शिमला: हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की चार सीटें हैं. इनमें शिमला लोकसभा क्षेत्र काफी अहम है. वैसे तो ये सीट शुरू से कांग्रेस का गढ़ रही है लेकिन बीते 3 लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कमल खिल रहा है. ऐसे में इस बार कांग्रेस के सामने अपने गढ़ पर जीत का परचम लहराने की चुनौती होगी तो बीजेपी इस सीट पर जीत का चौका लगाने का दावा कर रही है. लोकसभा चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो इस सीट का सियासी इतिहास भी दिलचस्प है.
पहले महासू था सीट का नाम
जिस लोकसभा क्षेत्र को आज शिमला के नाम से जाना जाता है उसे पहले महासू के नाम से जानते थे. 1951 में इस सीट का नाम मंडी-महासू था. तब हिमाचल में मंडी महासू और चंबा सिर्फ दो लोकसभा सीटें थीं. इस सीट पर अनुसूचित जाति के लोगों की अधिक जनसंख्या होने के कारण यहां से दो सांसद चुने गए थे. 1951 में हुए पहले आम चुनाव में रानी अमृत कौर अनारक्षित और गोपी राम अनुसूचित जाति के सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे थे. देशभर में करीब 80 से ज्यादा ऐसी सीटें थी जिनमें दो सांसद थे. ये सिलसिला दूसरे आम चुनाव यानी 1957 तक चला था.
1957 लोकसभा चुनाव में मंडी और महासू दो अलग-अलग सीटें हो गई थीं. इस बार महासू से दो सांसद चुनकर संसद पहुंचे. यहां से यशवंत सिंह और नेक राम सांसद बने. दूसरे आम चुनाव में हिमाचल में लोकसभा सीटों की संख्या 3 हो गई थी. जबकि 1962 के चुनाव में चंबा, मंडी, महासू और सिरमौर चार सीटें हो गई थीं और हर सीट से एक-एक सांसद चुने जाने का ही नियम बन गया था. हालांकि इस बार महासू या मंडी नहीं बल्कि सिरमौर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट थी. 1967 में पहली और आखिरी बार हिमाचल में लोकसभा सीटों की संख्या 6 हुई थी. इनमें शिमला, महासू, हमीरपुर, कांगड़ा, चंबा और मंडी शामिल है. साल 1971 के लोकसभा चुनाव से शिमला लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है और ये सिलसिला आज भी चला आ रहा है. इसी चुनाव से हिमाचल में शिमला, मंडी, कांगड़ा और हमीरपुर नाम से कुल 4 लोकसभा सीटें हैं.
लगातार 6 बार सांसद बनने का रिकॉर्ड
इस सीट से दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह से लेकर धनीराम शांडिल और वीरेंद्र कश्यप सांसद रहे हैं. लेकिन केडी सुल्तानपुरी के नाम शिमला सीट से सबसे ज्यादा बार जीतने का रिकॉर्ड दर्ज है. कांग्रेस के कृष्ण दत्त सुल्तानपुरी ने इस सीट से 6 बार चुनाव चुनाव जीता. केडी सुल्तानपुरी लगातार 6 बार यहां से लोकसभा पहुंचे. उन्होंने 1980, 1984, 1989, 1991, 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की थी.
शिमला सीट का गणित
हिमाचल प्रदेश में 68 विधानसभा और 4 लोकसभा क्षेत्र हैं. इस तरह हर लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की 17 सीटें आती हैं. शिमला लोकसभा क्षेत्र के तहत शिमला, सोलन और सिरमौर जिले की विधानसभा सीटें आती हैं. सिर्फ शिमला जिले का रामपुर विधानसभा क्षेत्र मंडी लोकसभा में आता है इसके अलावा इन तीनों जिले की 17 सीटें शिमला लोकसभा क्षेत्र में पड़ती हैं. इनमें शिमला, शिमला ग्रामीण, जुब्बल-कोटखाई, रोहड़ू, ठियोग, कसुम्पटी, चौपाल, शिलाई, पांवटा साहिब, श्री रेणुकाजी, नाहन, पच्छाद, कसौली, सोलन, दून, अर्की और नालागढ़ विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं.
2019 लोकसभा चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक शिमला लोकसभा क्षेत्र में कुल 12,59,085 मतदाता थे. जिनमें 6,54,248 पुरुष, 6,04,822 महिला और 15 थर्ड जेंडर वोटर थे. इन मतदाताओं ने 2008 पोलिंग स्टेशन पर वोट डाला और कुल 6 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद की थी. 2019 के चुनावी नतीजों में बीजेपी उम्मीदवार सुरेश कश्यप को 6,06,182 वोट मिले थे जबकि दूसरे नंबर पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी धनी राम शांडिल को 2,78,668 वोट मिले थे. सुरेश कश्यप ने 3,27,514 वोट के मार्जिन से बड़ी जीत हासिल की थी.
इस बार भी कांग्रेस बनाम बीजेपी
हिमाचल प्रदेश में इस बार भी कांग्रेस और बीजेपी में ही सीधी टक्कर होगी. शिमला सीट के लिए बीजेपी ने एक बार फिर सुरेश कश्यप पर ही दांव लगाया है. वहीं कांग्रेस में अब भी उम्मीदवारों के नाम पर मंथन जारी हैं. हालांकि शिमला सीट से 6 बार सांसद रहे केडी सुल्तानपुरी के बेटे विनोद सुल्तानपुरी का नाम रेस में बना हुआ है. इसके अलावा दो बार सांसद और मौजूदा सरकार में स्वास्थ्य मंत्री धनी राम शांडिल, विधायक विनय कुमार और पूर्व विधायक सोहन लाल का नाम भी रेस में है. हालांकि मौजूदा सियासी संकट से जूझ रही कांग्रेस मौजूदा विधायकों को टिकट देने से परहेज कर सकती है. बीजेपी यहां लगातार चौथी बार कमल खिलाने का दावा कर रही है तो कांग्रेस 15 साल का सूखा मिटाने की कोशिश करेगी.
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