बीकानेर. हिंदू धर्म शास्त्रों पंचांग में अमावस्या का बहुत बड़ा महत्व है. अमावस्या जिस वार को होती है उसे अनुसार इसका निर्धारण होता है. लेकिन सोमवार को होने वाली अमावस्या का विशेष महत्व जाता है और इसीलिए इसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है. पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए इस दिन हवन पूजन और तर्पण करना चाहिए इससे पितृ प्रसन्न रहते हैं. इसलिए इसे पितृकार्य अमावस्या भी कहते हैं. इस दिन अपने पितरों के निमित्त भोजन अर्पित करना चाहिए और सफेद मिठाई का भोग लगाना चाहिए.
तीर्थ स्नान दान-पुण्य का महत्व : सोमवती अमावस्या के दिन तीर्थस्थलों व पवित्र नदियों में स्नान और पूजा-पाठ का महत्व शास्त्रों में बतलाया गया है. शास्त्रों में उल्लेख किया गया है कि इस दिन किए गए दान-पुण्य का 100 गुना फल मिलता है. गोशालाओं में गायों को हरा चारा खिलाना, गरीब और नि:शक्तजनों को भोजन और दान करना श्रेष्ठ बतलाया गया है. पितरों के निमित्त प्रसाद भोग का अर्पण भी इस अमावस्या में श्रेष्ठ बतलाया गया है.
न करें ये काम : अमावस्या के दिन खासतौर से सोमवती अमावस्या के दिन कुछ कार्यों को करने की मनाही है. घर में कपड़े नहीं धोने चाहिए साथ ही क्षौर कार्य यानी की नाखून काटना, दाढ़ी करना और बाल कटवाना ऐसे कार्य नहीं करने चाहिए. अमावस्या पर किसी भी कार्य की नई शुरुआत भी नहीं करनी चाहिए.