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हिमाचल के अनुबंध कर्मियों से जुड़ी बड़ी खबर, सीनियोरिटी केस में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल - HIMACHAL EMPLOYEES SENIORITY CASE

सीनियोरिटी केस में हिमाचल सरकार ने SC में स्पेशल लीव-पिटीशन डाली है. इसे राज्य खाद्य, नागरिक आपूर्ति विभाग की तरफ से दाखिल की गई है.

राज्य सरकार ने  सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी की दाखिल
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी की दाखिल (फाइल फोटो)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 17 hours ago

शिमला: सरकारी कर्मचारियों के लिहाज से अच्छी-खासी संख्या वाले राज्य हिमाचल प्रदेश में इन दिनों अनुबंध कर्मियों के मसले सुर्खियां बने हुए हैं. हाल ही में हिमाचल सरकार ने विधानसभा के विंटर सेशन में अनुबंध कर्मियों की सेवा व शर्तों से जुड़े संशोधन विधेयक के पारित किया है. उस विधेयक के अनुसार अनुबंध कर्मियों पर नियमित कर्मियों वाले प्रावधान लागू नहीं होंगे. यानी अनुबंध कर्मियों को अनुबंध सेवाकाल की सीनियोरिटी और उसके परिणाम स्वरूप अर्जित होने वाले वित्तीय लाभ नहीं मिलेंगे.

सुखविंदर सरकार को ये विधेयक इसलिए भी लाना पड़ा कि हाईकोर्ट से कुछ ऐसे फैसले आए हैं, जिनमें सरकार को बैक डेट से सीनियोरिटी और वित्तीय लाभ देने पड़ रहे हैं. हाईकोर्ट के एक ऐसे ही फैसले में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन दाखिल कर दी है. ये एसएलपी राज्य खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले विभाग की तरफ से दाखिल की गई है. ऐसे में जाहिर है कि सरकार इस मामले में भारी-भरकम देनदारी से बचने के लिए हरसंभव कानूनी विकल्प अपनाना चाहती है. फूड, सिविल सप्लाई एंड कंज्यूमर अफेयर डिपार्टमेंट ने चर्चित ताज मोहम्मद बनाम राज्य सरकार केस में ये एसएलपी दाखिल की है.

यहां समझिए क्या है मामला

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग से जुड़े ताज मोहम्मद केस में राज्य सरकार हाईकोर्ट में हार गई थी. ताज मोहम्मद केस में हाईकोर्ट ने अनुबंध अवधि की सेवाओं को सीनियोरिटी व परिणामी लाभ के लिए गिने जाने के आदेश जारी किए हैं. इससे राज्य सरकार पर भारी-भरकम देनदारी आ रही है. क्योंकि इसी केस के आधार पर अन्य विभागों में भी अनुबंध अवधि को सीनियोरिटी के लिए गिनना पड़ेगा. इसी केस में राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में कुछ तर्क रखे थे. साथ ही सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख किया था. राज्य सरकार का तर्क था कि दो दशक पहले की सीनियोरिटी को नहीं बदला जा सकता है. राज्य सरकार एसएलपी में ये आग्रह कर रही है कि वर्तमान डेट से जितना संभव हो, उतना लाभ देने का सरकार प्रयास करेगी, परंतु बैक डेट से ये देना संभव नहीं हो पाएगा. वहीं, राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में ये भी पक्ष रखेगी कि हाल में विधानसभा में अनुबंध सेवाकाल की शर्तों से जुड़ा बिल पारित किया गया है. अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिक जाएंगी. जैसे ही एसएलपी सुनवाई के लिए मंजूर होगी, कर्मचारी उसके फैसले का इंतजार करेंगे.

उल्लेखनीय है कि विंटर सेशन में सेवा शर्तों में संशोधन को लेकर जो बिल पारित किया गया है, उसे लेकर कर्मचारियों के प्रभावित वर्ग विरोध कर रहे हैं. हिमाचल प्रदेश अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मनीष गर्ग और महामंत्री अनिल सेन का कहना है कि यह बिल कर्मचारी विरोधी है. इससे अनुबंध कर्मियों के साथ ही अनुबंध से नियमित हुए कर्मियों में भी निराशा है. हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट से अनुबंध कर्मियों के हक में फैसले आए हैं. ऐसे में विधानसभा में बिल लाकर उनके लाभों पर आघात किया जा रहा है. कर्मचारी राज कुमार धर्माणी का कहना है कि अदालतों से पहले ही अनुबंध कर्मियों के हक में फैसले आए हैं. अदालती फैसलों के बाद राज्य सरकार बिल लेकर आई और उसे पारित किया है. ऐसे में कर्मचारियों को भी अपने हक के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करना चाहिए.

