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सुहागिनों की 300 साल पुरानी परंपरा सहेज रहा बनारस; डेढ़ से 16 इंच तक की ये खास डिबिया, 2000 से ज्यादा कारीगर बनाने में लगे - Sindoordani oldest art wood trade

वाराणसी में सिंदूरदानी सबसे पुरानी लकड़ी के कारोबार की कला मानी जाती है. जिसमें हजारों की संख्या में कारीगर जुटे हुए हैं. और अलग-अलग तरीके की आकृतियों को तैयार कर रहे हैं.

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लकड़ी की सिंदूरदानी. (photo credit- Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 4, 2024, 1:41 PM IST

Updated : Aug 8, 2024, 1:05 PM IST

वाराणसी: धर्मानगरी काशी अपने तमाम कलाओं के लिए जानी जाती है. आज हम आपको बनारस की काष्ठ कला की सबसे पुरानी कलाकृति के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे सिंदूरदानी कहा जाता है. इसी से बनारस में लकड़ी के कारोबार की शुरुआत हुई. जी हां! सबसे पहले बनारस के कारीगरों ने लकड़ी के जरिए सिंदूरदानी बनाने की शुरुआत की, जिसकी डिमांड आज भी देखने को मिलती है.

बता दें कि, बनारस में काष्ठ कला लगभग 300 साल पुरानी है. इस पुराने कारोबार की शुरुआत सहालग की डिबिया यानी की सिंदूरदानी बनाने के साथ हुई थी. आज भी बनारस के कश्मीरी गंज में सिंदूरदानी को बनाया जाता है. यह कैसे बनती है, क्या इसकी खासियत है. यह जानने के लिए, हम कश्मीरी गंज में रहने वाले योगेंद्र सिंह के पास पहुंचे. जिनकी सात पीढ़ी इस कारोबार में जुटी हुई है और नए-नए तरीके की सिंदूरदानी को बना रही है. बातचीत में सबसे पहले वह बताते हैं कि, यह लकड़ी का एवरग्रीन प्रोडक्ट है,जिसकी डिमांड कभी कम नहीं हुई. बल्कि इसकी चमक और भी ज्यादा बढ़ती नजर आ रही है.

जानिए कैसे बनती हैं लकड़ी की सिंदूरदानी, कारीगरों ने दी जानकारी. (video credit-Etv Bharat)

एक कारीगर 30 सिंदूरदानी प्रतिदिन करता है तैयार: योगेंद्र सिंह बताते हैं, कि पहले हाथ से इसे तैयार किया जाता था लेकिन, वर्तमान में आधुनिकता की चादर ओढ़ने के साथ यह कारोबार भी आधुनिक होता जा रहा है. अब मशीनों के जरिए ही इसे तैयार किया जा रहा है. पहले एक दिन में दो चार ही प्रोडक्ट तैयार होता था, लेकिन अब एक दिन में एक कारीगर 25 से 30 पीस इस सिंदूर दानी को तैयार करता है. जिसकी साइज डेढ़ इंच से लेकर के 16 इंच तक होती है. उन्होंने बताया, कि वर्तमान समय में लगभग 2000 कारीगर इससे जुड़े हुए हैं.

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कस्टमाइज्ड सिंदूरदानी की आज भी है डिमांड (photo credit- Etv Bharat)

इसे भी पढ़े-मेरठ के प्रमोद को नहीं मिली नौकरी; 30 लोगों को रोजगार देकर करने लगे खेल के प्रोडक्ट्स तैयार, आज करोड़ों में है कारोबार - meerut success Story

