बीकानेर. शारदीय नवरात्र के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा होती है. सनातन धर्म में देवी की उपासना का यह महापर्व है और देवी के मंत्रों की सिद्धि के लिए नवरात्र में षोडशोपचार पूजन का महत्व है. नवरात्र के चौथे दिन देवी उपासक, संन्यासी, तांत्रिक और गृहस्थी से जुड़े लोग मां कूष्मांडा की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करते हैं. पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि उन्होंने बताया कि देवी कूष्मांडा के उदर से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है. इसलिए शास्त्रों में दिए गए शाब्दिक अर्थ की व्याख्या के अनुसार इनका नाम कूष्मांडा पड़ा.
कुंद के पुष्प देवी को प्रिय : देवी कूष्मांडा की आराधना, पूजा विधि और पूजन सामग्री उपयोग को लेकर पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि वैसे तो देवी की पूजा अर्चना शुद्ध मन से की गई हो तो सभी प्रकार के अर्पण स्वीकार्य हैं. लेकिन पूजन विधि में कुछ बातों का ख्याल रखना चाहिए. देवी कूष्मांडा को कुंद के पुष्प अति प्रिय हैं. कूष्मांडा देवी को कुंद का पुष्प आर्पित कर आराधना करनी चाहिए और लक्षार्चन करना चाहिए. देवी कूष्मांडा को मालपुआ का भोग लगाना चाहिए.
हर मनोकामना करती पूरी : पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि नवरात्र देवी के मंत्रों की सिद्धि का महापर्व है और इस दौरान साधक को नवाहन परायण, देवी अथर्वशीर्ष, दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए. वे कहते हैं कि मां कूष्मांडा मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी है.षोडशोपचार के साथ मां की आराधना साधक करता है तो उसकी मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि सभी देवियों का स्वरूप उग्र हो ऐसा जरूरी नहीं है और हमारे शास्त्रों में भी इस बात का उल्लेख है. साथ ही उन्होंने कहा कि मां कूष्मांडा का स्वरूप शांत है.