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नवरात्र के तीसरे दिन सिद्धपीठ कात्यानी देवी मंदिर में श्रद्धालुओं का जनसैलाब, जानिए क्या है इस मंदिर की पौराणिक मान्यता - Shardiya Navratri 2024

कात्यायनी देवी भक्तों की सभी मनोकामनाएं करती है पूरी, मां के दर्शन करने से राधा कृष्ण जैसी बनती है जोड़िया.

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सिद्धपीठ कात्यानी देवी मंदिर (photo credit- Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 5, 2024, 12:18 PM IST

मथुरा: शारदीय नवरात्र के दिन देवी मंदिर में हर रोज श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ रहा है. मंदिर में पूजा पाठ के साथ-साथ अनुष्ठान का भी आयोजन किया जा रहा है. ब्रज मंडल के प्रसिद्ध वृन्दावन में स्थित शक्तिपीठ कात्यायनी देवी मंदिर में दर्शन करने से सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है. तो वही मां का आशीर्वाद मिलने से कृष्ण राधा जैसी जोड़ी भी बन जाती है. नवरात्र के दिनों में इस मंदिर की महत्वता और बढ़ जाती है. इसी स्थान पर मां पार्वती के केश डाले गए थे.

वृंदावन में स्थित सिद्ध पीठ कात्यायनी देवी:धर्म की नगरी वृंदावन में वैसे तो हजारों मंदिर अपनी महत्वता के लिए जाने जाते हैं. लेकिन, सिद्ध पीठ मां कात्यायनी देवी का मंदिर सफेद और काले रंग के संगमरमर से बना हुआ है. मंदिर में प्रवेश करने पर दो शेर के दर्शन होते है जो मंदिर की सीढ़ियों पर बने है. इस मंदिर में हर रोज दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. इस मंदिर को मां उमा देवी के नाम से जाना जाता है.

1923 मे मंदिर का निर्माण हुआ: प्रसिद्ध सन्त केशवानंद महाराज मां कात्यायनी देवी की आराधना करते थे. एक दिन मां कात्यायनी देवी ने अपने भक्त को वृन्दावन में मंदिर बनाने का अनुरोध किया. देवी का आशीर्वाद मानकर संत ने मंदिर का निर्माण करवाया और अपना शेष जीवन इसी मंदिर में बिता दिया.

इसे भी पढ़े-108 शक्तिपीठों में एक है सीतापुर का मां ललिता देवी मंदिर, नवरात्र पर उमड़े भक्त - Maa Lalita Devi Temple in Sitapur

पौराणिक मान्यता: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है, कि राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन कराया था. अपनी बेटी सती (पार्वती) और भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया. भगवान शिव और सती दोनों अपमानित हुए तभी बेटी सती ने यज्ञ में कूद कर अपनी जान दे दी. शिव अग्नि से पार्वती के शव को निकाल कर ले गए. भगवान विष्णु शिव की पवित्रता को देख कर प्रसन्न हो गए और पार्वती को जीवित करने के लिए सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए. मां पार्वती के केश की लटे गिरी, उन स्थान को आज शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है. कात्यायनी देवी उमा शक्तिपीठ मंदिर विख्यात है.

सिद्धपीठ कात्यानी देवी मंदिर की ये है पौराणिक मान्यता (video credit- Etv Bharat)
राधा कृष्ण की जोड़िया भी बनती है: ब्रज में गोपिया कृष्ण को अपना पति मानती थी. कृष्ण की हजारों गोपियां थी. जब भगवान कृष्ण वृन्दावन से द्वारिका चले गए, गोपिकाएं मायूस हो गयी. तब देवी मां ने आशीर्वाद दिया कि इस मंदिर में जो भी गोपिकाएं दर्शन करेंगी उनको कृष्ण जैसा पति मिलेगा. शक्तिपीठ कात्यायनी देवी मंदिर के दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. द्वापर युग से राधा कृष्ण का अटूट प्रेम चला आ रहा है. आज भी देवी मां के दर्शन करने से राधा कृष्ण जैसी जोड़िया बनती है.नवरात्र के तीसरे दिन काशी के लोगों ने मां चन्द्रघंटा का किया दर्शन: देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में नवरात्र के तीसरे दिन चंद्रघंटा देवी की पूजा का महत्व है. देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं. दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है. इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है.

काशी में मां के पूजन पाठ का विशेष महत्व है. मां कारण घंटा अपने घंटा के ध्वनि से जब काशी में लोग अंतिम समय में अपने प्राण जाते हैं, तो मां कंठ में विराजमान होकर अपने घंटी के ध्वनि से प्राणी को मुक्ति देती है. ऐसा केवल काशी में होता है. आज सुबह पूरे विधि विधान से मां का पूजन पाठ किया गया और भक्तों के लिए मां का कपाट खोल दिया गया. सुबह से भक्ति मां के इस स्वरूप का दर्शन कर रहे हैं. यह बड़ा प्राचीन मंदिर है, जो काशी खंडोक भी है.