ये भी पढ़ें: भाजपा के विरोध के बीच विधानसभा में पास हुआ विधेयक, अनुबंध कर्मचारियों की सीनियोरिटी और इन्क्रीमेंट को झटका

शिमला: सरकारी कर्मचारियों के लिहाज से अच्छी-खासी संख्या वाले राज्य हिमाचल प्रदेश में इन दिनों अनुबंध कर्मियों के मसले सुर्खियां बने हुए हैं. हाल ही में हिमाचल सरकार ने विधानसभा के विंटर सेशन में अनुबंध कर्मियों की सेवा व शर्तों से जुड़े संशोधन विधेयक के पारित किया है. उस विधेयक के अनुसार अनुबंध कर्मियों पर नियमित कर्मियों वाले प्रावधान लागू नहीं होंगे. यानी अनुबंध कर्मियों को अनुबंध सेवाकाल की सीनियोरिटी और उसके परिणाम स्वरूप अर्जित होने वाले वित्तीय लाभ नहीं मिलेंगे.

सुखविंदर सरकार को ये विधेयक इसलिए भी लाना पड़ा कि हाईकोर्ट से कुछ ऐसे फैसले आए हैं, जिनमें सरकार को बैक डेट से सीनियोरिटी और वित्तीय लाभ देने पड़ रहे हैं. हाईकोर्ट के एक ऐसे ही फैसले में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन दाखिल कर दी है. ये एसएलपी राज्य खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले विभाग की तरफ से दाखिल की गई है. ऐसे में जाहिर है कि सरकार इस मामले में भारी-भरकम देनदारी से बचने के लिए हरसंभव कानूनी विकल्प अपनाना चाहती है. फूड, सिविल सप्लाई एंड कंज्यूमर अफेयर डिपार्टमेंट ने चर्चित ताज मोहम्मद बनाम राज्य सरकार केस में ये एसएलपी दाखिल की है.

यहां समझिए क्या है मामला

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग से जुड़े ताज मोहम्मद केस में राज्य सरकार हाईकोर्ट में हार गई थी. ताज मोहम्मद केस में हाईकोर्ट ने अनुबंध अवधि की सेवाओं को सीनियोरिटी व परिणामी लाभ के लिए गिने जाने के आदेश जारी किए हैं. इससे राज्य सरकार पर भारी-भरकम देनदारी आ रही है. क्योंकि इसी केस के आधार पर अन्य विभागों में भी अनुबंध अवधि को सीनियोरिटी के लिए गिनना पड़ेगा. इसी केस में राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में कुछ तर्क रखे थे. साथ ही सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख किया था. राज्य सरकार का तर्क था कि दो दशक पहले की सीनियोरिटी को नहीं बदला जा सकता है. राज्य सरकार एसएलपी में ये आग्रह कर रही है कि वर्तमान डेट से जितना संभव हो, उतना लाभ देने का सरकार प्रयास करेगी, परंतु बैक डेट से ये देना संभव नहीं हो पाएगा. वहीं, राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में ये भी पक्ष रखेगी कि हाल में विधानसभा में अनुबंध सेवाकाल की शर्तों से जुड़ा बिल पारित किया गया है. अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिक जाएंगी. जैसे ही एसएलपी सुनवाई के लिए मंजूर होगी, कर्मचारी उसके फैसले का इंतजार करेंगे.

उल्लेखनीय है कि विंटर सेशन में सेवा शर्तों में संशोधन को लेकर जो बिल पारित किया गया है, उसे लेकर कर्मचारियों के प्रभावित वर्ग विरोध कर रहे हैं. हिमाचल प्रदेश अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मनीष गर्ग और महामंत्री अनिल सेन का कहना है कि यह बिल कर्मचारी विरोधी है. इससे अनुबंध कर्मियों के साथ ही अनुबंध से नियमित हुए कर्मियों में भी निराशा है. हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट से अनुबंध कर्मियों के हक में फैसले आए हैं. ऐसे में विधानसभा में बिल लाकर उनके लाभों पर आघात किया जा रहा है. कर्मचारी राज कुमार धर्माणी का कहना है कि अदालतों से पहले ही अनुबंध कर्मियों के हक में फैसले आए हैं. अदालती फैसलों के बाद राज्य सरकार बिल लेकर आई और उसे पारित किया है. ऐसे में कर्मचारियों को भी अपने हक के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करना चाहिए.

ये भी पढ़ें: भाजपा के विरोध के बीच विधानसभा में पास हुआ विधेयक, अनुबंध कर्मचारियों की सीनियोरिटी और इन्क्रीमेंट को झटका

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