भोपाल। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा मोदी कैबिनेट में शामिल हो गए हैं. जेपी नड्डा के मोदी कार्यकाल में शामिल होने के बाद अब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर चर्चाएं तेज हो गईं हैं. बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष की रेस में वैसे तो कई नाम रेस में है, लेकिन मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह का नाम टॉप पर है. सूत्रों की मानें तो यह दोनों संघ की पहली पसंद है. हालांकि, आधिकारिक तौर पर कोई बात सामने नहीं आई है. वहीं केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की खाली हुई सीट को लेकर भी फैसला होना बाकी है.
संघ की पसंद शिवराज-राजनाथ
सूत्रों के मुताबिक बीजेपी अध्यक्ष पद को लेकर पार्टी नेतृत्व संघ से चर्चा कर रहा है. आरएसएस चाहती है कि शिवराज सिंह चौहान और राजनाथ सिंह दोनों से किसी एक को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाए. यह दोनों ही नेता संघ की पसंद हैं. संघ चाहता है कि इन दोनों में से कोई एक नेता केंद्रीय मंत्री का पद छोड़कर राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभाले. जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की पसंद कोई और नेता है.
मोदी-शाह की पसंद कोई और
पीएम मोदी और गृहमंत्री दोनों ही नेता शिवराज सिंह और राजनाथ को भाजपा चीफ नहीं बनाना चाहते हैं. उनकी पसंद राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े और सुनील बंसल हैं. माना जा रहा है कि इन दोनों में से किसी एक को प्रधानमंत्री बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना सकती है. इन दोनों ही नेताओं को राजनीति का अच्छा अनुभव रहा है. साथ ही पार्टी में वे अपनी योग्यता साबित भी कर चुके हैं. एक हफ्ते के अंदर यह साफ हो सकता है कि पार्टी नेतृत्व किसे बीजेपी चीफ बनाएगी.
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राज्यसभा की खाली सीट पर दावेदारी
इसके अलावा केंद्रीय मंत्री बने ज्योतिरादित्य सिंधिया की राज्यसभा सीट भी खाली हुई है. जिसे लेकर दो नेताओं का नाम सामने आ रहा है. कई हारे हुए बड़े नेताओं की निगाह इस सीट पर लगी हुई है. इस रेस में पहला नाम केपी यादव का है, जो गुना-शिवपुरी सीट से सांसद रह चुके हैं. साल 2019 के चुनाव में केपी यादव ने इसी सीट से सिंधिया को हराया था. इसके बाद दूसरा नाम नरोत्तम मिश्रा का है. जो शिवराज सरकार में गृह मंत्री की भूमिका निभा चुके हैं. विधानसभा 2023 में नरोत्तम मिश्रा को दतिया सीट से कांग्रेस के हाथों हार झेलनी पड़ी. इसके अलावा रेस में तो पूर्व मंत्री जयभान पवैया भी हैं, लेकिन इन दोनों ही नेताओं की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है. वो इसलिए क्योंकि इस लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने कांग्रेस को पूरी तरह से छलनी कर दिया और 18 हजार से अधिक कांग्रेसियों को भाजपा में शामिल करा दिया. लिहाजा यह कहना गलत नहीं होगा कि एक हफ्ते में एमपी के तीन नेताओं के भाग्य का फैसला हो सकता है.