बनवा सकते हैं कस्टमाइज्ड सिंदूरदानी: वही युवा कारोबारी रितिक सिंह बताते हैं, कि सिंदूरदानी का कारोबार एवरग्रीन कारोबार है. आज से लगभग 200 साल पहले जिस तरीके से इसकी डिमांड थी, आज भी इसकी डिमांड बनी हुई है. बल्कि समय के साथ इसकी डिमांड और बढ़ती ही जा रही है. पुराने जमाने में हाथ से सामान्य तरीके से पुराने डिजाइन के जरिए इसे तैयार किया जाता था, लेकिन आज नए यूथ और लोगों की डिमांड को देखते हुए फैंसी अंदाज में तैयार किया जाता है, जिसमें गोटा पट्टी से लेकर के रंग-बिरंगे रंगों को झूमर को शामिल किया जाता है. लोग कस्टमाइज्ड सिंदूरदानी भी बनवा सकते हैं. इसकी कीमत 20 रुपये से लेकर 1500 रुपये तक है. वर्तमान में हमारे पास 10000 आर्डर है. इसे 400 कारीगर तैयार कर रहे हैं. मुंबई, गुजरात, बिहार, कोलकाता से आर्डर आते हैं.

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एक कारीगर 30 सिंदूरदानी करता है तैयार (photo credit- Etv Bharat)
वह बताते हैं, कि मुनाफे की नजरिया से इस कारोबार में थोड़ी दिक्कत जरूर होती है. क्योंकि पहले जिस कोरिया लकड़ी पर काम होता था, वह लकड़ी बेहद सस्ती होती थी, उसका प्रयोग जलाने में किया जाता था. लेकिन, हम उस लकड़ी का प्रयोग खिलौने को बनाने में करते हैं. वर्तमान में सरकार ने जब उस लकड़ी को प्रतिबंधित कर दिया, तो हम लोग यूकेलिप्टस की लकड़ी का प्रयोग करने लगे, जो लकड़ी समानता महंगी आती है और वर्तमान समय में इस लकड़ी की कीमत और भी ज्यादा है. इसके शॉर्टेज हो रहे हैं. जिस वजह से मुनाफे में थोड़ी कमी आई है.

लकड़ी की कमी है, इसी वजह से कारीगर भी उससे दूर है. पहले 8000 कारीगर इस कला में जुड़े हुए थे. लेकिन, वर्तमान में महज 2000 लोग ही इससे जुड़े हैं. हमारे पास ऑर्डर तो भरपूर है, लेकिन कच्चा माल न होने की वजह से हम उन ऑर्डरों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. यदि हमारे पास लकड़ी पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहेगी तो शायद हमारा कारोबार और भी आगे बढ़ेगा.

यह भी पढ़े-काशी से जुड़ेगा नेपाल का पशुपतिनाथ धाम, सप्ताह में 3 दिन मिलेगी फ्लाइट, इतना होगा किराया, हॉलिडे पैकेज का भी उठा सकेंगे लाभ - Kashi Vishwanath Pashupatinath Dham

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बता दें कि, बनारस में काष्ठ कला लगभग 300 साल पुरानी है. इस पुराने कारोबार की शुरुआत सहालग की डिबिया यानी की सिंदूरदानी बनाने के साथ हुई थी. आज भी बनारस के कश्मीरी गंज में सिंदूरदानी को बनाया जाता है. यह कैसे बनती है, क्या इसकी खासियत है. यह जानने के लिए, हम कश्मीरी गंज में रहने वाले योगेंद्र सिंह के पास पहुंचे. जिनकी सात पीढ़ी इस कारोबार में जुटी हुई है और नए-नए तरीके की सिंदूरदानी को बना रही है. बातचीत में सबसे पहले वह बताते हैं कि, यह लकड़ी का एवरग्रीन प्रोडक्ट है,जिसकी डिमांड कभी कम नहीं हुई. बल्कि इसकी चमक और भी ज्यादा बढ़ती नजर आ रही है.

