हिसार: हरियाणा के हिसार में चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय के सभागार में आयोजित दो दिवसीय राज्य स्तरीय कृषि अधिकारी कार्यशाल का समापन हुआ. जिसमें मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी. आर कम्बोज रहे. इस कार्यशाला में प्रदेशभर के कृषि अधिकारियों और हकृवि के वैज्ञानिकों द्वारा रबी फसलों की समग्र सिफारिशों के बारे में विस्तृत चर्चा की गई तथा कई महत्वपूर्ण तकनीकी पहलुओं पर विचार विमर्श किया गया.
कुलपति प्रो. बी.आर काम्बोज ने कहा कि इस कार्यशाला में 19 सिफारिशें स्वीकृत की गई हैं. जिनमें एक गेंहू, दो बसंत कालीन मक्का, एक मसर, एक चारा जई की एवं एक औषधीय फसल बाकला के अलावा गर्मी के मौसम में मक्का को चारे की फसल के रूप में उगाने हेतु समग्र सिफारिश, धान-गेहूं फसल चक्र में पराली प्रबधंन, गन्ने की फसल में चोटी बेदक व कंसुआ कीट की रोकथाम तथा एकीकृत कृषि प्रणाली हेतु फसल चक्र भी शामिल हैं.
कार्यशाला में हकृवि के वैज्ञानिकों एवं कृषि तथा किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों द्वारा संयुक्त रूप से की गई इन सिफारिशों से किसानों को फायदा होगा. उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला में दी गई कृषि से संबंधित सिफारिशों से केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा किसानों की आय बढ़ाने के लिए किए जा रहे कार्यों को और गति मिलेगी. कुलपति ने वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वे कम जोत के किसानों की समस्या को पहले अच्छे ढंग से समझे. उसके बाद उन समस्या के निवारण पर शोध करें. इस अवसर पर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त निदेशक डॉ. आर.एस. सोलंकी, डॉ. रमेश वर्मा, डॉ. एचएस सहारण सहित विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक एवं कृषि तथा किसान कल्याण विभाग के अधिकारी मौजूद रहे. मंच का संचालन डॉ. सुनील ढांडा ने किया.
इस कार्यशाला में 19 सिफारिशें स्वीकृत हुई
1. डब्ल्यू एच 1402 गेहूं की यह बौनी किस्म सूखा सहनशील एवं अगेती बिजाई के लिए उपयुक्त है. डब्ल्यू एच 1402 की औसत पैदावार 20.1 क्विंटल प्रति एकड़ व उत्पादन क्षमता 27.2 क्विंटल प्रति एकड़ है. यह किस्म अत्यंत रोगरोधी है और गुणवत्ता में उत्तम है.
2. आईएमएच 225: यह मक्का की पीले दाने व मध्यम अवधि वाली एकल संकर किस्म है. जो बसंत ऋतु में 115-120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. यह किस्म राष्ट्रीय स्तर पर मक्का की मुख्य बिमारियों व कीटों के अवरोधी व मध्यम अवरोधी पाई गई है. इसकी औसत पैदावार 36-38 क्विंन्टल प्रति एकड़ है.
3. आईएमएच 226: यह मक्का की हल्की नारंगी दाने व मध्यम अवधि वाली एकल संकर किस्म है. जो बसंत ऋतु में 115-120 दिन में पककर तैयार हो जाती है. यह किस्म मुख्य बीमारियों व कीटों के अवरोधी व मध्यम अवरोधी पाई गई है. इसकी औसत पैदावार 34-38 क्विंन्टल प्रति एकड़ है.
4. एलएच 17-19: मसूर की इस छोटे दाने वाली किस्म भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में काश्त के लिए अनुमोदित किया गया है. मध्यम अवधि वाली यह किस्म 6.0 - 6.5 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत पैदावार देती है.
5. आर. एच. 1975: इस किस्म की सिफारिश जम्मू, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली एवं उत्तरी राजस्थान के सिंचित क्षेत्रों में समय पर बिजाई के लिए की गई है. यह किस्म 145 दिनों में पक कर 10.5-11.5 क्विंटल प्रति एकड़ औसत पैदावार देती है. इस किस्म में तेल की औसत मात्रा 39.3 प्रतिशत है.
6. एच एफ ओ 906: एक कटाई वाली चारा जई की इस किस्म की हरियाणा के लिए सिफारिश की गई है. यह किस्म 262.00 क्विंटल प्रति एकड़ हरे चारे की पैदवार देती है.
7. हरियाणा बाकला 3: इस किस्म की औसत उपज 9.5 क्विंटल प्रति एकड़ है. तथा इसकी अधिकतम उपज 20 क्विंटल प्रति एकड़ है. इसमें प्रोटीन की मात्रा 28 प्रतिशत होती है. इसकी खेती हरियाणा के सिंचित और अर्ध सिंचित क्षेत्रों में की जा सकती है.
8. धान-गेहूं फसल चक्र में पराली प्रबंधन हेतू, स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम लगे हुए कंबाइन हार्वेस्टर द्वारा धान की कटाई के उपरांत पराली को मिट्टी में मिलाने के साथ-साथ गेहूं की बिजाई हेतू सुपर सीडर का उपयोग करें. इस मशीन से गेहूं की बिजाई करने पर परम्परागत विधि की तुलना में 43 प्रतिशत ईंधन, 36 प्रतिशत श्रम तथा 40 प्रतिशत बिजाई लागत की बचत होती है.
9. गन्ने की फसल में चोटी बेदक व कंसुआ कीट की रोकथाम के लिए अप्रैल अंत से मई के प्रथम सप्ताह तक क्लोरेनट्रानिलीपरोल 18.5 प्रतिशत एस सी (कोराजन / सीटीजन) 150 मि. ली. प्रति एकड़ की दर से 400 लीटर पानी में मिलाकर पीठ वाले पंप से मोटा फुव्वारा बनाकर फसल के जड़ क्षेत्र में डालकर हल्की सिचाई करें.
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