यह भी पढ़े-नवरात्र 2024 में दर्शन कीजिए यूपी के 9 बड़े शक्तिपीठ; पूरब से पश्चिम तक बरसती है माता रानी की कृपा - Navratri 2024

मथुरा: शारदीय नवरात्र के दिन देवी मंदिर में हर रोज श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ रहा है. मंदिर में पूजा पाठ के साथ-साथ अनुष्ठान का भी आयोजन किया जा रहा है. ब्रज मंडल के प्रसिद्ध वृन्दावन में स्थित शक्तिपीठ कात्यायनी देवी मंदिर में दर्शन करने से सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है. तो वही मां का आशीर्वाद मिलने से कृष्ण राधा जैसी जोड़ी भी बन जाती है. नवरात्र के दिनों में इस मंदिर की महत्वता और बढ़ जाती है. इसी स्थान पर मां पार्वती के केश डाले गए थे.

वृंदावन में स्थित सिद्ध पीठ कात्यायनी देवी:धर्म की नगरी वृंदावन में वैसे तो हजारों मंदिर अपनी महत्वता के लिए जाने जाते हैं. लेकिन, सिद्ध पीठ मां कात्यायनी देवी का मंदिर सफेद और काले रंग के संगमरमर से बना हुआ है. मंदिर में प्रवेश करने पर दो शेर के दर्शन होते है जो मंदिर की सीढ़ियों पर बने है. इस मंदिर में हर रोज दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. इस मंदिर को मां उमा देवी के नाम से जाना जाता है.

1923 मे मंदिर का निर्माण हुआ: प्रसिद्ध सन्त केशवानंद महाराज मां कात्यायनी देवी की आराधना करते थे. एक दिन मां कात्यायनी देवी ने अपने भक्त को वृन्दावन में मंदिर बनाने का अनुरोध किया. देवी का आशीर्वाद मानकर संत ने मंदिर का निर्माण करवाया और अपना शेष जीवन इसी मंदिर में बिता दिया.

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पौराणिक मान्यता: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है, कि राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन कराया था. अपनी बेटी सती (पार्वती) और भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया. भगवान शिव और सती दोनों अपमानित हुए तभी बेटी सती ने यज्ञ में कूद कर अपनी जान दे दी. शिव अग्नि से पार्वती के शव को निकाल कर ले गए. भगवान विष्णु शिव की पवित्रता को देख कर प्रसन्न हो गए और पार्वती को जीवित करने के लिए सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए. मां पार्वती के केश की लटे गिरी, उन स्थान को आज शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है. कात्यायनी देवी उमा शक्तिपीठ मंदिर विख्यात है.

सिद्धपीठ कात्यानी देवी मंदिर की ये है पौराणिक मान्यता (video credit- Etv Bharat)
राधा कृष्ण की जोड़िया भी बनती है: ब्रज में गोपिया कृष्ण को अपना पति मानती थी. कृष्ण की हजारों गोपियां थी. जब भगवान कृष्ण वृन्दावन से द्वारिका चले गए, गोपिकाएं मायूस हो गयी. तब देवी मां ने आशीर्वाद दिया कि इस मंदिर में जो भी गोपिकाएं दर्शन करेंगी उनको कृष्ण जैसा पति मिलेगा. शक्तिपीठ कात्यायनी देवी मंदिर के दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. द्वापर युग से राधा कृष्ण का अटूट प्रेम चला आ रहा है. आज भी देवी मां के दर्शन करने से राधा कृष्ण जैसी जोड़िया बनती है.नवरात्र के तीसरे दिन काशी के लोगों ने मां चन्द्रघंटा का किया दर्शन: देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में नवरात्र के तीसरे दिन चंद्रघंटा देवी की पूजा का महत्व है. देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं. दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है. इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है.

काशी में मां के पूजन पाठ का विशेष महत्व है. मां कारण घंटा अपने घंटा के ध्वनि से जब काशी में लोग अंतिम समय में अपने प्राण जाते हैं, तो मां कंठ में विराजमान होकर अपने घंटी के ध्वनि से प्राणी को मुक्ति देती है. ऐसा केवल काशी में होता है. आज सुबह पूरे विधि विधान से मां का पूजन पाठ किया गया और भक्तों के लिए मां का कपाट खोल दिया गया. सुबह से भक्ति मां के इस स्वरूप का दर्शन कर रहे हैं. यह बड़ा प्राचीन मंदिर है, जो काशी खंडोक भी है.

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