मथुरा : श्री कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. कोर्ट ने फैसला दिया है कि हिंदू पक्ष की ओर से दायर सभी 18 याचिकाओं की एक साथ सुनवाई होगी. इसके साथ ही मुस्लिम पक्ष की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया है. आइए जानते हैं श्री कृष्ण जन्मभूमि के इतिहास और इससे जुड़ी मान्यताओं के बारे में.
श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर 13.37 एकड़ में बना हुआ है, जिसमें श्री कृष्ण जन्मभूमि लीला मंच, भागवत भवन और डेढ़ एकड़ में शाही ईदगाह मस्जिद बनी हुई है. सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन, रंजना अग्निहोत्री सहित पांच अधिवक्ताओं ने 25 सितंबर 2020 में श्री कृष्ण जन्मस्थान के मालिकाना हक को लेकर मथुरा कोर्ट में याचिका डाली थी, जिसमें श्री कृष्ण सेवा संस्थान, शाही ईदगाह कमेटी सुन्नी वक्फ बोर्ड और श्री कृष्ण जन्मभूमि सेवा ट्रस्ट को प्रतिवादी पक्ष बनाया गया. अधिवक्ताओं द्वारा मांग की गई कि श्री कृष्ण जन्मस्थान को मस्जिद मुक्त मंदिर बनाया जाए.
राजा पटनी मल ने खरीदी जमीन : ब्रिटिश काल में 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा पटनीमल ने इस जगह को खरीदा और 1940 में पंडित मदन मोहन मालवीय जब मथुरा आए तो श्रीकृष्ण जन्म स्थान की दुर्दशा देखकर विचलित हुए. मदन मोहन मालवीय ने मथुरा के उद्योगपति जुगल किशोर बिरला को पत्र लिखकर जन्मभूमि पुनरुद्वार के लिए कहा. 21 फरवरी 1951 में श्री कृष्ण जन्म भूमि ट्रस्ट की स्थापना की. 12 अक्टूबर 1968 को कटरा केशव देव मंदिर की जमीन का समझौता श्री कृष्ण जन्मस्थान सोसायटी द्वारा किया गया. 20 जुलाई 1973 को यह जमीन डिक्री की गई. डिक्री रद्द करने की मांग को लेकर अधिवक्ता ने कोर्ट मे याचिका डाली थी.
क्या है मान्यता : श्री कृष्ण जन्मस्थान का प्राचीन केशव देव मंदिर, जो कि पूर्व में मल्लपुरा के नाम से जाना जाता था, इसके चार किलोमीटर का एरिया केशव देव की संपत्ति मानी जाती है. प्राचीन केशव देव मंदिर के पास कंस का कारागार हुआ करता था. धार्मिक मान्यता है कि 5247 वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ. भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र ब्रजनाभ ने उसी स्थान पर केशव देव मंदिर की स्थापना की.
चार बार मंदिर पर हुआ हमला, निशानियां बाकी : इतिहासकार शत्रुघ्न शर्मा बताते हैं कि श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर को सबसे पहले मोहम्मद गजनवी ने 1017 ई. में लूटपाट के बाद तोड़ा. 1050 में इसे राजा विजयपाल सिंह देव ने बनवाया. 1351 में फिर फिरोजशाह तुगलक ने तोड़फोड़ की. उसके बाद स्थानीय लोगों द्वारा फिर मंदिरों को बनाया गया. 1488 में सिकंदर लोदी ने मंदिरों को फिर तोड़ा, उसके बाद 1618 में राजा वीर सिंह बुंदेला ने मंदिरों को बनवाया. 1670 में औरंगजेब ने मंदिरों को नष्ट किया और मस्जिद का निर्माण कराया गया. प्राचीन मंदिरों के पास अवशेष में चारों तरफ एक ऊंचा परकोटा बना रहता था. मंदिर के दक्षिण और पश्चिम कोने में एक कुआं भी बनवाया जाता था. कुएं में पानी की ऊंचाई 60 फीट हुआ करती थी. मंदिर के प्रांगण में फवारे भी चलाए जाते थे. मुगल शासक द्वारा तोड़े गए मंदिरों के अवशेष मस्जिदों में लगाए गए जैसे शंख, चक्र, पुष्प और शेषनाग की आकृतियां शेष हैं.
औरंगजेब लाया था मथुरा से विग्रह और पुरावशेष: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि, 16 वीं शताब्दी के सातवें दशक में मुगल बादशाह औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव मंदिर को ध्वस्त किया था. वो केशवदेव मंदिर की मूर्तियों के साथ ही तमाम पुरावशेष आगरा लेकर आया था. उसने मूर्तियों और पुरावशेष को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबाया था.
इन किताबों में है उल्लेख : यह तमाम इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में लिखा है. इसमें औरंगजेब के सहायक रहे मुहम्मद साकी मुस्तइद्दखां ने अपनी पुस्तक 'मआसिर-ए-आलमगीरी' में, प्रसिद्ध इतिहासकार जदुनाथ सरकार की पुस्तक 'ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब' में, मेरी पुस्तक 'तवारीख़-ए-आगरा' में और मथुरा के महशहूर साहित्यकार प्रो. चिंतामणि शुक्ल की पुस्तक 'मथुरा जनपद का राजनीतिक इतिहास' में भी जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे मूर्तियां दबाने का विस्तार से जिक्र किया है.
कोर्ट में 18 याचिकाएं दाखिल : 25 सितंबर 2020 को कोर्ट में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ईदगाह प्रकरण को लेकर अलग-अलग याचिकाएं मनीष यादव वाद संख्या 152, महेंद्र प्रताप सिंह वाद 950, दिनेश शर्मा वाद 174 ,अनिल त्रिपाठी वाद 252, पवन शास्त्री वाद 107, जितेंद्र सिंह विसेन वाद 620, आशुतोष पांडे 1223, रंजना अग्निहोत्री, विष्णु शंकर आदि वाद संख्या 323, शशि चतुर्वेदी की वाद संख्या 423, दिनेश चंद शर्मा वाद संख्या 603 सहित 18 याचिकाएं दाखिल की गई हैं.
सर्वे से सच आएगा सामने: श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट के अधिवक्ता विनोद शुक्ला का कहना है कि हमने पहले ही कोर्ट से मांग की है कि, जामा मस्जिद का सच सबके सामने लाने के लिए ASI सर्वे कराया जाना चाहिए. एएसआई की सर्वे रिपोर्ट से विवाद खत्म किया जा सकता है. क्योंकि, सर्वे रिपोेर्ट से हकीकत सामने आएगी.
कोर्ट के आदेश के बाद शाही ईदगाह मस्जिद के सचिव तनवीर अहमद ने कहा कि, हिूंद और मुस्लिम पक्ष की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया है. अभी फैसले की कॉपी नहीं मिली है. उसके बाद हम सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात रखेंगे.