प्रयागराज : मेरठ से सपा विधायक रफीक अंसारी पिछले 26 वर्षों से अधिक समय से कानून की नजर में फरार चल रहे हैं. इस दौरान अदालत से उसके खिलाफ लगातार गैर जमानती वारंट और कुर्की के आदेश जारी होते रहे लेकिन, आज तक कोई भी वारंट तामील नहीं कराया जा सका. रफीक अंसारी ने जब अपने खिलाफ दर्ज मुकदमे की कार्रवाई रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की तो अदालत भी यही देखकर दंग रह गई कि किस प्रकार से एक विधानसभा सदस्य के खिलाफ कार्रवाई करने में राज्य मशीनरी और न्यायिक प्रक्रिया विफल रहे. कोर्ट ने इस स्थिति पर कठोर टिप्पणी करते हुए न सिर्फ रफीक की याचिका खारिज कर दी बल्कि डीजीपी को यह भी निर्देश दिया है कि वह वारंट तामील कराकर अदालत में अपनी रिपोर्ट दाखिल करें.
विधायक रफीक की याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने कहा कि वारंट को तामील न करा पाना और इस दौरान उसे विधानसभा सत्र में उपस्थित होने की अनुमति देना एक ऐसी मिसाल स्थापित करेगा जोकि राज्य मशीनरी और न्यायिक सिस्टम के निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ कार्रवाई करने की विश्वसनीयता को कम करता है. कोर्ट ने कहा कि कानून लागू करने के लिए जनता के बीच चुनिंदा बर्ताव नहीं किया जा सकता है. ऐसा करने में असफलता न सिर्फ लोकतंत्र के सिद्धांतों से समझौता होगा बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी पंगु कर देगा. कोर्ट ने कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधियों से उच्च नैतिकता के पालन की उम्मीद की जाती है.
कोर्ट ने कहा कि इस बात में कोई विवाद नहीं कि याची मौजूदा समय में मेरठ से विधायक हैं. उसके खिलाफ वर्ष 1997 में मुकदमा दर्ज होने के बाद गैर जमानती वारंट जारी हुआ जो 2015 तक लागू रहा. इसके बाद 2022 से फिर से गैर जमानती वारंट और कुर्की की प्रक्रिया जारी की गई. लेकिन आज की तारीख तक इस सब की जानकारी होने के बावजूद वह कभी अदालत में हाजिर नहीं हुआ. कोर्ट ने उनके खिलाफ मेरठ की एसीजेएम कोर्ट, एमपी/एमएलए में चल रहे मुकदमे की कार्रवाई को समाप्त करने की मांग खारिज करते हुए इस आदेश की एक प्रति विधानसभा के प्रमुख सचिव को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है, ताकि वह इसे विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष रख सकें. साथ ही डीजीपी उत्तर प्रदेश को निर्देश दिया है कि वह रफीक अंसारी को कोर्ट का वारंट तामील कराकर अपनी रिपोर्ट अदालत में दाखिल करें.
यह था मामला : रफीक अंसारी व अन्य 35/40 लोगों के खिलाफ मेरठ के नौचंदी थाने में 12 सितंबर 1995 को बलवा, तोड़फोड़ और आगजनी के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी. इसमें से 22 लोगों के खिलाफ 24 अक्टूबर 1995 को पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल कर दिया. जबकि, रफीक अंसारी के खिलाफ 22 जून 1996 को संपूरक आरोप पत्र दाखिल किया गया. कोर्ट ने 18 दिसंबर 1997 को रफीक के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया. लेकिन, वह कभी अदालत में हाजिर नहीं हुआ. इस दौरान 22 अभियुक्तों के खिलाफ 15 मई 1997 को मुकदमे का विचारण पूरा हो गया और वह सब बरी कर दिए गए. लेकिन, रफीक अंसारी के खिलाफ गैर जमानती वारंट व कुर्की का आदेश अदालत से लगातार जारी किया जाता रहा.
रफीक की ओर से याचिका दाखिल कर कहा गया कि इसी मुकदमे में अन्य 22 अभियुक्त बरी हो चुके हैं. इसलिए याची के खिलाफ दर्ज मुकदमे की कार्रवाई को समाप्त किया जाए. कोर्ट ने यह मांग यह कहते हुए खारिज कर दी कि सह अभियुक्तों की दोष मुक्ति का निर्णय अन्य अभियुक्तों को बिना ट्रायल चलाए और बिना उनके खिलाफ साक्ष्य की समीक्षा किए मुकदमे की कार्रवाई समाप्त करने का आधार नहीं हो सकता है. कोर्ट ने कहा कि सह अभियुक्तों के बरी होने के बाद भी याची ने कोई वैधानिक उपचार प्राप्त करने का प्रयास नहीं किया तथा 26 वर्ष 2 माह 23 दिन के बाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर मुकदमा रद्द किए जाने की मांग की.