खूंटी: लोकसभा चुनाव के बाद तोरपा और खूंटी विधानसभा हारने पर पूर्व सांसद कड़िया मुंडा ने अपनी बात रखी है. कड़िया मुंडा ने कहा कि दोनों सीट हारने का प्रमुख कारण सीटिंग विधायकों का अतिउत्साह और अहंकार है. कड़िया मुंडा ने कहा कि अहंकार के कारण दोनों सीटिंग विधायक ने किसी से कोई सलाह नहीं ली , जो सबसे बड़ा हार का कारण बना है. इसके अलावा अहंकार के कारण संगठन के लोग भी चुनाव कार्यों से दूर रहे हैं. साथ ही कार्यकर्ताओं की लापरवाही भी एक बड़ा कारण रहा.
कड़िया मुंडा ने ईटीवी से बातचीत में हार के कारणों का खुलासा किया है. कड़िया ने मुंडा ने यहां तक कहा कि लोकसभा चुनाव में नीलकंठ ने भाई को वोट दिलाने की पैरवी की और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सांसद कालीचरण मुंडा ने अपने खेमे से पैरवी की थी कि नीलकंठ जी को देख लीजिएगा. जिसके कारण वोटर एकतरफा चले गए जो खूंटी के इतिहास में कभी नहीं हुआ. जिसका नतीजा रहा कि 50 सालों से बनाई गई मजबूत किले को सेंधमारी करने में इंडिया ब्लॉक कामयाब हो गया है. अब दशकों लग जाएंगे इसे बनाने में.
कड़िया मुंडा ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए सभी सवालों का बेबाकी से जवाब दिया. उन्होंने कहा कि खूंटी में यह चर्चाएं थी और सुना भी गया था कि लोकसभा चुनाव के समय विधायक रहते नीलकंठ सिंह मुंडा कांग्रेस के लिए वोट मांगने गए थे और विधानसभा चुनाव में कालीचरण मुंडा कमल छाप में वोट देने की अपील किये. जनता ने पूछा कि दोनों एक ही हैं क्या. इस पर दोनों को जवाब देना मुश्किल हो गया. एक परिवार के दोनों के होने से, लोकसभा में आप और विधानसभा में मैं, यह कहकर काम किया गया. जिसका नतीजा हुआ कि जिन क्षेत्रों से बढ़त मिलनी चाहिए वहां उल्टा हो गया.
कड़िया मुंडा ने कहा कि चुनाव तो होते रहता है. ऐसे ही, चुनाव एक चांस होता है. चुनाव में कोई नहीं कह सकता है कि हम जीतेंगे ही. थोड़े-थोड़े कुछ अंतराल में कुछ घटनाएं घटती हैं तो परिस्थितियां बदल जाती है और यह कोई नई बात नहीं है. यह जरूर है कि जिनका संगठन अच्छा है, लोग संगठित रहते हैं वो जीतते भी हैं. कड़िया मुंडा ने कहा कि अब केंद्र, राज्य व जिले के नेता इस मामले को देखेंगे कि कहां औरे कैसे चूक हो गई.
आखिर क्या कारण है कि इतना पिछड़ गए. बांग्लादेशी घुसपैठ मामला, स्थानीय नीति और सरना कोड जैसे मुद्दों के बाद भी आदिवासियों के बीच भाजपा प्रदर्शन नहीं कर पाई. कड़िया मुंडा ने कहा कि झारखंड के आदिवासियों को कोई फर्क नहीं पड़ता है कि यहां कौन आता है जाता है, इसकी उन्हें चिंता नहीं. अपने आप में मस्त रहता है, कमाता है और खाता है. उनकी जिंदगी यही है. आदिवासियों की लाइफ स्टाइल यही है और इसलिए यहां इतने कहने के बावजूद आदिवासियों के बीच कोई असर नहीं हुआ है. गैरआदिवासी बहुल क्षेत्र में भाजपा ने जीत दर्ज की है. आदिवासियों के बीच में घुसपैठ का मामला जो उठाया गया इसका बहुत असर नहीं हुआ और भाजपा को इसका लाभ भी नहीं मिला.
एक सवाल के जवाब में कड़िया मुंडा ने कहा कि संगठन के लोग यह तय करेंगे कि भाजपा दोबारा कैसे वापसी कर सकेगा. क्योंकि मैं संगठन में से बाहर हूं. पार्टी के क्रियाकलापों से मेरा कोई लेना देना नहीं है. पार्टी के लोग बुलाते नहीं और मैं जाता भी नहीं हूं, लेकिन मैं प्रयास करुंगा कि भाजपा फिर से खड़ी हो सके. उन्होंने कहा कि अब भाजपा को गहराई से अध्ययन करके और नए तरीके से कमेटी बनाकर, काम करने के तौर तरीके और यहां के लोगों में जो भाजपा के प्रति नाराजगी बढ़ी है उसे दूर करना होगा. तब जाकर आने वाले चुनाव में लाभ मिल सकता है, नहीं तो भाजपा पीछे रह जाएगी.
दरअसल, खूंटी में पांच बार से विधायक रहे नीलकंठ सिंह मुंडा को झामुमो के राम सूर्या मुंडा ने पटखनी दे दी. जब राम सूर्या मुंडा को झामुमो ने खूंटी विधानसभा सीट के लिए टिकट दिया था, तब मैच को एकतरफा माना जा रहा था. लेकिन मतदान का समय आते-आते भाजपा के लिए राह मुश्किल हो गई थी. मतदान के बाद से ही माना जा रहा था कि भाजपा को कड़ी टक्कर मिलेगी. मतगणना में झामुमो ने एक तरफा भाजपा को साफ कर दिया है.
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