई अजय राय के घर के बाहर खड़े थे. उस बीच एक वैन घर के सामने आकर रुकी. कोई कुछ समझ पाता कि वैन से बदमाशों ने अवधेश राय पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. फायरिंग से आसपास का इलाका गूंज उठा था.
इस हमले में अवधेश राय की मौत हो गई थी. यह घटना उत्तर प्रदेश के बड़े राजनीतिक हत्याओं में शामिल थी. इस मामले में बाहुबली डॉन और नेता मुख्तार अंसारी पर आरोप लगा था. कहा जा रहा था कि कि मुख्तार ने ही अवधेश राय की हत्या कराई है. इसको लेकर अजय राय ने मुकदमा लड़ना शुरु कर दिया.
32 साल तक सजा दिलाने के लिए किया संघर्ष : इस हत्याकांड का जिक्र होना जरूरी इसलिए हो गया क्योंकि साल 1991 से साल 2023 तक लगभग 32 वर्षों तक मुकदमेबाजी का सफर अकेले अजय राय ने तय किया है. अजय राय ने मुख्तार अंसारी को सजा दिलाने के लिए न जाने कितनी सरकारें आते-जाती देखीं थीं.
साल 2023 में जाकर मुख्तार को सजा मिली. वाराणसी की एमपी-एमएलए कोर्ट ने अवधेश राय हत्याकांड में मुख्तार को उम्रकैद की सजा सुनाई. अदालत ने अंसारी को दोषी मानते हुए धारा 302 के तहत यह सजा सुनाई थी. इस फैसले के बाद अजय राय ने खुशी भी जाहिर की थी और कहा था कि 32 साल की इस लड़ाई को हमने जीत लिया है.
पार्टी के प्रत्याशी के लिए प्रचार करने को तैयार : मैं कांग्रेस पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष हूं. पार्टी के प्रत्याशी जहां भी लड़ रहे हैं मैं उनके साथ खड़ा रहूंगा. मैं उनका प्रचार करूंगा और उन्हें जीत दिलाऊंगा. उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने ये बात तब कही है जब उनसे पूछा गया कि गाजीपुर में मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे हैं, क्या उनके लिए आप चुनाव प्रचार करेंगे? अफजाल उसी मुख्तार के भाई हैं.
ऐसे में जाहिर सी बात है कि मुख्य गवाह और एक भाई के रूप में अजय राय सालों तक मुख्तार को सजा दिलाने के लिए संघर्ष करते रहे हैं. अब चुनाव के लिए उन्हें मुख्तार के परिवार का ही समर्थन करना पड़ेगा. हालांकि उन्होंने अपनी तरफ से अफजाल के लिए प्रचार का जिक्र नहीं किया है.
परिवार की दुश्मनी और राजनीति का संकट : राजनीतिक विश्लेषक रवि प्रकाश पांडेय कहते हैं कि अजय राय के सामने एक बड़ा धर्म संकट है. उन्हें पार्टी की कमान भी संभालनी है और परिवार के दुश्मन रहे अंसारी परिवार का समर्थन भी करना है. ऐसे में अजय राय के लिए मुख्तार अंसारी से दुश्मनी भूलना आसान नहीं होगा.
हालांकि वे यह कह रहे हैं कि पार्टी के प्रत्याशी के लिए चुनाव प्रचार करेंगे तो ये अपने आप में एक बड़ी बात है. उनका कहना है कि अजय राय ने अपने भाई की हत्या के दोषी को सजा दिलाने के लिए एक लंबा संघर्ष किया है. 1991 के हत्याकांड के बाद प्रदेश में लगभग 11 मुख्यमंत्रियों आए. किसी के भी कार्यकाल में उन्हें सफलता नहीं मिली थी.
समाजवादी पार्टी से अफजाल उम्मीदवार : सपा और कांग्रेस INDI गठबंधन के तहत यूपी में चुनाव लड़ रहे हैं. दोनों ने सीटों का बंटवारा किया हुआ है. ऐसे में अब कांग्रेस को अफजाल का समर्थन करना होगा. जब हम उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की बात करते हैं तो सबसे पहला नाम अजय राय का ही आता है, क्योंकि अजय राय ही प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हैं.
उन्हीं के कंधों पर पार्टी और पार्टी के गठबंधन साथी के लिए चुनाव प्रचार और सीटें जिताने की जिम्मादारी है. पिछले गठबंधन की बात करें तो जब सपा-कांग्रेस ने गठबंधन किया था तो राहुल गांधी और अखिलेश यादव प्रदेश में चुनाव प्रचार में निकले थे. इस बार राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में व्यस्त हैं, ऐसे में ये जिम्मेदारी अजय राय के कंधों पर है.
क्या है अफजाल अंसारी का राजनीतिक सफर : अफजाल अंसारी अब तक 10 चुनाव लड़ चुके हैं. इसमें 7 बार जीत हासिल की है, जबकि 3 बार हारे हैं. अपने राजनीतिक करियर में वह 5 बार विधायक व 2 बार सांसद रह चुके हैं. अफजाल ने पहली बार 1985 में कम्युनिष्ट के टिकट पर मुहम्मदाबाद से विधानसभा चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी.
इसके बाद 1989, 1991, 1993 और 1996 तक उन्होंने जीत दर्ज की. 1993, 1996 और 2002 का चुनाव सपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े. 2002 के विधानसभा चुनाव में वह भाजपा के कृष्णानंद राय से हार गए. 2004 के लोकसभा चुनाव में सपा से पहली बार सांसद बने. फिर 2009, 2014 के लोकसभा चुनाव में हार मिली. 2019 में बसपा के टिकट पर जीत मिली.
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