शिवपुरी: जिले की करैरा तहसील से बंधुआ मजदूरी के लिए महाराष्ट्र ले जाए गए 15 आदिवासियों को मुक्त करा लिया गया है. सहरिया क्रांति की सक्रियता और प्रशासन की तत्परता से सभी को छुड़ाकर शनिवार को उनके गांव लाया गया. इससे परिवार सहित पूरे गांव में हर्ष का माहौल है. आदिवासी समुदाय ने ढोल-नगाड़ों की थाप पर अपने परिजनों का स्वागत किया और 'सहरिया क्रांति जिंदाबाद' के नारे लगाए.
महाराष्ट्र के सांगली में बनाया गया था बंधक
मामला करैरा तहसील के उकायला के पास स्थित मुजरा गांव का है. ग्रामीणों का आरोप है कि नरवर इलाके का रहने वाला दलाल भगत, मुजरा गांव के 8 आदिवासी मजदूरों और उनके 7 बच्चों को गुना में मजदूरी का झांसा दिलाकर महाराष्ट्र के सांगली जिले के एक कृषि फार्म पर छोड़ आया था. जहां उनको बंधक बना लिया गया और उन्हें धमकाया गया कि जब तक वे प्रति व्यक्ति 50 हजार रुपए नहीं चुकाएंगे, तब तक उन्हें वापस घर जाने नहीं दिया जाएगा.
सहरिया क्रांति और जिला प्रशासन की मदद से मिली मुक्ति
पीड़ितों के परिजनों ने सहरिया क्रांति के सदस्यों को मामले की जानकारी दी. सहरिया क्रांति के संयोजन संजय बेचैन जिला कलेक्टर रवींद्र कुमार चौधरी को मामले से अवगत कराया और उनसे तत्काल कार्रवाई की मांग की. कलेक्टर ने मामले को प्राथमिकता देते हुए महाराष्ट्र के सांगली जिले में एक पुलिस टीम भेजी. जहां स्थानीय पुलिस प्रशासन की मदद से सभी 15 बंधकों को मुक्त करा लिया गया. मुक्त कराए गए मजदूरों में बबलू, सुमन, रामेती, खेरू, उम्मेद, हरिबिलास, सुदामा, सपना और उनके 7 बच्चे शामिल हैं.
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'साक्षात नर्क से मिली मुक्ति'
शनिवार को मजदूरों को घर लौटने पर ग्रामीणों ने ढोल-नगाड़ों की थाप पर उनका स्वागत किया और जश्न मनाया. ग्रामीणों ने सहरिया क्रांति के सदस्यों और कलेक्टर की सराहना की. मुक्त कराई गई महिलाओं ने बताया कि वे साक्षात नर्क से लौट कर आई हैं. '' हमें वहां जानवरों से भी बदतर हालत में रखा गया था. दिन-रात मजदूरी कराई जाती थी. खाने के लिए मुश्किल से एक वक्त का भोजन मिलता था. अगर हम थक कर रुक जाते, तो हमें गालियां और मार पड़ती थी. बच्चों को भी भूखा रखा जाता था. स्थिति इतनी खराब थी कि कई बार हमें पानी और बासी रोटी खाकर गुजारा करना पड़ता था. हमारे साथ ऐसे बर्ताव किया गया, जैसे हम इंसान नहीं, बल्कि गुलाम हों." उन्होंने बताया कि मकर संक्रांति के दिन बच्चों सहित वे सभी भूखे ही रहे थे.