जानिए कैसे बनती हैं लकड़ी की सिंदूरदानी, कारीगरों ने दी जानकारी. (video credit-Etv Bharat)

एक कारीगर 30 सिंदूरदानी प्रतिदिन करता है तैयार: योगेंद्र सिंह बताते हैं, कि पहले हाथ से इसे तैयार किया जाता था लेकिन, वर्तमान में आधुनिकता की चादर ओढ़ने के साथ यह कारोबार भी आधुनिक होता जा रहा है. अब मशीनों के जरिए ही इसे तैयार किया जा रहा है. पहले एक दिन में दो चार ही प्रोडक्ट तैयार होता था, लेकिन अब एक दिन में एक कारीगर 25 से 30 पीस इस सिंदूर दानी को तैयार करता है. जिसकी साइज डेढ़ इंच से लेकर के 16 इंच तक होती है. उन्होंने बताया, कि वर्तमान समय में लगभग 2000 कारीगर इससे जुड़े हुए हैं.

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कस्टमाइज्ड सिंदूरदानी की आज भी है डिमांड (photo credit- Etv Bharat)

इसे भी पढ़े-मेरठ के प्रमोद को नहीं मिली नौकरी; 30 लोगों को रोजगार देकर करने लगे खेल के प्रोडक्ट्स तैयार, आज करोड़ों में है कारोबार - meerut success Story

बनवा सकते हैं कस्टमाइज्ड सिंदूरदानी: वही युवा कारोबारी रितिक सिंह बताते हैं, कि सिंदूरदानी का कारोबार एवरग्रीन कारोबार है. आज से लगभग 200 साल पहले जिस तरीके से इसकी डिमांड थी, आज भी इसकी डिमांड बनी हुई है. बल्कि समय के साथ इसकी डिमांड और बढ़ती ही जा रही है. पुराने जमाने में हाथ से सामान्य तरीके से पुराने डिजाइन के जरिए इसे तैयार किया जाता था, लेकिन आज नए यूथ और लोगों की डिमांड को देखते हुए फैंसी अंदाज में तैयार किया जाता है, जिसमें गोटा पट्टी से लेकर के रंग-बिरंगे रंगों को झूमर को शामिल किया जाता है. लोग कस्टमाइज्ड सिंदूरदानी भी बनवा सकते हैं. इसकी कीमत 20 रुपये से लेकर 1500 रुपये तक है. वर्तमान में हमारे पास 10000 आर्डर है. इसे 400 कारीगर तैयार कर रहे हैं. मुंबई, गुजरात, बिहार, कोलकाता से आर्डर आते हैं.

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एक कारीगर 30 सिंदूरदानी करता है तैयार (photo credit- Etv Bharat)
वह बताते हैं, कि मुनाफे की नजरिया से इस कारोबार में थोड़ी दिक्कत जरूर होती है. क्योंकि पहले जिस कोरिया लकड़ी पर काम होता था, वह लकड़ी बेहद सस्ती होती थी, उसका प्रयोग जलाने में किया जाता था. लेकिन, हम उस लकड़ी का प्रयोग खिलौने को बनाने में करते हैं. वर्तमान में सरकार ने जब उस लकड़ी को प्रतिबंधित कर दिया, तो हम लोग यूकेलिप्टस की लकड़ी का प्रयोग करने लगे, जो लकड़ी समानता महंगी आती है और वर्तमान समय में इस लकड़ी की कीमत और भी ज्यादा है. इसके शॉर्टेज हो रहे हैं. जिस वजह से मुनाफे में थोड़ी कमी आई है.

लकड़ी की कमी है, इसी वजह से कारीगर भी उससे दूर है. पहले 8000 कारीगर इस कला में जुड़े हुए थे. लेकिन, वर्तमान में महज 2000 लोग ही इससे जुड़े हैं. हमारे पास ऑर्डर तो भरपूर है, लेकिन कच्चा माल न होने की वजह से हम उन ऑर्डरों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. यदि हमारे पास लकड़ी पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहेगी तो शायद हमारा कारोबार और भी आगे बढ़ेगा.

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Last Updated : Aug 8, 2024, 1:05 PM IST
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